कंडाळी के पकौड़े सिक्किम/नेपाल के घरों में एक पसंदीदा भोजन है, कुरकुरा और नमकीन। ये पकौड़े उत्सव के दौरान या चाय...
Karum , Indian Beech Tree Plantation for Medical Tourism Development औषधि पादप वनीकरण – 42 ]- उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना – 249...
सरोज शर्मा ( भोजन शोधार्थी) चा कु इतिहास 750 ईसा पूर्व च, आमतौर पर भारत मा चा उत्तर पूर्वी भागों मा...
उत्तराखंड चिकित्सा पर्यटन विकास इलायची पौधा को गमलों में उगाने के लिए मानसून का समय सबसे उपयुक्त...
सार्वजनिक औषधि पादप वनीकरण -9 Community Medical Plant Forestation उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन ( रणनीति – Medical Tourism...
तिमला और बेडू की व्यावसायिक खेती से उत्तराखंड को चारा और फलों से कैश ( कृषि...
औषधि पादप कृषि से चिकत्सा पर्यटन विकास – उपयोग – – स्वास्थ्य लाभ रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल: गुड़हल...
(अधिकतर समीक्षक किसी नाटककार के नाटकों के बारे में अपनी प्रतिक्रिया देते हैं। कुछ समीक्षक नाटककार को...
(भीष्म कुकरेती की वार्ता) (अधिकतर समीक्षक किसी नाटककार के नाटकों के बारे में अपनी प्रतिक्रिया देते हैं। कुछ समीक्षक नाटककार को जानते हैं तो नाटककार को विषय दे देते हैं। एक समीक्षक स्वय नाटककार भी होता है। तो यह भी आवश्यक है कि नाटककार अपने विषय में स्वयं भी बताये। इस श्रृंखला में मैं गढवाली के प्रसिद्ध नाटककारों के बारे में उन्हीं की जुबानी जानने का प्रयास करुंगा– भीष्म कुकरेती) भीष्म कुकरेती– जी नमस्कार, अपने बारे में संक्षिप्त में जानकारी दीजिए। गजेंद्र – जी मेरी जन्म तिथि-06 अप्रैल 1964 अर जन्मपत्री में आषाढ की मासांत यानी 15 जुलाई 1963, जन्म स्थान-ग्राम सेमल्थ, पट्टी नैलचामी, जिला टिहरी गढवाल ।आधारिक शिक्षा-पांचवीं तक प्राथमिक विद्यालय ढाबसौड़। आठवीं तक राउमा घंडियालधार, 12वीं राइका घुमेटीधार। उच्च शिक्षा-रुपरेल कालेज आफ कामर्स एण्ड आर्ट बम्बई महाराष्ट्र। भीष्म कुकरेती– ब्यवसाय व आजीविका के साधन क्या हैं गजेंद्र–आजकल मैं नोबेल शांति पुरस्कार विजेता श्री कैलाश सत्यार्थी जी की संस्था बचपन बचाओ आंदोलन में राज्य समंवयक उत्तराखंण्ड काम कर रहा हूं , बच्चों की सुरक्षा के कानूनों और योजनाओं के क्रियान्वयन पर सरकार को सहयोग करते हैं। भीष्म कुकरेती– बचपन में पहला नाटक कब खेला था। गजेंद्र – हं वो जब मैं 8 वर्ष का था तो बाल राम का पाठ खेला था। 1979 में माधोसिंग नाटक लिखा उसमें अभिनय और निर्देशन भी मैने किया। भीष्म कुकरेती– आपने बद्दी-बादींण के लोक नाटक देखे हैं क्या गजेद्र–हां अगर इसका मतलब बेडा-बेडींण से है तो ‘‘लांग रड़ने’’ वाला खेल(नाटक) अपने गांव में, बरातों में बादिबादींण के लोक गाथा आधारित नृत्य जो वे सर्दियों के महिनों में गांव-गांव घूमकर करते थे। अगर आपका मतलब औजी-औज्यांण से हैं तों उनको भी चैत के पूरे महिने और पंण्डवार्त के 9 दिनों में स्वांग खेल करते देखा-सुना है। भीष्म कुकरेती– कौन-कौन से नाटक शिक्षा लेते हुए देखे- गजेंद्र – बचपन में शिक्षा लेते समय माधोसिंग भंण्डारी, पंण्डवार्त के 20 तरह के स्वांग शैली के ‘‘लोक नुत्य नाटक’’ देखे और बेडा बेडींण के नाटक जो मैने पहले भी बताया। कालेज टाइम पर बम्बई में, दिल्ली में कई नाटक देखे। बम्बई में एम एस सथ्यू निर्देशित ‘‘ बाटम अप’’, बब्बन खान लिखित-निर्देशित ‘‘अदरक के पंजे’’ और चंद्रकुमार गडगिल लिखित और मिलिंद शिंत्रे निर्देशित मराठी नाटक ‘‘ शापिथ गंदर्भ’’ नाटक मुझे खूब पसंद थे। पृथ्वी थियेटर में लगभग हर नाटक देखता था। दिल्ली में भी , चंडीगढ़ में भी। भीष्म कुकरेती– किस नाटक कार ने आपको सबसे ज्यादा प्रेरित किया- गजेंद्र– सभी नाटककारों की अपनी-अपनी शैली है। मुद्राराक्षस(सुभाष चंद्र)के लोकनाट्य शैलियों को आधुनिक रंगमंच से जोड़ना प्रभावित करता था।...
जम्मू। जम्मू-कश्मीरस्य कथुआ-मण्डले रात्रौ प्रचण्डवृष्टेः मध्यं मेघविस्फोटस्य कारणेन एकः दूरस्थः ग्रामः कटितः। कथुआनगरे मेघविस्फोटकारणात् ४ जनानां मृत्योः...