अतीत नृत्य (फ्रांसीसी कहानी)
मूल:गाय दी मोपासां
अनुवाद: बिठलरुं पसंदीदा लेखिका सुनीता ध्यानी
‘कनि-कनि आपद-विपद हो मीफर ऊँकु क्वी असर नि होंदु|’
ज्या बिद्रैल नामकु एक विद्वान बोलि ग्य छाइ|
हूंद बि इनि च मिन त कदगै ही विनाश, अत्याचार, लणैं दिखीं छन, यूँ सब मा बिछीं लाशों मथि बटि हिट्यूँ छौं मि, न क्वी डैर न क्वी दुख… | थोड़ा भौत डैर लगली, दुख होलु कळकळी भि लगली पर एक टैम का बाद सब बिसरै जयैंद|
सबसे बड़ु दुख हूंद एक माँ खण वींकि औलाद कु नुकसान या फिर कै बि मनखि खण वेकि माँ कु दूर जाणु… पर कभि न कभि त मनखि यूँ दुखों से भि पार ह्वे ही जांद अर बिसरलु न भी पर अपुड़ि जिन्दगी त जीण ही बैठ जान्द|
पर जिन्दगी म हुयीं क्वी मुलाकात, क्वी घटना… कैकि पीड़, कैका उद्गार अचणचक्क हमथैं इना सोच प्वडाळि दींद कि हम भितर तक वीं थै महसूस कन बैठ जन्दों,दुनिया से मोहभंग हूण बैठ जान्द अर हम एक हैंकि सोच-विचारों कि दुन्या म चलि जन्दों|
म्यार दिमाग म भि द्वी-तीन इनि घटना छैं जौंकु मीफर भौत असर ह्वै अर मि यूँ घटनाओं से भैर कबि नि आ साकु…पर ह्वे सकद कि दुसरों खण यो कुछ भि खास नि हो|
मि एक इनि पुरणि घटना बतौंलु जो मिखण आज भि ताजि घटना च… मिथै भितर तक झकोळि गे वा घटना,… आज त मि पचास साल कु छौं पर या घटना तबकि च जब मि ज्वान छाइ, कानून कु विद्यार्थी छाइ, मिथै उजबक दगुड़ु पसंद नि छाइ न ही मि कौच्छ्यट्या नौन्यूँ थै पसंद करुदु छाइ| मि सुबेर झट उठिकि आठ बजि जार्दिन ट्यू लक्समबर्ग नर्सरी बगिचा म यखुलि घुमुण भलु मनुदु छाइ, यो नर्सरी बगिचा भौत पुरणु अर नै जमना लोगु खण बिसर्यूं जनु छाइ, कै दानु मनखि कि मयळि मुखड़ि जनु| माली कु यो बगिचा ठिक ठाक कर्यूं रैंद छाइ, डाळि-बूटि, फूल-पात, म्वार्यों कु रुणाट….वे बगिचा थै भलि सुंदर ढैळ दींद छाइ, मि पेरिस कु घ्याळ-रोळ से दूर ये बगिचा म बैठ्यूँ रैंदु छाइ|
एक दिन मिथै पता चल कि एक यकुलु मी नि छौं जु ये बगिचा म आंद, मिथै उनै झाड़ियों छोड़ बटि आंद दफे एक बुढ्या बुजुर्ग मनखि दिखेंदु छाइ, वो जरा हैंकसनि छा, तसमों वला जुता, कोट, मफलर अर चौड़ु हैट पैन्यूं रैंद छाइ वेकु| हैंसदि मुखड़ि अर चमकिली आँखि, हथों म सुनैरु मुठंडि वळु ट्यक्वा रैंदु छाइ, यो ट्यक्वा जरूर कैकि सैंदण रै होलि|
पैलि-पैलि त मिथै वो बुढ्या क्यप्प लग पर हर्बि-हर्बि मि वेथै अटगलण बैठ ग्यूँ, वो सोचुदु छो जणि कि वो यखुलि च बगिचा म त एकदिन मिन द्याख कि वो भंडि देर तक अफि अफि उछल-कूद करणूं राइ, फिर झुकि के जनु कैकु आदर करणूँ ह्वा, फिर वो कमजोर खुटों थै घुमाणूँ, भलि कै ताल मिलाणूँ अर अफि अफि खुस हूणूं, हथों थै भि खूब नचाणूँ!
मि त अजक्यूँ सि द्यखणूं रौं, मि स्वचणूं कि यो पागल च कि मि? तबरि वेन नचण बंद कैर द्य… फिर वो जरा अगनै खण आइ, झुकि के झणि कैखण धन्यवाद काइ अर हाथ हिलैकि पिछनै चलिग्या| फिर त मि सदनी वे थै द्यखणूँ रौं अर वो अपड़ि नचणै हरकत करणूँ ही राइ, म्यारु वे दगड़ बात करणै ज्यू ब्वनूँ छाइ, त एक दिन मिन सेवा सौंळि क दगड़ पूछि ही द्य- “कनु भलू दिन च है ना! “
वेन भी मुंड हिलैकि मेरि सेवा परखि अर ब्वाल- ” हौ, तकरीबन उनि भलू दिन जनु कबि हूंद छाइ|”
हफ्ता दिन म हम दगड़्या बणि गेचा| तब वेन मिथै अपड़ि कहानि सुणै कि वो राजा लुई-15 कु जमना म एक अॉपेरा नाच सिखाण वळु गुरु छाइ, वेथै यु सोने मुठंडि वलु ट्यक्वा भि कोन्ते दि क्लेरमोन्त न समलौंण द्या छाइ| नाच/नृत्य कु बारे म त वो ब्वलिन्दि हि गाइ…. ब्वलिन्दि हि गाइ|
एक दिन वेन बताइ बल “मेरि पत्नी नौं केस्त्रिस च, मि मुलाकात भि करवै द्यूँलू, पर वा त यख दुपरा म ही आंद, यो ही बगिचा च जैन हमथै ज्यूंदु रख्यूं च, या भौत पुरणि पर भलि जगा च जख हम अपड़ा दिनों थै सुमरणा रैंदो,मि त फजल ही यख ऐ जंदु चट उठिकि,पर वा दिन म आंदि| यख ऐकि हम इनु समझदो जनु अपड़ा जमना म ही साँस लींणा होला…वे जमना म जब हम ज्वान छाइ, हम यखि अपुड़ु ज्यू बुथ्यन्दों|”
हैंका दिन खाणु खैकि दुपरा म मि भि लक्समबर्ग पौंछि ग्यूँ| तबरि मिन द्याख कि म्यारु वो दगड़्या बुढड़ि दगड़ हथ म हथ डाळि के आणूँ छाइ|
बुढड़ि न काळु रंगा कपड़ा पैन्या छाइ, जाण पछ्याण ह्वाइ त पता लग कि वा एक बड़ि नृत्यांगना च अर वीं कु नौ च- ला केस्त्रिस| वे जमना म सब्बि राजों अर राजकुमारों पसंद| इनि रँगलि साखि कि नृत्यांगना जैंल सर्या संगसार थै प्रेम-प्यार से नहै-धुवै द्य| हम सभि बेंच म बैठि ग्यों, मई कु मैना छाइ, फुलों बयार आंणी छाइ, पतों बटि छणैकि घाम हम फर आणूँ छाइ अर वीं का काळा कपड़ा हौरि भि गैरा चमकणा छाइ|
बगिचा त खाली छाइ पर भैर बटि बग्घियों कि अवाज सुणेणी छाइ|
मिन दानु नृत्य गुरु थै पूछ -” मिथै बतावा कि मिनुएट क्य हूंद?”
बुढ्या न झस्स कारु होलु जनु बल-“मिनुएट नाच त सान्यूँ कि राणि च…. राणियों कु नाच सानि! सान्यूँ-सान्यूँ म छ्वीं बिंगाणि.. पर अब राजा नि राइ त यो राज नृत्य भि नि राइ|
फिर वेन मिथै मिनुएट का बारे म भौत कुछ बतै, समझै पर जब मि उन नि कैर सकणूँ अर समिझि सकणूँ त वेन अपड़ि पत्नी थै पूछ -” ऐलिज! क्या तु जरसि वे राज नृत्य थै करिली!”
इनै-उनै देखिकि नृत्यांगना झट खड़ि ह्वै गे… अर इनु नाच… इनु नाच देखि मिन कि क्य बतौं!
वो दगड़ि ताल मिलै नचणा…दगड़ि हैंसणा..जनु ब्वलैंद कि चाबि वळ गुड़ियों ज्वाड़ा हो|अजीब त लगणूँ छाइ पर वे जमना म जाकि दिखे जा त.. जैन यूँ थै सिखै होलु वो कदगा जणगुरु रै होलु!!
मि ऊँथै देखि खुश भि हूँणु, उदास भि… कनु जमनु रै होलु यूँ लोगुं कु अर आज ये अफि अफ म सिमटै गिन!
फिर ऊँकु नाच रुकि ग्या, एक-हैंक थै देखिकि वो पट्ट औंगाळ बोटि अँसुधरि चुवाँणा छाइ|
येका तीन दिन बाद मिन प्राविंसिज खुणि पैटण छाइ, फिर मिन कबि ऊँथे नि द्याख| साल द्वीएक म मि पेरिस वापिस औंउ, द्याख त वो बगिचा खतम ह्वे गेचु, म्यार समझ म नि आइ कि जौं थै ये बगिचा म इदगा अपण्यांस अर थँवसु मिलन्द छाइ, जौंकि ज्वानि जमना खुशबू ये बगिचा म छाइ, ऊँकु क्य ह्वे होलु?
ह्वे सकद वो भगवानौ घार चलिग्या ह्वाला,कि इनि निससा-विससा यख-वख डबखणा ह्वाला, कि प्रेत बणिगे ह्वाला अर जुन्यलि रुमुक मा कखि कब्रगाह म नाच करणा ह्वाला?
ऊँकि याद म मिथै अबि भि अँसुभ्वरे कि आंद| किलै आंद होलु? मि बिसिरि नि साकु वूँथै …ऊँकि पीड़ा थै..ऊँकु नाच थै, झणि किलै…?
तब लोगुन त मिथै सटक्यूँ ही बताण न ता?