(वियतनामी लोक कथा )
270 से बिंडी गढ़वळि कथा रचयिता : भीष्म कुकरेती
–
पुरण छ्वीं छन जब वियतनाम क एक गांव म एक कर्मठ, स्वस्थ श्रमिक अपर धनी स्वामी थोकदार (भूधृति या जमींदार ) कुण कार्य करदो छौ। श्रमिक परिश्रमी , कामगति (जो कार्य करण म उत्साही रौंद , अळगसी विरोधी शब्द ) छौ , सब कार्य उचित समय पर पूर कर लींद छौ किन्तु स्वामी लोभी छौ अर चांद छौ कि श्रमिक हौर शीघ्रता से कार्य कारो। कुनेथिक स्वामी। एक दिन थोकदारन श्रमिक बुलाई अर झूठ ब्वाल ,” तू हौर परिश्रम से कार्य कौर , सब प्रतिद्व्न्दियों तैं जीत। मि त्यार ब्यौ अपर बेटी दगड़ करणम सहायता करलु। “
श्रमिक न स्वामी क चालकी वळ शब्दों तै सत्य मान अर हौर बि अथक परिश्रम करण लग गे। तीन वर्ष म श्रमिक क अथक परिश्रम से थोकदार हौर धनी ह्वे गे अर वैम अब एक हौर महलनुमा कूड़ छौ अर थोकदार न बिजां भूमि हौर मूल्याई। किन्तु थोकदार अपर बचन पूर करणो स्थान पर वेन अपर बेटी क हथ कै हैक थोकदार क बेटा क हथ म दे दे।
तब थोकदार न श्रमिक से ब्वाल , ” मि त्यार परिश्रम से प्रसन्न छौं। जा तू बौण जा अर एक सौ गाँठ वळ बांस ला. मेरी बेटी तबि ते से ब्यौ कारली। “
प्रसन्न ह्वैक सुहृदयी श्रमिक सौ गाँठवळ बांस शोध हेतु बौण चल गे अर इना द्वी थोकदारों न बेटी -बीटा क ब्यौ को बड़ो प्रबंध कार। द्वी समदी हंसणा कि “कखन लालो स्यु लाटो सौ गांठ वळ बांस। अवश्य ही तै तैं शेर -गुरा खै जाला “
श्रमिक एक बौण से हैक बौण डबक किन्तु पचास गांठ से अधिक वळ बांस नि मील। तक व निराशा से उदास ह्वे अर रुण मिसे गे।
श्रमिक क रुण सूणिक तड़म से बुद्ध भगवान परगट ह्वेना अर रुणो कारण पुछण मिसे गेन।
कारण सुणनो उपरान्त बुद्ध न ब्वाल , ” इखम कठिन क्या च ? भौत सरल च। तू सौ गाँठ क बांसों तै भीम एक साथ पड़ाळ दे अर बोल कि ‘जुड़ जा , जुड़ जा ” सब बांस एक ह्वे जाल। ” अर बुद्ध अंतर्धान ह्वे गेन।
श्रमिक न वनि कर जन बुद्ध न बोलि छौ। अब सौ गांठ को एक बांस बणि गे छौ किन्तु श्रमिक तै लम्बो बांस तै लिजाण म असमर्थ छौ। श्रमिक पुनः रुण मिसे गे। बुद्ध पुनः परगट ह्वेन। बुद्ध न ब्वाल , ” अब तो सौ गांठ वळ बांस च तो किलै रुणि छे ?:
बुद्ध न ब्वाल , ” बोल कि अलग ह्वे जा , अलग ह्वे जा ‘ अर तू छुट छुट टुकड़ों तै लीजा।
टुकड़ों से बिठकी बणैक तौं बांस लेक श्रमिक घर ऐ तो पायी कि थोकदार बेटी ब्यौ क पौणु क स्वागत हेतु उद्यत च। श्रमिक थोकदार क धोखाधड़ी समज गे।
वैन बांस क सब टुकड़ों तैं लंगत्यार म एक संग लगाई अर ब्वाल , मिल जाओ मिल जाओ “
सब पौण अर द्वी समद्युं देखि कि एक लम्बो सौ गांठ वळ बांस च समिण। घंघतोळ म ठोकाड्र न बांस छूइ , श्रमिक न ब्वाल , जुड जा जुड़ जा ” अर वो तखि चिपट गे। इथगा म थोकदार क समदी न थोकदार तै छुई अर वो बि बांस पर चिपक गे।
द्वी समदी बांस से चिपक्यां छ। लाख प्रयत्न कार तौन किन्तु बांस से अलग नि ह्वे सकिन। तब झक मारि थोकदार न सब पौणु तै साक्षी मानिक शरीक से प्रार्थना कार कि तू बांस से छुड़ा तेरो ब्यौ मि अपर बेटी से कर द्योलू।
श्रमिक न ब्वाल , ” अलग ह्वे जा, अलग ह्वे जा ” अर द्वी थोकदार बांस से अलग ह्वे गेन।
तब श्रमिक क ब्यौ थोकदार की बेटी से ह्वे अर दुयुंन प्रसन्न्तापुरबक जीवन बितायी।