खैर ( कत्था ) वनीकरण
लेखक : भीष्म कुकरेती (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
खैर पेड़ मनुष्य के लिए बहुत ही लाभदायी पादप है। लकड़ी , चारा, रंग टैनिंग के अतिरिक्त खैर का प्रयोग कई औषधि निर्माण में होता है।
खैर का औषधीय उपयोग
१- दांत की मीरियों /गम की सुरक्षा
2 -कफ , डाइबिटीज , रक्तदोष , त्वचा के कई दोषों आदि के उपचार हेतु कई औषधियों में प्रयोग होता है और पादप कच्चे माल के यथोचित व अच्छे दाम मिल जाते हैं। खैर के सभी भाग औषधियों में प्रयोग में आते हैं।
खैर का पेड़ मध्य से ऊँची ऊंचाई लगभग 3 -15 मीटर ऊंचाई की की झाड़ीनुमा झाडी है।
भूमि – दक्षिण उत्तराखंड में खैर 12 00 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्र में बलुई व अन्य पथरीली मिट्टी , जलोढ़क मिटटी में पैदा होता है कह सकते हैं कि दक्षिण गंगा घाटी व तूंग वाली भूमि में खैर उगता है । खैर के लिए 40 -50 डिग्री तापमान सही तापमान है। उत्तरखण्ड में खैर के वन अपने आप उगते हैं, किन्तु अब परिस्थिति ऐसी आ गयी है कि खैर को वन कृषि के अंतर्गत उगाना आवश्यक है।
खैर का कृषिकरण या कल्टीवेशन
खैर के बीज अपने आप उड़कर जमते रहते हैं। खैर के बीज एक साल के अंदर ही बोये जाने चाहिए। खैर के बीजों को बंद कमरे में सुरक्षित रखा जाता है। नरसरी में बीजों को 24 घंटो तक पानी में भिगोया जाता जाता है और अप्रैल मई में नरसरी में बोये जाते हैं। फिर मानसून आने पर खैर पौधों का रोपण किया जाता है।
उत्तर प्रदेश में खैर वनीकरण पर प्रभावकारी काम हुआ है और लाभदायी फल मिले हैं। उत्तरप्रदेश में जिस बंजर वन का खैरीकरण करना हो वहां मानसून के आते ही खैर बीज बो दिए जाते हैं। इस विधि में सबसे बड़ी समस्या खर पतवारों की होती है अतः अधिक मात्रा में बोये जा सकते हैं। खर पतवार की रोकथाम हेतु वनों को मानसून से पहले जला दिए जाते हैं जिससे खर पतवार के बीज जल जायँ।
तल्ला ढांगू व बिछला ढांगू, गूलर गाड गढ़वाल में गंगा तट पर खैर के वन बहुत होते थे पर अब समाप्ति पर हैं यदि ग्रामीण वनीकरण योजना के तहत इन वनों में यदि मानसून आते ही बीज बोये जायँ तो खैर वनीकरण को नई ऊर्जा मिल सकेगी। जहां पानी रुकता हो वहां खैर नहीं उगता। खैर को कोमल पत्तियां बकरियों व जानवर हैं अतः जानवरों को उज्याड़ खाने से भी बचाया जाना आवश्यक है।