– सार्वजनिक औषधि पादप वनीकरण -16
उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 221
– लेखक : भीष्म कुकरेती (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
लैटिन नाम -Mesua ferrea
संस्कृत -नागकेशर , नागपुष्प
पादप वर्णन
वृक्ष उंचाई मीटर- 30 -31
तना गोलाई सेंटीमीटर -90 तक
समुद्र तल से भूमि उंचाई मीटर – 1100 -1700
पत्तिययाँ फूल व फल – शुरुवात में पत्तियां लाल , ऊपरी पत्तियां गहरी हरी व नीचे नीला -मटमैला रंग
फल तिकोने अंडाकार जैसे
औषधि उपयोग
नागकेसर के अंग उपयोगिता – पुंकेसर , फल , बीज , फूल , कलियाँ , पत्तियां , छाल उपयोगी
वमन रोकने हेतु व अन्य पेट पीड़ाओं में
ज्वर ,सरदर्द में
यकृत व तिल्ली की बीमारी में
स्वास व पाचन संबंधी बीमारियों में ,मुख का दुर्गंध हटाता है
कई औषधियों का घटक जैसे चवनप्रास
मूत्र रोग में
प्यास कम करता है
सुगंधित तेल
जलवायु आवश्यकता
भूमि – बलुई व स्पंजी , अम्लयुक्त भूमि नागकेसर हेतु हानिकारक , क्षारयुक्त /अल्कलाइन भूमि भी हानिकारक
धूप – सीधी , 7 घंटे
फूल आने का समय – मार्च जून
फल तोड़ने का समय -अक्टूबर नवंबर
नए नए बीजों से सीधी बुआई भी की जाती हैं
यदि फल पके हों तो बीजों को 24 घंटे तक ठंडे पानी में भिगोये जाते हैं . नागकेशर के बीज जमने का प्रतिशत अधिकतर 100 % होता है।
एक हेक्टेयर में 400 पेड़ लग सकते हैं
जड़ या तने की कलम से भी पेड़ लगाए जाते हैं जो 12 साल में फूल दने लगते हैं
रोपण का समय – एक साल पुरानी डमडमी कली 40 -45 सेंटीमीटर ऊँची कली उपरान्त व शीत ऋतू की वारिश सही समय
खाद आवश्यकता – प्रारम्भिक काल , गोबर सही खाद
सिंचाई आवश्यकता – प्रारम्भ में फिर सामन्य
ओस व सूखे सहने की सहनशीलता पेड़ में है
कीड़ों , जीवाणुओं से बचाव आवश्यकहै इसलिए कृपया विशेज्ञों की राय लें
विशेषज्ञों की राय आवश्यक है