
उत्तराखंड संबंधित पौराणिक पात्रों की कहानियां श्रृंखला
300 से बिंडी मौलिक गढ़वळि कथा रचयिता : भीष्म कुकरेती
एक दैं हिरण्यकश्यप पुत्र प्रह्लाद जात्रा करद करद बद्रिकाश्रम जिना आयी। तख तैन द्वी ऋषिओं तैं ध्यान मग्न द्याख। दुयुं समिण द्वी आजगव धनुष अर द्वी शारंग अक्षय तरकश भूमि म धर्यां छा। प्रह्लाद विष्णुभक्त तो छौ किन्तु राजा बि छौ तो प्रह्लाद तैं क्रोध आयी अर वैन ब्वाल , ” तुम द्वी पाखंडी छंवां। एक ओर रिशु मिनियों क वस्त्र अर दुसर ओर धनुष अर तीर धारण करण। अवश्य ही तुम मायावी रक्ष ह्वेल्या। इन पाखसंद ये जगम कैन नि देखि “
प्रह्लाद को आलाप सुणी नर न ब्वाल , ” हे दैत्यराज ! हम दुयुं की तपस्या विषय म तुम अनावश्यक व्यर्थ ही बड़बड़ करणा छा। तुम यात्रा कारो अर हमर कार्य विषय म नि विचारो। हम जणदा छंवां कि अस्त्र अर तपस्या म क्या संबंध हूंद। “
प्रहलाद न ब्वाल , : मि यीं पवित्र विष्णु भूमि पर पाप अर पापियों क अधर्म कृत नि देख सकदो। आओ युद्ध कारो “
प्रह्लाद क यी वचन सूणी ऋषि नर न ब्वाल , ” यदि तुमर या इ इच्छा च तो म्यार दगड़ युद्ध कारो।
प्रह्लाद अर नर मध्य युद्ध शुरू ह्वे गे। सब देवता, गंदर्भ , यक्ष ये युद्ध दिखणो आकाश म रिंगण मिसे गेन। द्वी ओर से बनि बनि दिव्यास्त्र चलणा छा जो आक्रमण अर आक्रमण तैं निरस्त्र करणा छा।
मुनिश्रेष्ठ नारद श्री न ब्वाल , ” इन संग्राम तो मीन अपर जीवन म नि देखि। इख तक कि तारकासुर अर वृत्रासुर क युद्ध बि इन नि छा। यु युद्ध अद्भुत च “
इन म यु युद्ध भौत दिव्य वर्षों तक चौल। द्वी योद्धा अपर युद्ध कौशल प्रयोग म पारंगत छा तो हार -जीत नि हूणी छे। इथगा म भगवान विष्णु बड़रकाश्रम ऐन।
विष्णु देखि विष्णु भक्त प्रह्लाद न पूछ , ” हे भगवन मि यु युद्ध क्वी स्वार्थ व अहम हेतु नि छौ करणु अर मीन युद्ध तुमर स्मरण से ही शुरू कार फिर मि जितणु किलै नि छौं ?”
विष्णु न उत्तर दे , किन्तु तुम हार बि नि छा अर एकरहस्य या च समिण वळ न बि अस्त्र शस्त्र म्यार समरणो परांत ही उठैन “
प्रह्लाद न हतप्रभः ह्वेक पूछ , ” तो ?”
विष्णु न ब्वाल , ” हे भक्त दुसर नर ऋषि भी मेरो ही अंश च तो जीत हार को चक्कर म नि पोड़। अपर वितल लोक चल जाओ। “
प्रह्लाद वितल लोक हेतु चलण लग गे अर नर नारायण अपर तपस्या म संलग्न ह्वे गेन।