रोग कारण प्रकरण
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चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
खंड – १ सूत्रस्थानम , 28 th अठाईसवाँ अध्याय ( विविधशित पीतीय अध्याय ) पद ३० बिटेन ३२ तक
अनुवाद भाग – २५६
गढ़वाळिम सर्वाधिक पढ़े जण वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
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तौळौ कारणु से रोग शाखाओं म पौंच जांदन। व्यायाम जन्य रोग से कोष्ठ छोड़ि रोग मल शाखा म आयी जांदन। अग्निक तीक्ष्ण हूणन पिछड़यां दोष शाखाओं म ऐ जांदन। हितकारी वस्तु क अति सेवन से भौत बढ़यां दोष पाणि तरां अपर स्थान भौरी दुसर स्थान म चल जांदन। वायु कगतिवान हूण से वायु सहायता से दुसर स्थान म पौंछि जांदन। इख शाखा आदि म पौंछि रोग उत्तपन्न करण म विलम्ब करदन। किलैकि निर्बल दोष प्रबल दोषों से बिन प्रेरित ह्वेका कुपित नि हूदन। इलै उचित स्थान म उचित समय पर कुपित हूदन। वो निर्बल दोष अर कारणु जगवाळ करदन। प्रबल दोष दुसर क जगवाळ नि करदन। शाखाओं से दोष कन कोष्ठ म आंदन अब बुले जाल। ३०-३१।
दोषुं बढ़ण से , दोषुं पकण से , स्रोतों मुख खुलण से , अवरोध हटण से , तथा फिंकण वळ वायु रुकण से यी स्थित दोष कोष्ठ म ऐ जांदन। ३२।
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ — ३८२
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