‘पहाड़े ब्यथा’—
आवा तुमतै कथा सुणादूं
पहाड़े की व्यथा बतांदू
कख बटि पैल करु
क्या दी लगौ, क्या छोडु।।
पहाड़ो मा जब प्रजा छे
राजा भी छा, भीड़ भी छे,
अब मनखी यौ-द्वीऽऽऽ छिन,
अर् बांदरों डार छिन।
द्वी नी, दस नी!
छिन सौ हजार
पाड़ सेरा रीता
अर बांदरों कि डार।।
आवा तुमतै कथा सुणादूं
पहाड़े की व्यथा बतांदू
कख बटि पैल करु
क्या दी लगौ, क्या छोडु।।
पहाड़ मा राशन खूब होंदी छे,
नाज-पांणी कमी नि रंदि छे,
पांण्या धारा अमृत बगुदू छो
बसंत मोळयार नि जागदू छो।
भैसां बळदू का खर्क सज्यां छा
बार नाज का कुठार भर्या छा
आज हर्चिन कैंटा -धोळा
गुठ्यार मा नी द्वी पयन्का मोळा।
अब शेरू छिन, त बल्द नीऽऽ!
अब पुंगड़ा छिन, त हौळ नी।।
आवा तुमतै कथा सुणादूं
पहाड़े की व्यथा बतांदू
कख बटि पैल करु
क्या दी लगौ, क्या छोडु।।
बौण छा यख ,ढुंगा माटू।
पुंगडा पटळा, चौड़ू बाटू।
अब डाळा मुन्येग्या , झाड़ी ज्यादा।
मनखी कम अर अनाड़ी ज्यादा।
आवा तुमतै कथा सुणादूं
पहाड़े की व्यथा बतांदू।।
कख बटि पैल करु
क्या दी लगौ, क्या छोडु।।
ज्वान छा यख दाना-स्यांणा।
कन बाजा लगदा छा मंडाणा
बार-त्येवार रीति-रिवाज
गौं-मेत्यूं कि औंदि छे याद।
अब संगता मंत्र अद्दा,फोटो ज्यादा
पंच सब छिन पर न्यो-निसाफ अद्दा।
आवा तुमतै कथा सुणादूं
पहाड़े की व्यथा बतांदू
कख बटि पैल करु
क्या दी लगौ, क्या छोडु।।
अब आज-कले गाथा गांदू
पहाड़े की व्यथा सुणांदू,
पुंगडा सी छिन,पर बट्टा नी।
ढुंगा छै छिन,पर चट्टा नी।
राशन भरपूर ,पर पहाड़ी नी।
काम छक्क , पर दिहाड़ी नी।
कख बटि पैल करु
क्या दी लगौ, क्या छोडु।।
ठ्य्क्दार रौज्या चूं जन,
लेबर मजुरदार नी।।
नौनी-नौना खाली बैठ्या
हाथों मा रोजगार नी।
रज्जा छै छिन पर,जनता आम नी!
समस्या के छिन यख
पर निकळनू समाधान नी!
आवा तुमतै कथा सुणादूं
पहाड़े की व्यथा बतांदू
कख बटि पैल करु
क्या दी लगौ, क्या छोडु।।
––@चेतन नौटियाल, गौं-सिल्ला अगस्त्यमुनि
रुद्रप्रयाग