Great Contribution by Katyuri Kings of Joshimath in Uttarakhand Branding
( कत्यूरी काल में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )
उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास ) -30
लेखक : भीष्म कुकरेती (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
उत्तराखंड के इतिहास , समाज व संस्कृति पर कत्यूरी राजाओं , ठकुराईयों , जागीरदारों का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा व प्रभाव आज भी है। यद्यपि शिलालेखों , ताम्रपत्रों , प्राचीन साहित्य में कत्यूरी सभद्ब नहीं मिलता किन्तु लोककथ्य में इन्हे कत्यूरी राजा ही कहते हैं। कत्यूर राज नेपाल के वर्तमान डोटी से पूरे उत्तराखंड पर रहा है। ऐटकिंसन , कनिंघम , राहुल व डबराल जैसे इतिहासकारों ने इन ठकुराईयों , सामंतों , रजाओं के इतिहास पर पर प्रशंसनीय विवेचना की है।
ऐतिहासिक दृष्टि से कत्यूरी शासन को दो भागों में विभाजित किया जाता है -कार्तिकेयपुर (जोशीमठ ) के कत्यूरी राजा व वैद्यनाथ (कुमाऊं -डोटी )के कत्यूरी राजा। कत्यूरी पहली ईश्वी पूर्व से गोरखा आक्रमण तक उत्तराखंड-डोटी में कहीं न कहीं राज करते रहे हैं। कार्तिकेयपुर अथवा जोशीमठ कत्यूरी राजाओं में तीन परिवारों ने राज किया व वैद्यनाथ पलायन से पहले 645 ईश्वी से 1000 ईश्वी तक माना जाता है।
जोशीमठ के कत्यूरियों का उत्तराखंड पर्यटन को महत्वपूर्ण देन
सूर्य मन्दिरों का निर्माण भी कत्युरी काल में माना जता है .
कार्तिकेयपुर के कत्यूरी शासकों ने निम्न मंदिरों की स्थापना की जो आज भी उत्तराखंड पर्यटन के मेरुदंड हैं।
वासुदेव मंन्दिर जोशीमठ की आधारशिला वासुदेव (850 -870 ) ने रखी।
नरसिंग मंदिर – शिलालेख से विदित होता है कि प्रथम कत्यूरी शासक वसंतन ने नर्सिंग देव मंदिर का निर्माण किया।
नारायण मंदिर -ललित शूर की पत्नी ने कार्तिकेयपुर के निकट गोरुन्नासा में नारायण मंदिर स्थापित किया। ललित शूर ने भूमि दी।
नारायण मंदिर गरुड़ाश्रम – किसी श्रीपुरुष भट्ट ने नारायण मंदिर स्थापित किया। भूमिदान ललित शूर ने दी।
जोशीमठ कत्यूरी काल में पर्यटन मुखी सार्वजनिक कार्य
वसंतन ने वैष्णवों को शरणेश्वर गाँव भेंट किया।
वसन्तन के पुत्र ने जयकुल भुक्तिका को जाने वाले कई सार्वजनिक मार्गों का निर्माण किया। इन मार्गों पर वसंतन पुत्र ने कई पथशालाएं बनवायीं।
वसंतन पुत्र ने शरणेश्वर गाँव को ब्याघ्रेश्वर मंदिर को अर्पित कर दिया और मंदिर में पूजा सामग्री आदि का प्रबंध किया।
त्रिभुवन राज देव ने जयकुल भुक्तिका में ब्याघ्रेश्वर मंदिर हेतु दो द्रोण की उपजाऊ भूमि दान दी और उस भूमि पर पुष्प -केशर उत्पन्न करने का आदेश दिया। उसके भाई ने भी दो द्रोण भूमि इस मंदिर को दान दी तथा त्रिभुवन राज देव के एक किरात मित्र ने भी भूमि अर्पित की।
त्रिभुवन राज देव के भ्राता ने भटकु देवता , व ब्याघ्रेश्वर मंदिर हेतु अधिक भूमि प्रदान की।
त्रिभुवन राज देव के भाई ने ब्याघ्रेश्वर मंदिर के सम्मान में एक प्याऊ का निर्माण किया।
भावेश्वर मंदिर -किसी कत्यूरी राजा के आमात्य भट्ट भवशर्मन ने भावेश्वर मंदिर निर्माण किया था।
भाभर में जैन मंदिर – कत्यूरी काल में कत्यूरियों ने दसवीं सदी में जैन लोगों को भाभर में शरण दी थी और जैनों ने बाढ़पुर आदि स्थानों में जैन मंदिर निर्माण किये।
कत्यूरी काल में तपोवन , सिमली, केदारनाथ , गोपेश्वर , आदि बदरी , तथा जागेश्वर में मंदिर स्थापित किये
उस काल में उत्तराखंड में सैकड़ों मंदिर निर्मित हुए।
जैन और हांडा अनुसार जोशीमठ में कुछ मंदिर पद्मट देव ने बनवाये।
कार्तिकेय कत्यूरी काल में मूर्तियां निर्माण
डा शिव प्रसाद डबराल व मधु जैन व ओ . सी हांडा ( आर्ट ऐंड आर्किटेक्चर ऑफ उत्तराखंड , 2009 ) की पुस्तकों में कत्यूरी काल की मूर्तियों का पूरा वर्णन मिलता है। डा कटोच के पुस्तक , डा हेमा उनियाल के केदारखडं व मानसखंड पुस्तकें भी इस काल के मंदिर व मूर्तियों पर प्रकाश डालते हैं। कत्यूरी काल में मूर्तिकार बड़े कुशल थे और इन मूर्तिकारों ने उत्तराखंड को विश्वश पहचान दिलाई। उत्तराखंड पर्यटन विकास में में कत्यूरी काल के मूर्तिकारों का बहुत बड़ा हाथ है।
मंदिर – मूर्ति निर्माण, शिलालेख अर्थात कई विज्ञानों व कलाओं का विकास
उत्तराखंड में पहले पहल काष्ठ मंदिर कला विकसित हुयी फिर पाषाण मंदिर कला विकसित हुयी साथ साथ मूर्ति निर्माण कला भी विकसित हुयी। मंदिर -मूर्ति निर्माण याने कई विज्ञानों व कलाओं का संगम व ज्ञान -विज्ञान विनियम । विज्ञान -कला विनियम से कई तरह का पर्यटन विकसित होता है। मंदिर -मूर्ति निर्माण, शिलालेख में खनन विद्या, धातु विद्या एक अहम विज्ञान है जो समानांतर औषधि विज्ञान भी विकसित करता है। औषधि विज्ञान स्वयमेव चिकित्सा पर्यटन को विकसित करता है।
प्राचीन मंदिरों का जीर्णोद्धार व कत्यूरी शिखर
कत्यूरी काल में प्रचीन मंदिरों का जीर्णोद्धार हुआ और उन मंदिरों में नाग शिखर के स्थान पर कत्यूरी शिखर निर्मित हुए जैसे – उत्तरकाशी , केदारनाथ , गोपेश्वर , गंगोत्री , जागेश्वर, जोशीमठ , तपोवन , तुंगनाथ , बद्रीनाथ आदि के मंदिरों में।
कत्यूरी काल में उत्तराखंड पर्यटन
मगध नरेश धर्मपाल के राज्याधिकारियों ने निंबर राज में केदारखंड की यात्रा की थी।
जागेश्वर मंदिरों के शिलालेखों से पता चलता है पूर्व प्रदेशों , बिहार , बंग मगध से तीर्थ यात्री उत्तराखंड पंहुचते थे।
शंकराचार्य का इसी काल में उत्तराखंड आगमन हुआ।
केदारखंड पुराण से ज्ञात होता है कि मनुस्मृति के टीकाकार मेधातिथि ने देवप्रयाग में तपस्या की थी।
राजा पद्मट ने भगवान बद्रीनाथ मंदिर बलि , प्रदीप , नैवेद्य , धुप , पुष्प , गेय वाद्य -नृत्य , पूजा हेतु भूमि दान दी थी।
भृगुपंथ , बद्रीनाथ व केदार नाथ पंहुचने हेतु दो मार्ग मुख्य थे – हरिद्वार से देव प्रयाग , श्रीनगर से बद्रीनाथ आदि दूसरा मार्ग था जागेश्वर से आदि बदरी -सिमली होकर।
देव प्रयाग व जागेश्वर के मंदिरों में कई यात्रियों ने अपने नाम भी खोदे हुए हैं। यात्री अपने साथ व्यास /कथावाचक भी लेकर चलते थे।
पर्यटकों की सुरक्षा
जागेश्वर और गोपेश्वर शिलालेखों से प्रमाण मिलता है कि कत्यूरी शासन काल में प्रजा की धन सम्पति , जीवन सुरक्षा व सम्मान का शाशक पूर्ण ध्यान रखते थे। यही कारण है कि उस समय पर्यटक निष्कंटक उत्तराखंड यात्रा कर सकते थे।
सिद्ध नाथों ने भी उत्तराखंड को शांति क्षेत्र मानकर अपनी साधना व पंथ प्रसार हेतु ठीक समझा ( बी सी सरकार शक्तिपीठ ) और भारत से विभिन्न मतावलम्बी उत्तराखंड पंहुचने लगे।
मार्गों की सुरक्षा व सुविधा
त्रिभुवन राज के शिलालेख से विदित होता है कि मार्गों व पथिकों की सुविधा का विशेष ध्यान रखा जाता था। पथिकों हेतु पथिक गृह व सार्वजनिक स्थानों में प्याऊ बनाये जाते थे।
निर्यात वृद्धि से पर्यटन विकास
उत्तराखंड से लोहा, ताम्बा , स्वर्ण चूर्ण , भोजपत्र , बांस , रिंगाळ व अन्य वनस्पति निर्यात होती थी और निर्यात सदा से पर्यटनोमुखी व्यापार सिद्ध हुआ है। मैदानी भागों को ऊन , ऊनी वस्त्र , पशु पक्षी , शहद व वन औषधियों से जनता व राज्य को अच्छी आय मिलती थी।
सुभिक्ष के ताम्र पत्र आदि से विदित होता है कि भारत में मंदिरों के वेग से स्थापनाओं से चमर , गंगाजल , व कई औषधि व पूजा सामग्री के निर्यात में वृद्धि हुयी (डबराल , उखंड इतिहास -भाग 1 )