फुर्सत में
चलते-चलते
बताऐंगे
कभी रास्ते में,
अपने
इरादों को
कामयाबी के पथ पर
चलते-चलते लिखेंगे
अपनी कामयाबी की दास्तान को।।
हम तो मुसाफिर है
जाने किस राह पर चलें,
कमबख्त
ये सपनों की मोहब्बत
हर एक इंसान से कराए,
ये कलम कभी बंद नहीं होंगी।
इन कांटों भरे रास्तों में
फुर्सत से बताएंगे कभी
रास्ते में अपने इरादों को।
ये कलम कभी बंद नहीं होगी
इन कांटों भरें रास्तों में—-
*बबीता पंवार*
घनसाली।
नै लिख्वार नै पौध—-कै भी संस्कृति साहित्य की पछांण ह्वोण खाणै छ्वीं तैंकि नै छ्वाळि से पता चलि सकदि। आज हमारी गढ़भाषा तै ना सिरप सुंण्ढा छिन बलकन नै पीढ़ी गीत गुंणमुंडाणी भी च त लिखणी भी च यन मा गढभाषा का वास्ता यन विकास का ढुंग्गू
——संकलन–@ अश्विनी गौड़ दानकोट रूद्रप्रयाग