मां तेरा आंचल संसार से बड़ा है
कोख में मां तूने दुनिया है समाई
जन्म लिया मां लड़खड़ाते मैंने
आखिर तेरी वजह से जीवन अटल है
सृष्टि में अनमोल है मां तू
तेरे बिना मां संभव नहीं कुछ भी
जन्म जन्मो तक हम ऋणी है मां
तेरे बिना मां मैं संभल ना पाऊं संख्या पुस्तक ज्ञान का भंडार हे माँ तू
तेरे बिना जीवन में कुछ नहीं
ममता की कुटिया है मां तू
तेरे स्थान पर मां कोई नहीं है
दया धर्म न्याय की दिव्य शक्ति है मां तू
जननी है तू इस जगत की मां
हमें तूने बड़ी कठिनाइयों से है पाला
साथ ना छोडूंगा जीवन भर तेरे
तेरे ही गर्व से फूटा अंकुर हूँ माँ मैं
रणजीत’रंजीत’
ग्राम कोठार
पोस्ट आफिस ज्यूंदाणा
भिलंगना, टिहरी गढ़वाल।
नै लिख्वार नै पौध—-कै भी संस्कृति साहित्य की पछांण ह्वोण खाणै छ्वीं तैंकि नै छ्वाळि से पता चलि सकदि। आज हमारी गढ़भाषा तै ना सिरप सुंण्ढा छिन बलकन नै पीढ़ी गीत गुंणमुंडाणी भी च त लिखणी भी च यन मा गढभाषा का वास्ता यन विकास का ढुंग्गू
——संकलन–@ अश्विनी गौड़ दानकोट रूद्रप्रयाग