आंचलिक नाटकों की पूर्वाभ्यास की चुनौतियां – १
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आंचलिक (गढ़वाली कुमाऊंनी ) नाटकों की चुनौतियां – 3
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भीष्म कुकरेती (भारतीय साहित्य इतिहासकार )
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अधिकतर विद्व्जन व सचेत जन विज्ञ हैं कि भाषा बोलने वालों की संख्या हीन होने के कारण आंचलिक (गढ़वाली, कुमाऊंनी ) नाटक कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। हम माने या न माने आंचलिक (गढ़वाली -कुमाऊंनी ) भाषायी नाटकों को हिंदी व अन्य वृहद आधार वाली भाषाओं के नाटकों से पतियोगिता करनी ही पड़ती है। एक चुनौती जो अधिकतर नाट्य शिल्पी अधिकतर करते हैं और वह चुनौती है आज की रिहरस्ल या पूर्वाभ्यास का। पूर्वाभ्यास की दो प्रकार की चुनौतियाँ होती हैं एक नाटक को पूर्वाभ्यास न होना या बहुत हीन होना एक चुनौती है। दूसरे प्रकार की चुनौतियां पूर्वाभ्यास करते हुए होतीं हैं।
आज बाह्य प्रकार की पूर्वाभ्यास की चुनौतियों (क्यों नहीं पूर्वाभ्यास होता है या हीन संख्या में पूर्वाभ्यास होता है ) पर चर्चा होगी –
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अभिनयकर्ताओं संख्या की हीनता – सबसे बड़ी चुनौती आंचलिक (गढ़वाली , कुमाऊंनी, जौनसारी आदि ) भाषा नाटक का सामना करते हैं वह है नाट्यकर्मियों की हीन संख्या। अतः निर्देशक या निर्माता के पास ऐक्टर या ऐक्ट्रेस छांटने के बहुत हीन विकल्प होते हैं और जो भी मिलता है उसी से काम चलाया जाता है। इस हीनता का प्रभाव आगामी पूर्वाभ्यास के अभ्यासों में पड़ता है। आज भी आंचलिक नाटकों में अभिनेत्रियों की संख्या में हीनता ही है।
विदेशों में तो आंचलिक नाट्य मंचन हेतु कलाकार ही नहीं मिलते। यही हाल छोटे व सदूर भारतीय शहर जैसे बंगलौर -हैदराबाद शहरों या गढ़वाल के ग्रामीण क्षेत्रों में भी है।
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अधिकमूल्य के पूर्वाभ्यास स्थल अधिकमूल्य का होना – आजकल नाट्य पूर्वाभ्यास स्थलों के किराया अधिक हो गए हैं व अन्य व्यय (नास्ता आदि के मूल्य भी अधिक बढ़ गए हैं किन्तु उस अनुपात में निर्माता (अधिकतर सामजिक संथाएं ) को उतना लाभ नहीं होता है कि उचित पूर्वाभ्यास स्थल का व्यय भार उठा सकें।
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अभिनयकर्ता की पूर्वाभ्यास संबंधी समस्याएं – जहां पहले दिल्ली , मुम्बई , देहरादून आदि शहरों में अभिनयकर्ता आस पास रहते थे तो पूर्वाभ्यास हेतु निकटतम शटल पर जुड़ना सुगम था किन्तु अब शेरोन के बढ़ने से अभिनय कर्ता एक दुसरे से दूर बसने लगे हैं और इससे पूर्वाभ्यास स्थल भी दूर हो गए हैं। इससे बहुत से कलाकार जो नौकरी करते हैं संद्य के बाद पूर्वाभ्यास करना कठिन हो गया है। अभिनयकर्ता ओं को अब परिहवन की समस्या से तो जूझना पड़ता ही है व परिहवन मूल्य भी बढ़ गए हैं तो पूर्वाभ्यास को प्रभावित कर रहे हैं। प्रोहवन मूल्य से नाट्य मूल्य बढ़ रहे हैं।
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स्वयंसेवको संख्या में भारी हीनता – किसी भी प्रकार के नाटक मंचन हेतु कई प्रकार के कार्यकर्ताओं की आवश्यकता जैसे पूर्वाभ्यास में कई स्वयंसेवकों की आवश्यकता पड़ती है जो रिहरस्ल का समुचित प्रबंधन कर सकें व नाटक मंचन के समय भी ऐसे ही कार्यकर्ताओं (स्वयंसेवकों ) की आवश्यकता होती है। यह देखा गया है कि नेपथ्य के कार्य करने हेतु स्वयंसेवकों की बहुत हीनता खल रही है।
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तकनीक (टेक्नोलॉजी ) में हीनता – चूँकि आंचलिक नाटकों का बजट हीन होता है तो पूर्वाभ्यास में आधुनिकतम टेक्नोलॉजी नहीं मिल पाती कि पूर्वाभ्यास सरल हो सके।
हीन बजट – आंचलिक नाटकों में हीन बजट से ही उपरोक्त चुनौतियाँ आती हैं।
इतना होने के पश्चात भी हम अपनी भाषा को प्यार करते हैं और आंचलिक नाटक मंचन करते ही रहेंगे। हमारा भाषा प्रेम उपरोक्त सभी चुनौतियों को धराशायी कर ही देता है।