Drumstick Forestation in Uttarakhand
(केन्द्रीय व प्रांतीय वन अधिनियम व वन जन्तु रक्षा अधिनियम परिवर्तन के उपरान्त ही सार्थक )
सार्वजनिक औषधि पादप वनीकरण -11
Community Medical Plant Forestation -11
उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन ( रणनीति ) 113
Medical Tourism Development in Uttarakhand ( Strategies ) – 113
(Tourism and Hospitality Marketing Management in Garhwal, Kumaon and Haridwar series– 216)
उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 21
लेखक : भीष्म कुकरेती (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
लैटिन नाम Moringa oelifera
संस्कृत – शिग्रु
मराठी -शेवगा , सींग
पादप वर्णन
वास्तव में ड्रमस्टिक का जन्म उप हिमालयी भूभाग में हुआ था और अमृत तुल्य वनस्पति होने के कारण अब समस्त भारत ही नहीं अन्य देशों में भी उगाया जाता है। आश्चर्य है उत्तराखंड व हिमचल में इस अमृत तुल्य वृक्ष की अवहेलना होती जा रही है। ड्रमस्टिक एक मध्यम ऊंचाई याने 10 -12 मीटर ऊंचाई व तने की गोलाई 45 cm वाला वृक्ष है। अमृत तुल्य ड्रमस्टिक की टांटी /pod लम्बा व एक -दो सेंटीमीटर गोलाई की होती हैं। टांटी की सूखी संब्जी व दाल , साम्भर में डाला जाता है। कई भोज्य पदार्थों में भी डाला जाता है। स्वाद कडुआ होता है किन्तु अमृत तुल्य वृक्ष माना जाता है।
औषधि उपयोग –
ड्रमस्टिक के अंगों का औषधीय उपयोग
पत्तियां
तना
छाल
फूल
फल
बीज
ड्रमस्टिक ऐंटीऑक्सीडेंट होने के कारण कई सरने वाली /फैलने वाली बीमारियों की रोकथाम में उपयोगी
हाइपर टेंसन व हृदय रोग में उपयोगी औषधि उपयोग
वीर्य , शुक्राणु व शुक्राणु प्रजनन शक्ति वृद्धि हेतु फलों से औषधि
जलन कम करने हेतु पत्तियों , बीजों व टांटीयों /फली से औषधियां
गठिया , वातरोग आदि हेतु औषधियां
कैल्सियम होने के कारण दांत सुरक्षा हेतु उपयोग
कलेस्ट्रॉल कम करता है
आर्सेनिक टॉक्सिक कम करने में उपयोगी
पत्तियों के पेस्ट लगाने से त्वचा चमक बढ़ती है
पत्तियों को सर पर रगड़कर सरदर्द , अध कपाळी कम होता है
घावों , नासूर में उपयोगी
ड्रमस्टिक की पत्तियों की चाय गैस्ट्रिक व अल्सर रोग उपचार
बीज भूषि त्वचा रोग हेतु
स्वास रोग में उत्तम औषधि
त्वचा की कई बीमारियों हेतु औषधि
(कृपया अपने आप वैद न बने व डाक्टर की सलाह अवश्य लं )
जलवायु आवश्यकता – उप हिमालय व मैदानी जलवायु , उप हिमालय याने दक्षिण उत्तराखंड में कहीं भी उग सकता है
भूमि
बलुई , दुम्मट व पथरीली भी , रगड़ को पुनर्जीवित हेतु उत्तम पादप , किनारे जहां कुछ मिटटी हो वहांव सिचाई हेतु जमीन में नीचे पानी रोपित किया जाना चाहिए।
फल तोड़ने का समय -नई जाती हर समय फल देती है।
बीज बोन का समय – मई जून में नरसरी में व साधारण भूमि में व मानसून , बलुई मिट्टी में बोते हैं। आठ दस दिन में अंकुर। एक हेक्टेयर में 800 ग्राम बीजों की आवश्यकता
रोपण का समय – मानसून , बीज अंकुरित होने के 30 -35 दिन बाद रोपण। पानी व खाद आवश्यक हैं
कलम द्वारा भी मानसून में रोपण होता है , एक हेक्टेयर में 1500 पेड़ लग सकते हैं
खाद आवश्यकता -गोबर
सिंचाई आवश्यकता – सामन्य
वयस्कता समय-शीघ्र , प्रूनिंग , कटाई , छंटाई आवश्यक
वनों में सीधी बीज छिड़क कर भी वनीकरण सम्भव है।