265 से बिंडी खानी रचंदेर : भीष्म कुकरेती
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जब तक तैक बूबा बच्युं छौ तैबरि तक सब सकुशल छौ , ब्वे -बाब भैर बिटेन भोजन लांदा छा तो द्वि भायों कुण पर्याप्त भोजन मिल जांद छौ।
किन्तु कुछ समय पैलि नर एक बड़ो बर्फीले बबंडर म मोर गे। अब द्वी गरुड़ बच्चों क पळणो उत्तरदायित्व केवल मादा गरुड़ी क कंधों पर हि छौ। गरुड़ी क द्वी समस्या छे। घोल म द्वी बच्चों क जीवन शिकारियों से बचाणो कार्य बि छौ अर दगड़म अफकुण अर बच्चों कुण भोजन प्रबंध करण पड़द। गरुड़ों तैं शिकार करणो कुण धैर्य -धीरज व प्रतीक्षा चयेंद किंतु बच्चों तै शत्रुओं से बचाणो हेतु शीघ्र से शीघ्र शिकार छोड़ि घोल म आण पड़णु पडद जां से माता गरुड़ी तै शिकार करण म कठिनाई हूणी छे। बढ़द बच्चों तैं भोजन की बि बिंडी आवश्यकता हूणी छे।
इनम द्वी बच्चा गरुड़ अधभूक रौण लग गेन। द्वी भायों मदे एक कुछ शक्तिशाली छौ अर एक हीन गरुड़ बच्चा छौ। शक्तिशाली गरुड़ बच्चा न कमजोर बच्चा तै चोंच मरण शुरू कर दे।
धीरे धीरे भूक से द्वी बच्चों म प्रतियोगिता बढ़ गे। एक दिन अति भूक हूण पर बढ़ गरुड़ बच्चा न छुट दृढ़ बच्चा तै शक्ति से चोंच मार , लहुलहान कार अर शक्ति से छूट तैं ज़िंदा ही घोल से भैर लमडै दे।
प्रतियोगिता न भाई क हत्या करवै दे।