उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास ) -13
लेखक : भीष्म कुकरेती (विपणन व विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
महाभारत महाकाव्य में कई चरित्र उत्तराखंड भ्रमण करते हैं या उत्तराखंडी मैंदानों में पर्यटन करते हैं।
भाभर अथवा हरिद्वार (गंगा द्वार ) व कण्वाश्रम के जंगलों में बेल , आंक , खैर , कैथ व धव /बाकली वनस्पति वर्णन है और ग्रीष्म ऋतू में जहां बलुई मिटटी होती है कंटीली झाड़ी उगती है। (आदिपर्व) , मालनी तट पर तून का उल्लेख है (आदिपर्व ) . जहां नदियों में पानी नहीं सूखता वहां घनघोर वनों का उल्लेख मिलता है।
निम्न वनस्पति का उल्लेख महाभारत में मिलता है –
खाद्य फल देने वाली वनस्पति
अम्बाड़ा , अंजीर , अनार , आम , आंवला , इंगुद , कैथ , खजूर (छाकळ ), गम्भीरी , जामुन , ताल , तिन्दुक , नारिकेल (?), नीम्बू , पिंडी , भेदा , बरगद , बदरी , बेर बेल , भिलावा , केला आदि।
खाद्य न देने वाले वृक्ष
अम्लबेल , अशोक , कदम्ब , करौंदा , तमाल , देवदार , पाकड़ , परावत , पिप्पल , पीपल , मुंजातक , लकुच , शाल , सरल , शीशम , क्षौद्र आदि
फूल वनस्पति
अशोक , इंदीवर , कनेर , कुटज , कुरवल , कोविदार , चम्पा , तिलक ,पारिजात , पुन्नाग , बकुल , मंदार , शेम , . कमल की अनेक जातियों का वर्णन मिलता है। कीचकबेणु का वर्णन कई बार मिलता है। फूलों के वनों का भी वर्णन महाभाऱत में मिलता है। इन्द्रकील वन में अर्जुन पर फूलों की वर्षा होती है।
बुग्याळों को कुबेर बाटिकाएँ कहा गया है जो कि ऊँची नीची भूमि क्षेत्र में फैला हुआ उल्लेखित है। बुग्यालों पर देवता , गंधर्व , अप्सरायेँ मुग्ध रहतीं थीं। गंधमादन की बुग्याळें मनुष्य ही नहीं वायुयान के लिए भी अगम्य थीं।
कुछ वृक्ष अति काल्पनिक है जैसे कदली फल जो ताड़ वृष से भी ऊँचे वर्णित हैं।
मेडिकल टूरिज्म के बीज
उपरोक्त अधिकांश वनस्पतियां औषधि निर्माण में आज भी प्रयोग की जाती हैं और उनका उल्लेख का चरक संहिता , सुश्रुता संहिता या निघंटुओं में भी मिलता है। चरक संहिता का संकलन 3000 साल पहले हुआ होगा। किन्तु औषधि , विभिन्न अवयवों के अनुपातिक मिश्रण से औषधि निर्माण विधि , औषधि प्रयोग तो हजारों साल से चल रहा था और वह श्रुति संचार विधि से सुरक्षित व प्रचारित होता था। महाभारत में वर्णित उत्तराखंड में मिलने वाली वनस्पतियों के उल्लेख से साफ़ जाहिर है कि इन वनस्पतियों का उपयोग गैर उत्तराखंडी भी करते थे। व इनसे उत्तराखंड में या बाहर औषधि भी निर्मित होती थी। उत्तराखंड में ऋषियों के आश्रम होने से अनुमान लगाना मुश्किल नहीं कि ये विद्वान औषधि विज्ञानं पर भी अन्वेषण करते थे व श्रुति संस्कृति से औषधि विज्ञानं को प्रसारित करते थे व सुरक्षित भी रखते थे।