बहेड़ा उगाना /वनीकरण
बहेड़ा का पेड़ 30 मीटर स भी काफी ऊँचा पेड़ होता है और पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक होता है। इसकी पत्तियां 3 -6 इंच लम्बे व २से ३ इंच चौड़े होते हैं। फल अंडाकार व कथई रंग के होते हैं अंडे बीज या गुठली होती हैं।
बहेड़ा से औषधीय लाभ –
आमतौर पर बहेड़ा त्रिफला क अवयव रूप में अधिक जाना जाता है किन्तु बहेड़ा के कई औषधीय लाभ हैं – श्वसन संस्थान छेदक , श्वास नलिकाओं की सूजन कम करने , कफ नष्ट करने वाला होता है और शोथहर, नेत्रों की फूली नष्ट करता है , पीड़ाहर , अग्निदीपक , चर्मरोग हर , कृमिनाशक नेत्रों व केशों , मुंह की बदबू नष्टीकरण हेतु लाभकारी है।
दक्षिण उत्तराखंड की कम ऊंचाई वाली भूमि म भेदा का वनीकरण लाभदायी है। मिट्टी बलुई व कम चिकनी ही उचित होती है व जहां पानी न रुके , कम जल वाले क्षेत्र जैसे राजस्थान में भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
बहेड़ा बीजों द्वारा व अंकुरि गुल्म से पैदा होता है। हरड़ व बछड़ा हेतु एक जैसी मिट्टी की आवश्यकता होती है। उचित वार्षिक वर्षा -900 -3000 mm . तापमान -30 -45 अंश सेल्सियस उचित है।
फल एकत्रीकरण – जनवरी में फल एकत्रित किये जाते हैं पहले या बाद में एकत्रीकरण से टेनिन के गन में कमजोरी आ जाती है। छैया में फल सुखाने के बाद गुठली /बीजों को निकाल दिया जाता है
बुवाई समय – बुआई का सही समय मानसून से पहले मई जून महीने हैं। बीजों को 24 घंटे पानी में भिगोकर बोया जाता है। मिटटी को खोदना आवश्यक होता है। पंक्ति में सीं में 7 मीटर के अंतराल पर बीज बोये जाते हैं , नरसरी में तैयार पौधों को तीन महीने के बाद रोपा जाता है। सीधी बुवाई व रोपण विधि दोनों से पेड़ उग आते हैं। कम्पोस्ट खाद ही सही खाद है। पहले दो साल पानी दिया जाना चाहिए विषहत्या ग्रीष्म ऋतू में
अधिक छाया व ओस हानिकारक होते हैं बीज आद्रता में जमते हैंबहेड़ा सात आठ वर्षों में फल देने लगता है। भण्डारीकरण हेतु पहले बहेड़ा के फलों को छाया में सुखाया जाता है तभी गणि बैग में भरा जाता है