राजनीति, सामाजिक मानदंड अर मनखि सुभौ पर विचार करिक वे का भितर बेतुकी बात या विरोधाभासों तै खोजिक अपणा पढ़दरों तै रिझाणो अर बड़ि चालाकी से अपणो रैबार वूं तक पौंछाणो व्यंग्य लिख्वारै विशेषता होंद। हास्य-व्यंग्य द्वी शब्द अक्सर दगड़ि पढ़ण मा अंदिन पण हास्य फकत हैंसाण यानि मनोरंजन खुणि होंद जबकि व्यंग्य स्वचणा खुणि मजबूर करद।
जॉन ओल्डम का शब्दों मा -कलम अस्त्र शस्त्र छ अर व्यंग्य वेको पैनोपन। शरद जोशी ब्वल्दिन कि व्यंग्य अन्याय, अत्यचार अर निराशा का खिलाफ एक अभिव्यक्ति छ। कव्वों ककड़ाट का लिख्वार मानन्दिन कि ब्वलदरै मुखड़ि पर कुंगल़ि मुस्कान अर सुणदरै जिकुड़ि पर दप्प कांडु सि दुपे जाव त वी व्यंग्य ह्वे।
गढ़वल़ि मा व्यंग्य लिखणै बात हो त गीत अर कवितों मा नरेन्द्र सिंह नेगी जी का कतगा खैलि, नौछमि नारैण, झौंतु तेरि जमादरी जना सुंदर व्यंग्य छन। ललित केशवान, हरीश जुयाल़, दर्शन सिंह बिष्ट, नरेन्द्र गौनियाल, वीरेंद्र पंवार ,और बि कतगै कवियों कि रचनाओं मा धारदार व्यंग्य देखणो मिल्द पण व्यंग्य लिखणै असलि इमत्हान त गद्य मा होंद।
भीष्म कुकरेती अर नरेन्द्र कठैत जब -तब समाज तै चुंगन्याणा रैंदिन। द्वी हजार से ज्यादा व्यंग्य लेख ल्यखण, सात सौ से बिंडी व्यंग्य चित्र (कार्टून ) छपाण वल़ा, इंटरनेट क सोशल मीडिया म आठ सौ से बिंडी गढ़वळि फोटोटून (फोटो म व्यंग्यात्मक वार्ता ) पोस्ट करण वल़ा भीष्म कुकरेती जी गढ़वाल़ि व्यंग्य लिख्वारों का पधान छन।
गढ़वाल़ि साहित्य मा व्यंग्य का भीष्म यानि भीष्म कुकरेती जी को व्यंग्य संग्रह “कव्वों ककड़ाट “की पांडुलिपि पढ़णौ सौभाग्य मिलि। संग्रह मा कुल 74 व्यंग्य छन जो समाज का हर कूण बटिन खोजिक ल्ययां छन।
कै आदिम, संस्था या समाज का दोष मूर्खता, स्वार्थ, भ्रष्ट आचरण अर अन्याय जना दुर्गुणों तै समणि ल्याणु वूं दोषों की चुगलि करिक हँसी को पात्र बणाणु जनकै वे तै /वूंतै शर्मिन्दो होण पड़ो सटीक व्यंग्य का गुण होंदन। कव्वों ककड़ाट ” मा ग्रामीण आर्थिक उदारवाद, इस्तीफा, धौंस, प्रजातंत्र का रागस, पटवारि तै अपराधी किलै नि दिखेंदो, जना व्यंग्य स्वार्थ, आलस, मूर्खता अर भ्रष्टाचार तै पाठकों समणि ल्यन्दिन।
गुणी व्यंग्यकार कमजोर आदिम या समाजै मजाक नि उड़ांदो बल्कि वूंकि कमजोरि पर व्यंग्य करद। “मानसूनै दगड़ मुखासौड़ “मा लिख्वार पहाड़ मा मानसूनै बेरुखि पर सवाल पुछद त मानसून ब्वलदा -“यख मेरि जरोरत हि क्य छ? न क्वी मुंगरि बुतदिन, न क्वी कोदा न झंगोरु “।मानसून बणों मा लगीं /लगयीं आग अर सूखा -बाढ़ राहत मा भ्रष्टाचारै छ्वीं बि लगांद, पण जब वे तैं पता चलद कि मुखाभेंट करणवल़ो गढ़वाल़ि लिख्वार छ त वो लिख्वार मा ब्वलद – ओ !तू गढ़वाल़ि लिख्वार छै! तब क्वी फिकर नी, कुछ बि लेख, तिनी ल्यखण अर तिनी पढ़ण “।
अखबारौ सम्पादक किलै सैल्समैन बण ” मार्केटिंग को जाणकार सम्पादक तै वे को अनुभव पुछदा त सम्पादक ब्वनू छ -“हाँ मितै भौत सि चीज बेचणो अनुभव छ। अखबार चलाणो बान मिन अपणि टीवी बेचि फिरि फर्नीचर अर भाण्डा कूंडा ब्यचिन अर आखिर मा कूड़ि बि बेचि दे “।अब बतौ ये से बड़ो सैल्समैन छ क्वी? कतगा सहज भाव से अखबार, पत्र-पत्रिका चलाण वल़ों की पीड़ा व्यक्त करीं छ।
व्यंग्यकार भैर बटिन हँसोड़, रिसाड़, चखन्याल़ो या चुगलखोर दिखेंद पण सच्चै या छ कि वो समाजौ हितचिंतक होंद वो मनखि समाज तै अपणि कमियों दूर करणौ चेतांद। निन्दक नियरे राखिए….. “आलोचना करणवल़ो समणि हो त कतगै बुरैं दूर ह्वे जंदिन। लोग दिखावा खुणि मैंगि मैंगि चीज ल्यंदिन अर बैंक लोन लेक साधन जुटंदिन। “कमरा समानै दगड़ छ्वीं “मा सच्चै जब समणि आंद त हम हँसी का पात्र ह्वे जान्दो।
सौ साल अग्वाड़ि को कुमौ गढ़वाल़ ” मा डरौण्य सच्चै बतयीं छ जब गौं की खेती पाती रिलायंस अर बड़ि बड़ि कंपन्यों हाथ मा चलि जालि अर गढ़वाल़ि कुमया ठेका खेती मा काम कर्द दिख्याला। किलैकि अपणा काम मा सुस्तराम, अर नौकरी करदन त यूं से बड़ा मेनती क्वी नि होंदन। “कव्वों ककड़ाट “मा व्यंग्य की सबसे बड़ि विशेषता पढ़दरौं तै स्वचणौ मजबूर करणै ताकत छ। गंभीर विषय मा बि लालित्य अर मार्मिकता “सवर्ण स्पर्श सुख “मा देखि सकदां –
“आखिर मा गिंदी म्याल़ा मा गुंडुन भीड़ मा फाल़ मारि दे, भीड़ छंटेगे अर गुंडू कपाल़ फुटिगे। बेहोश गुंडू की आँखि ब्वनी छै “अरे इक्कीस्वीं सदी मा त सवर्ण भिट्याणो सुख देद्या क्वी।
गढ़वाल़ि संस्कृति की खोज मा “मानवीकरण को सुंदर प्रयोग कर्यूं छ जख जंदरा पाट, छानि, दिवाल अर कीलू लिख्वार दगड़ बच्याणा छन। जिंदगी शीर्षक की द्वी पंक्तियों मा कतगा कड़ु सच दिखयूं छ -योग गुरु अर नेता मा क्य फर्क छ। “योग गुरु चिंतामुक्त कैरिक सिवल्दो छ अर नेता चिंतामुक्त सियूं मनखि तै बिजाल़िक चिंतायुक्त करि देंद।
इस्तीफा धौंस ” अर “छानि ,चल़ण,मट्यंल़ “शीर्षक मा पत्रकार कतगा स्वार्थि अर मौका परस्त ह्वेगिन, दगड़ि वूं पत्रकारोंकि खिल्लि बि उड़यीं छ जो डिबेट मा चर्चा होण से पैलि अफी फैसला थोपि दिंदिन। कव्वा झूठ ब्वलण वाल़ु तै किलै नि कटदो “,”स्यूंदि सुप्पा कर “,बिगड़ीं बेटि अर ब्वे बाबु दुःख “, एक से बढ़कर एक व्यंग्य छन ये संग्रह मा।
असली हँसाड़ वो होंद जो गैरों से पैलि अफु पर हँसि जाव, यां की कारण चार्ली चैप्लिन सबसे बड़ो हँसाड़ मने जांद छौ। तन्नि असली व्यंग्यकार बि वी होंद जो अपणि बबा की ट्वपलि /पगड़ि बि निर्विकार ह्वेक उछाल़ि द्याव। भीष्म जी इन्नि गिण्या व्यंग्यकारों मा एक छन। वो व्यंग्य क्षेत्र मा इना सल्लि छन जौं मा कलम की छैणि, अर भावों की हथ्वड़ि छ। गिद्ध की आँखि छन जौं आँख्यों से कर्मचारी, राजनेता, गौं का फुंड्यनाथ, पत्रकार, कवि, लेखक अर समाजै रीति रिवाज कुछ नि बचि सकदां। समाजै रूढ़ि अर बिडम्बना जौं पर वो चोट मरदिन अफु देख्यां अर भुगत्यां छन।
“कव्वों ककड़ाट ” का सबि व्यंग्य कण्डल़ी झपाग छन जो जिकुड़ि तै ल्वेखाल़ करि दिंदिन पण ल्वे नि दिखेंदो। अफुटु घौ भौत पिड़ा देंद। मैं तै विश्वास छ कव्वों ककड़ाट”का हरेक लेख का आखिर मा पढ़दरौं तै कोयल की कुहू कुहू जरूर सुणेलि। भीष्म कुकरेती जी तै “कव्वों ककड़ाट”प्रकाशनै भौत भौत शुभकामना।
महेंद्र ध्यानी विद्यालंकार राजेश्वरी कालोनी, फेज 3,बंजारावाला देहरादून