(वियतनामी लोक कथा )
272 से बिंडी गढ़वळि कथा रचयिता : भीष्म कुकरेती
शुरुवात म जब स्वर्ग सम्राट न्गोक होआंग न पृथ्वी पर पशु व मनिखों तैं एक दगड़ी रखिक प्रसन्न ह्वेन कि द्वी शान्ति से रौणा छन। स्वर्ग सम्राट न अपर जिन्न सेवक तै मनिखों वास्ता चौंळ , लुब्या अर कति कृषि पैदावार भेज। वैन अन्नाज तै स्वर्ण थैला म धरवैक सेवक तैं पृथ्वी म बूणो आदेश दे।
तब सम्राट न सेवक तेन एक हैंक घासौ बीज क थैला दे अर उख बूणो आदेश दे जख मनिखों अन्न नि हूंद हो। सम्राट प्रसन्न छौ कि यां से क्वी बि भुकि नि रालो.
आज्ञाकारी सेवक जन जिन्न द्वी थैला लेकि पृथ्वी पर चल गे। स्वर्ग म शीघ्र पौंछणै कतामत म वैन घास का बीज अनुचित स्थान म अर्थात अन्न बीजों क स्थान बोइ देन अर फिर अनुचित तै उचित करणों हेतु अन्न बीज को थैला बि उंडेल दे। घास शीघ्रता से बड़हन लग गे अर अन्न को पाणी , खाद हवा सब घास खै जा।
सेवक स्वर्ग आयी किंतु तैंन अपर स्वामी तै भय क कारण सत्य नि बताई।
कुछ समय उपरान्त भूख की शिकैत आण शुरू ह्वे गेन कि पशुओं क घास स्थल बिंडी बड़ा चारागाह व मनिखों क अन्न हेतु भौत हीन स्थान किलै ? शिकैत की ध्वनि सम्राट म पौंछ तो सम्राट क बिंगण म आयी कि सेवकन आलस म अनुचित कार्य कर दे। सम्राट न सेवक तै डांट लगाई। साधारण स्थिति म तो सम्राट इन स्वामिभक्त सेवक तैं क्षमा कर दींदो छौ किन्तु अनुचित कार्य बड़ो ही छौ तो दंड आवश्यक छौ।
स्वर्ग सम्राट न सेवक तैं भैंस बणनो दंड दे कि तुम घास खैली अर चूँकि तेरो अनुचित कार से मनिखों तै अधिक परिश्रम करण पढ्नु च तो तू भैंस रूप म मणिकहोक कार्य करिली। अर किसान को सहायता हेतु कृषि म सहायता देली।
भैंस रूपी सेवक कबि बि मनिखों क अन्न या कृषि उत्पाद नि खैजा तो स्वर्ग सम्राट न भैंस तै मथिनाक अन्न खाण लैक दांत नि देन। इलै ही भैंस घास खांदो अर अन्न से भर्यां खेतों से भगाये जांद। भौत सा श्रमयुक्त कार्य भी मनिख भैंस से लीन्दन।
भैस को काळो रंग अर कुरूपता वैक दंड को प्रतीक च। जिन्न पृथ्वी पर भैंस बणी अपर क्षणिक अशुद्धि क दंड भरणु च। इलै तो बुल्दन कि कनि बि स्थिति हो अळगस म शीघ्रता नि करण। अनुचित कार्य को दंड निश्चित च।