Uttarakhand Tourism in Lalit Shah Period
( में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )
उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास ) -54
लेखक : भीष्म कुकरेती (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
गढ़वाल राजा ललित शाह काल अर्थात कुमाऊं व गढ़वाल देशों के अवसान के दिनों की आधारशिला। कुमाऊं में मंत्रियों द्वारा विशेषकर जोशियों व राजपूत दलों मध्य राजा के नाम परोक्ष रूप से राज करने की पर्तिस्पर्धा में ललित शाह फंस गया और दोनों देशों को भविष्य में खामियाजा भुगतना पड़ा।
बदीनाथ मंदिर में रावल पुजारियों द्वारा पूजा व्यवस्था प्रारम्भ
ललित शाह के समय बद्रीनाथ व ज्योतिर्मठ की व्यवस्था दंडी स्वामी संभालते थे। 1776 में ललित शाह जब बद्रीनाथ यात्रा पर थे तब दंडी स्वामी रामकृष्ण की मृत्यु हो गयी। उस समय गोपालनम्बूरी नामक भोग पकाने वाले रसोईया को पुजारी बना दिया गया और उसे डिम्मर गाँव भूदान में दे दिया गया। तब से बद्रीनाथ में रवालों द्वारा पूजा अर्चना शुरू हुयी और ये रावल केरल से नम्बूदरीपाद , चोली या मुकाणी जाति के ब्राह्मण होते हैं।
जाबितखान का दून पर आक्रमण
1775 में मुगल बक्शी जाबितखान ने दून पर आक्रमण किया।
सिखों के आक्रमण
उसके बाद सिक्खों ने देहरादून को बेरहमी से दो तीन बार लूटा।
गढ़वाली सेना के आने से पहले सिख भाग चुके थे। गढ़वाली सेना ने सिरमौर पर आक्रमण किया (1779 ) और पराजित हुयी।
रुड़की के गुजर और राजपूतों की लूट
रुड़की -हरिद्वार का डाकू सरदार (लंढौर राजा ) या राजा सदा की तरह देहरादून पर डाका डालता रहता था।
कुमाऊं के जोशियों के फंदे में फंसना
ललित शाह कुमाऊं के जोशियों के जाल में फंसा और उसने अपने पुत्र पद्युम्न शाह का प्रद्युम्न चंद के नाम से कुमाऊं राजा के रूप में श्रीनगर में राजतिलक करवाया /
बाद में जोशियों के बहकावे में आकर ललित शाह कुमाऊं अभियान शुरू किया। और ललित शाह ने जोशियों के बुरे बर्ताव सहते सहते दुलड़ी में प्राण त्यागे।
सहारनपुर पर अफगानी रोहिल्लाओं का शासन
मुगल काल से ही सहारनपुर पर सूबेदारों का ही राज रहा जो मनमानी करते थे। शाहजहां काल में सय्यद परिवार सहारनपुर के सुब्दार रहे। 1739 में नादिरशाही के पश्चात रोहिलाओं ने 1757 तक शासन किया। हरिद्वार रुड़की में गुजर , राजपूत भी राज करते थे याने रोहिलाओं के होते भी आधुनिक डॉन जैसे क्षत्रप थे।
मुगल सूबेदार या रोहिला आदि हरिद्वार में धार्मिक पूजाओं पर बंधन नहीं लगाया करते थे। किन्तु उथल -पुथल होने से पर्यटन में कमजोरी तो रही ही होगी।
सहारनपुर क्षेत्र पर मराठा शासन
सन 1748 से 1803 तक सहारनपुर , हरिद्वार व रुड़की पर मराठा शासन रहा। मराठे सैनिक भी लूटने में कमी नहीं करते थे।
उपरोक्त विवेचन से अनुमान लगाना सरल है कि लगभग युद्ध से पहले का वातावरण था व गुप्तचरों आदि का आना जाना सामन्य रहा होगा। राजनैतिक अस्थिरता में सामन्य पर्यटन अवश्य ही बाधित हुआ होगा। केरल के नंबीपराद ब्राह्मणों के केरल से गढवालपं हुचने से दक्षिण भारत गढ़वाल से जुड़ा रहा।