
300 से बिंडी मौलिक गढ़वळी कहानी रचयिता : भीष्म कुकरेती
वर्तमान व्यास जी जड्डू म माणा छोड़ी बागी क मुड़ी छवाड़ गंगा -नायर -संगम म तपस्या करदा छा। अजकाल तौंक ठौर बागी म स्तिथ घाट म , छौ (अब व्यासघाट तब बागी घाट ) । व्यास जी शांत चित्त वळ ऋषि छा। किन्तु आज व्यास मुनि अति व्यग्र , अति चिंतित क्या भयभीत छा। ऋषि मुनि अर भयभीत ! व्यास तै भविष्य अंधकारमय दिख्याणु छौ। व्यास जी अपर पुरखों (व्यास जी क गुरुओं गुरु ) रचित जय -विजय महाकाव्य तै श्रुति रूप म दोहराणा छा तो जब वूंन सर्ग क श्लोक पढ़िन कि गुरु वृहस्पति नक एक लाख श्लोक समय क साथ समाप्त ह्वे गेन तो व्यास मुनि क सरा शरीर कमण लग गे। गुरु वृहस्पति क नीति शास्त्र का एक लाख श्लोक समाप्त ह्वेक लुप्त हूण तो सनातन धर्म को नष्टीकरण की सूचना हि नि दीणो छौ अपितु यो भि संकेत दीणो छौ कि गुरु व्यास द्वारा रचित जय -विजय (महाभारत ) का श्लोक बि ऊनि लुप्त ह्वे जाल जनि गुरु वृहस्पति रचितवृ हस्पति नीति का एक लाख श्लोक लुप्त ह्वेन। व्यास जी क शरीर स्वेद (पसीना ) से भोरे गे। इन लगणु छौ जन छाया फूट गए कखि। व्यास जी तैं जब बि इन चिंता हूंदी छे तो आश्रम से तौळ गंगा म नये क ऐ जांद छा। आज तीन दैं गंगा स्नान को उपरांत बि व्यास जी क विचलित हूण हीन नि ह्वे अपितु चिंता म वृद्धि ही हूणी छे।
जब चिंता से हृदय गति पर भार पड़न लग तो व्यास जीन बागी क थोकदार द्वारा दत्त सेवक तैं बागी भयाज अर तैड़ी क थोकदार द्वारा दत्त सेवक तैं खंड भयाज अर खंडाशर पंडित अर वैद्य तैं आणो निमंत्रण दे। बागी से धर्माबागीका ज्योतिषाचार्य व भविष्य दिख्वा तैं भट्याी। दगड़ म तैड़ी से खस भैरव , बणेल स्यूं का तैड़ी क ग्रामाधीस बण्वा , व अन्य गांवूं से चार पांच शिष्य खस नेताओं तैं बि भट्यायी। दूर का गाँवों से बि चार पांच खस नेता बुलाये गेन।
यद्यपि धर्मा बागीका अर खंडाशर पंडित बि खस ही छा किन्तु ज्योतिष , वैद्यगिरि क कारण तौंक समाज म पद बड़ो छौ। भौत सा समय जब व्यास जी तैं कुछ सहायता की आवश्यकता हूंदी छे तो धर्मा बागीका अर खंडाशर तै भटेक संदेह शान्ति कर लींद छा।
दुसर दिन दुफरा तक सब पौंछ गे छा। सब शंकित छा कि जु व्यास जीन इथगा लोक भट्येन तो समस्या युद्ध जन बड़ी समस्या च।
बागीघाट म वणेलस्यूं क लोग अपर अपर गाँव से पल्ल ल्है गे छा व भोजन क प्रबंध बि करणा छा। सब खस छा किंतु तौंकुण प्रत्येक व्यास बैणि-भणजु क गणत म आंदन कारण आदि व्यास (महाभारत का वास्तविक रचयिता ) खस नारी सत्यवती पुत्र छौ।
जब सब एक डाळ तौळ बैठि गेन तो धर्माबागी का न पूछ, ” गुरुश्रेष्ठ अचाणचक सब तैं एक साथ ?” क्या युद्ध की स्तिथि आणी च ?”
” युद्ध से बि बड़ी विकट समस्या ऐ गे। ” व्यास जीन उत्तर दे।
खंडाशर पंडित न पूछ , ” इन क्या ह्वे आर्य श्रेष्ठ ?”
व्यास जीन बताई , ” गुरु वृहस्पति क नीति शास्त्र का एक लक्ष श्लोक शाट प्रतिशत लुप्त ह्वे गेन। भविष्य म सहस्त्रों वर्षों हेतु राजनीति , समाज शास्त्र , अर्थ शास्त्र , कला , विज्ञान आदि पर ये से भलो ग्रंथ नि ह्वे सकद छौ। “
घंडालू को सुबाहु खस न पूछ। ” गुरु जी घंड्याळ पूजा समय आपन बताई बि छौ बल मनुस्मृति म जो जो हीनता छे वो क्वी बि वृहस्पति शास्त्र म नि छइ। “
व्यास जीन उत्तर दे ,” हां , हां। वृहस्पति शास्त्र वास्तव म तर्कशास्त्र अर चार्वक शास्त्र क मनण वळ गुरु न रच तो तै शास्त्र म चार वर्णों क स्थान पर केवल मनुष्यों की छ्वीं छन तै शास्त्र म। “
गूम क खस नेता बाहुक न पूछ , ” जब एक लक्ष से बिंडी श्लोक छा तो लुप्त कन ह्वेन जबकि आपक वंशजों क रच्युं जय -विजय बच्युं च ?”
व्यास जीन विस्तार से बताई कि जय विजय इलै बच गे कि व्यास अर शुकदेव सब उत्तराखंड म बसण लग गेन। जबकि वृहस्पति क नीति शास्त्र क श्रुति भण्डारक (जो पंडित नीति शास्त्र तैं रटी क मन म भंडार करदा छा वो मैदानों म ही रै गे छा।
कांडी को खस नेता भटिंड न पूछ , ” मैदानों से वृहस्पति क नीति शास्त्र को लुप्त -विलुप्त हूणो क्या संबंध ?”
गुरु व्यास जीन समझायी कि जब तक नंद वंश को शासन शुरू नि ह्वे छौ तो सनातन ग्रंथों क भण्डारक या संवाहकों की हीनता (कमी ) नि हूंद छे। नालंदा विश्व विद्यालय क शिक्षार्थी धीरे धीरे संस्कृत विरोधी बण गेन तो सनातन का ग्रंथों या शास्त्रों क भण्डारकों (जो श्रुति से शास्त्र मन म भंडार करदा छा ) की हीनता ऐ गे। सनातन शास्त्रों क भण्डारीकरण अर प्रसारीकरण म थोड़ा भौत सहायता तक्षशिला विश्व विद्यालय क शिक्षार्थी करदा बि छा वो चन्द्रगुप्त मौर्य क राज्य उपरांत या चाणक्य गुरु क मृत्यु उपरांत तौं पर गौतम वादी (बौद्ध ) समाज से बंधन शुरू ह्वे गे। शासकीय अर समाज की सहायता नि मिलण से सनातनी ग्रंथों क स्मृति करण वळ ही लुप्त ह्वे गेन। इन बुले जांद कि गुरु चाणक्य तक भारत म बीस शिष्य छा जो वृहस्पति शास्त्र तै श्रुति म भण्डारीकृत कौरी रख्यां छा। चाणक्य श्री न बि अर्थशास्त्र ग्रंथ म अदा से बिंडी नीति वृहस्पति शास्त्र से ही उद्घृत करे गेन। भौत सा वृहस्पति शास्त्र का धारकों (मन म स्मृति रूप ) तै सामजिक अर स्थानीय स्तर पर प्रताड़ना ही नि दिये गे अपितु तौं की भिक्षा बि बंद करे गे। जाने या अनजाने माँ ही सही। राजकीय संस्कृत पाठशाला सब समासन्न (बंद ) करे गे छा। तो संस्कृत विद्वान् ही नि मिलेन कि जो वृहस्पति शास्त्र का श्लोकों तैं स्मृति रूप म भंडार करदा। संस्कृत तै राजकीय सहायता तो दूर उपेक्षा भुगतण पोड़ अर इन म भौत सा सनातनी शास्त्र ही लुप्त ह्वे गेन। कुछ चतुर विद्वानों न भौत सा शास्त्रों तै छुट कौरी बचाई च किन्तु वृहस्पति शास्त्र जन वृहद शास्त्र लुप्त ह्वे गेन किलैकि , शासन , समाज से क्वी सहायता, प्रोत्साहन नि मील मैदानों म। तक्षशिला नालंदा विश्व विद्यालयों म संस्कृत क स्थान पर पाली अर एवं मगधी भाषा क बोलबाला ह्वे गे तो सनातनी शास्त्रों क प्रसारक ही समाप्त ह्वे गेन।
रामायण ,, आयुर्वेद , कोक शास्त्र व कुछ पुराण इलै बच गेन किलैकि यूंका प्रसारक (श्रुति भण्डारक ) हिमालय म आश्रम निर्मित कौरि शास्त्र बचाण लग गेन।
गूम को बुद्धिमान खस कंठू न पूछ , ” यु तो समज म ऐ गे कि जम्बूद्वीप म बुद्ध वाद्यूं क अधिकता, अधिपत्य, शासकीय उपेक्षा कारण संस्कृत म जो स्मृति या श्रुति ग्रंथ छन तौंक रटणो हेतु संस्कृत जानकार शिष्य नि मिलणा छन अर इन मा वृहस्पति शास्त्र ही नष्ट ह्वे गे। गुरु श्री तुमर क्या समस्या च समझ म नि आयी अबि तक ?”
व्यास जीन समझायी, ‘ आयुर्वेद ग्रंथ बि युवा संस्कृत विद्वान नि मिलण से श्रुति नि ह्वेन तो नष्ट ह्वे गेन। युवाओं म पाली या मगधी सिखणो प्रचलन अधिक बढ़ गे अर संस्कृत पढाण वळ बि नि छन। जो कुछ छन वो शासक भय से पढ़ांद नि छन। भय का कारण सि हिमालय की कंदराओं म छन लुक्यां जन कि मि। दस पीढ़ी पैल म्यार आदि गुरु निषाद सत्यवती पुत्र व्यास न कौरव -पांडवों कथा महाभारत रची छे। तब तो भौत सा शिष्यों न महाभारत रट अर महाभारत को प्रसारण कार। इन म एक पीढ़ी से दुसर पीढ़ी म महाभारत बच गे। किन्तु शिष्यों क संख्या बौद्ध शासन म बिलकुल नगण्य सि ह्वे गे। अब केवल मि बच्युन छौ जैक मस्तिष्क म महाभारत अंकित च। मीन भौत प्रयत्न कार कि मि तैं व्यास मिल जावन जो रटिक महाभारत तेन अक्षुण रख साकन। किन्तु भौत सा रैबार दीणों उपरान्त बि इथगा वर्षों से मि तैं महाभारत श्रुति रूप म रखण वळ शिष्य नि मिलेन। “
सब्युंन हां भार कि पैली संस्कृत विद्वान् हीन मात्रा म छा अब तो बौद्ध शासन म क्खन मीलल संस्कृत विद्वान् जो महाभारत रट ल्यावन।
कैन्डुळौ डुन्कर न पूछ , ” क्या महाभारत कथा बि नष्ट ह्वे जाली ? आपन प्राकृत अर्थात हमर खस भाषा म सुणै छे। भौत ही सुंदर कथा च। “
लम्बी सांस छोड़ि व्यास जीन ब्वाल , ” यदि मि तैं रटण वळ शिष्य नि मीलल तो महाभारत ग्रंथ बि मेरी मृत्यु उपरांत वृहस्पति शास्त्र अर भौत सा आयुर्वेद शास्त्रों जन बिलुप्त ह्वे जाल। संस्कृत विद्वान् तो छन किंतु रटी क श्रुति तूप म शाश्त्र धरणै क्षमता वळ नि छन “
सब्युंन एक दगड़ी पूछ , ” तुम म क्वी समाधान च तबि तुमन हम तैं भट्याइ। “
व्यास जीन प्रसन्नता से अपर मंतव्य बताई , ” अब एक नई तकनीक विकसित ह्वे गे। ग्रंथों तै अक्षुण रखणों हेतु। “
धर्माबागीका न पूछ , ” क्वा तकनीक ?”
व्यासजी न बताई ,” ताड़पत्र अर भोजपत्र पर लिखाई से ग्रंथ निर्माण की तकनीक। चरक संहिता तो भोजपत्र म लिखेक संरक्षित ह्वे बि गे। नालंदा विश्व विद्यालय म यीं तकनीक विकास प्रसार पर भौत कार्य ह्वे बि गे। सदूर दक्षिण म भौत सी बोलियों म ग्रंथ लिखणो कार्य शुरू ह्वे गे। “
खंडाशर पंडित न ब्वाल , ” अर्थात तुम महाभारत तैं लिखवाण चाणा छा। मीन बि भौत सूण यीं तकनीक क विषय म। ताड़ या भोजपत्र म पीपल या फलों या पत्तियों से मासी (स्याही ) बणैक सुई या हाथी दांत क लेखनी से यूं पत्तों म लिखे जांद बल। “
घंडालू क सुबाहु न पूछ , ” तो तुमन ढांगू , बणेल स्यूं वळो तै ये उद्देश्य पूर्ती हेतु बुलाई क्या ?”
हामी भार।
धर्माबागीका न संदेह प्रकट कार , ” गढ़वाळ हिमाला म ताड़ तो ना किंतु भोजपत्र तो मिलदा ही छन। हमर जिना तो पैंया हूंद पर एक छाल तन्नी। मासी बि बण जाली। किन्तु सबसे बड़ी समस्या तो लिख्वार की ह्वेलि। खरोष्टी अर ब्राह्मी लिपि क लिखवार भौत हीन संख्या म छन हमर क्षेत्र म। “
व्यास श्री न विश्वास म ब्वाल , ” भौत सा होला जौन ब्राह्मी लिपि म पाषाण उत्कीर्णन कौर होलु। “
बण्वा कश न उत्तर दे , ” हां ब्राह्मी क पाषाण उत्कीर्णन कलाकार तो छन। “
व्यास श्री न ब्वाल ,” रक तकनीक को दुसर तकनीक म प्रयोग -उपयोग तो सामान्य बात च। जो ब्राह्मी क पाषाण उत्कीर्णन कलाकार छह तौं तैं मि बांस लेखनी से लिखण दस दिन म सिखै द्योलु। “
द्वी खसुं न पूछ , ” तो हम तै क्या आदेश च ?”
व्यास जीन ब्वाल , ” पांडव शासन से ही आप भारद्वाज (उत्तराखंड ) क्षेत्र वळ खस , कुलिंद लोग म्यार आदि व्यास से लेकि आज तक सहायता करदा रैन। यु पहाड़ी समाज की अपणी विशेषता च। तबि तो ऋषि मुनि इख आंदन। हम सब व्यास कुल तुमर उपकार कबि नि बिसर सकदा. अब बि तुम मेरी सहायता हेतु उद्यत छंवां। तिब्बत सीमा पर नीति जिना जैक भोजपत्र लाणो जाण पोड़ल। द्वी स्थानों हेतु भोज पत्र चयेंदन। ग्रीष्म ऋतू हेतु भोजपत्र कर्तृपुर (जोशीमठ ) म धौर देन। मि माणा जांद दैं तौं तै ली जौल। क्षेत्र म जथगा बि ब्राह्मी पाषाण उत्कीर्णन कलाकार छन तौं तैं इख लाण पोड़ल अर थोकदारों से प्रार्थना च तौं लिखवारों तै कुछ गांव भेंट म दे दिये जावन। कांडी मथि कळवण म कुटांस की छति भौत मिलदी सि लेखनी निर्माण हेतु लहै येन। मासी (स्याही ) निर्माण हेतु पीपल क छाल जळैक , रंगुड़ तैं लाख , गोंड अर तेल क दगड़ मिलैक निर्माण करण तो इन विशेषज्ञ इख भेज देन। “
ढांगू , उदयपुर डबरालस्यूं , बणेल स्यूं क्षेत्र माणा वळ क्षेत्र का लोगुंन व्यास हेतु आवश्यक साधन जुटैन। वर्तमान व्यास जीन पाषाण उत्कीर्णन कलाकारों तै भोजपत्र म लिखण सिखाई। एक कलाकार एक महीना तक व्यास जीक सुणायुं श्लोक उतरदा छा अर एक महीना लेख विश्राम करदा छा।
लगभग तीन चार वर्ष म भोजपत्रों म महाभारत मस्तिष्क से भोजपत्रों म स्थानन्तर ह्वे। महाभारत म जय विजय से कई गुना बिंडी श्लोक जुड़े गेन। यो कारण से महाभारत स्मृति भण्डारक नि हूण से मृत्यु से बच गे।
क्वी नि जणदु नंद वंश से अशोक काल अर कनिष्क काल तक कतना शास्त्र बिना ंसृति भण्डारकों क मिलण से समाप्त ह्वेन धौं। महाभारत बची गे।