योगिनी एकादशी व्रत कथा
सर्वप्रिय लेखिका अनिता नैथानी ढौंडियाल
हिन्दू धर्म ग्रंथों मा हर इगादसी कु अलग-अलग महत्व बतयेगी यांका हि वजा से यूं कु नौं भि अलग अलग रखे गी।हर साल मा चौबीस इगादसी होंदंन। मलमास कि इगादस्यूं तैं मिलैकि इ छब्बीस ह्वे जंदन।यूं इगादस्यूं मा एक इगादसीअसाड़ा मैना कि कृष्ण पक्ष की इगादसी च जैंतै योगिनी इगादसी बोल्दन।यांकू बर्त लेण से सौब पापूं कु नास ह्वे जांद अर ये लोक मा भि सुख अर परलोक मुक्ति मिल जांदी। बर्त कथा माभारत क टैमै बात च
एक बार धर्मराज युधिष्ठिर न भगवान श्री कृष्ण म बोली कि हे त्रिलोकीनाथ मिन जेटा मैना कि शुक्ल पक्ष कि निर्जला इगादसी की कथा सुणी। अब कृपा करी असाड़ा मैनै कृष्ण पक्षै इगादसी कथा सुणावा। श्रीकृष्ण भगवान न बोली हे पांडु पुत्र असाड़ा मैनै कृष्ण पक्षै इगादसी कु नौ योगिनी इगादसी च ये बर्त से सौब पाप खतम ह्वे जंदन।यु बर्त ये लोक भोगी परलोक मा मुक्ति देण वालू होंद।हे धरमराज या इगादसी तिन्नी लोकूं मा प्रसिद्ध च तुम तैं मि परणौं कि कथा सणौदु, ध्यान से सुणा। कुबेर नौ कु एक राजा अलकापुरी नौ की नगरी मा राज करदू छौ।वु शिव भक्त छौ।
वेकु हेममाली नौ कु एक यक्ष सेवक छौ जु पूजा कु तैं फूल लौदु छौ।हेममाली की विशालाक्षी नौ की भौत सुंदर स्त्री छै। एक दिन वु मानसरोवर से फूल लेकि ऐ। पर फूलूं तैं रखी अपणी घौरवली दगड़ रमण कन लगी अर दुफरु ह्वेगी राजा कुबेर हेममाली का सारा लग्यूं रै जब द्वफरा ह्वेगी त वेन भौत नाराज ह्वेकि अपणा सेवकों तैं आदेश दे कि पता लगावा कि हेममाली अबी तक फूल लेकि किलै नि ऐ। जब सेवकोंन पता करी त राजा तैं सब बात बतै।य बात सूणी राजा कुबेरन हेममाली तैं बुलै।डौरन कंबदू कंबदू हेममाली राजा समण ऐ।
वे देखी राजा तैं भौत गुस्सा ऐ वेकाओंट गुस्सन फफरौंणा छा। राजन बोली हे पापी तिन मेरा पूजनीय देबतौं की बेजत्ती कै देबतौं क देव शिवजी कु अपमान कैरी, मि त्वे तैं शराप देंदू कि तू स्त्री क बिछोह मा तड़पी मृत्युलोक मा जैकी कोड़ी कु जीवन जी कुबेरा शरापन वु धरती मा पोड़ी अर कोड़ी ह्वेगी।वेन भौत कष्ट भोगनी पर शिव की किरपा से वैकी बुद्धि खतम नि ह्वे अर वे तैं पूर्व जनमै भि याद रै। अपरा पुरणा जनमै याद करी वु हिमालै पहाड़ क तरफ चल गी।चलदा चलदा वु ऋषि मार्कण्डेय क आश्रम मा पौंच गी वु ऋषि भौऔत बड़ा तपस्वी छा व ब्रम्मा जन दिखेणा छा। ऋषि तैं देखी हेममाली वख गै अर वूंका खूट्टौं मा पोड़ गी। मार्कण्डेय ऋषि न पूछी कि तिन इना क्य करम कन्नी कि तेरी य दसा हूईं च।
हेममाली न सैरी बात बतै अर बोली कि कृपा करी क्वी उपाय बता जासे मेरी मुक्ति होव। मार्कण्डेय ऋषि न बोली कि तिन सब सच सच बतै ये वास्ता मि तेरा उद्धारौ एक बर्त बतौंदू। यदि तू असाड़ा मैनै कृष्ण पक्षै योगिनी इगादसी कु बर्त बिधि बिदान से कल्लू त तेरा सौब पाप खतम ह्वे जाला। ऋषि की बात सुणी हेममाली भौत खुश ह्वे अर वेन बिधी बिदान से योगिनी इगादसी कु बर्त करी।जांसे वे तैं सौब सुख प्राप्त ह्वैनी। भगवान श्रीकृष्ण न बोली हे राजन ये बर्त कथा कु फल अट्ठासी हजार बामण जिमौंणा क बराबर होंदूं।ये बर्त नसब पाप खतम ह्वे जंदन अर प्राणी मोक्ष प्राप्त करी स्वर्ग कु अधिकारी बण जांदू।