
300 से बिंडी मौलिक गढ़वळी कहानी रचयिता : भीष्म कुकरेती
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मीन कक्षा छै से आठ तक की शिक्षा राष्ट्रीय विद्यालय सिलोगी (द्वारीखाल , पौड़ी ) म ले।
मि तब है स्कूल सिलोगी (द्वारीखाल ब्लॉक ) म पढ़दु छौ. मि छात्रावास म रौंद छौ अर सार्वजनिक मेस म खाणो स्थान पर शास्त्री जीक मेस म खांदो छौ। भग्यान पुरुषोत्तम कुकरेती शास्त्री जी छात्रावास क वार्ड बि छा। शास्त्री जीक मेस म हम पंदरा -बीस छात्र भोजन खाँदा छा। शास्त्री जी अपर मेस म सगा संबंधी या विशेष छात्रों तै हि प्रवेश दीन्द छा। शास्त्री जी हमर गां से पांच छाई किलोमीटर कठूड़ का छ अर स्कूल म संस्कृत -हिंदी पढ़ांदा छा। अनुशासन हेतु नाम गणे जांद छौ शास्त्री जीको।
हमर दगड़ गुम (अजमेर ) का रिटायर्ड सूबेदार पीटी टीचर सदा नंद काळा जी , ऊंक नौनु गोपाल काळा (जो बाद म कोटद्वार म छात्र नेता बि बण))।
लगभग 5000 फ़ीट की ऊंचाई म चीड़ वनों से घिर्यूं सिलोगी शीतल स्थल च च तो हमर मेस म या सार्वजनिक मेस म गढ़वाली संस्कृति अनुसार रात भात नि पकुद छौ। पर सुबेर प्रतिदिन भात अवश्य पकुद छौ। अधिकतर हरड़ की दाळ पकदी छे कारण उड़द की दाल इथगा ऊंचाई पर कम हवा दबाब को कारण उड़द दाल पकण म भौत समय लींदी छे (हम तै यी बताये गे छौ) । भोजन मळ क रामेश्वर कुकरेती भैजी पकांद छा। सिलोगी म पाणी की कठिनाई च निथर हवा पाणी क आधार से बुले जाय तो मसूरी बि सिलोगी देखि लज्जे जाल। राम प्रसाद भैजि अर चौकीदार जी एक मील दूर गदन से पाणी भरदा छा अर दुयुं तैं पाणी भरणों अलग से वेतन मिल्दो छौ
राम प्रसाद भैजी तैं सैकड़ों कविता अर कथा याद छा।
सुबेर क भोजन म भात अर हरड़ै दाल ही हूंद छे। कबि कब्यार मसूर की बि पक जांद छे। हमर स्कूल छात्रावास से मथि पांच मिनट मार्ग पर छे। तो हम तैं साढ़े नौ बजि तक भोजन खाइक उद्यत हूण पड़दो छौ।
सुबेर खाण म बड़ो आनंद आंदो छौ। भोजन को स्वाद ना पीटी टीचर भग्यान सूबेदार कला जी क भोजन खाणो शैली पर। हम बि दगड़ी चौकलों म बैठ्दा छा।
काळा जी कबि बि भोजन की निंदा नि करदा छा तो राम प्रसाद भैजी काळा जी से नमक मिर्च क बारा म कबि नि पुछदा छा। भौत शान्ति से बात करदा छा काला जी।
रामप्रसाद भैजी न जथगा बि भात दाळ पैल दैं सि काळा जी पूर स्वाद से खै लींदा छा। किंतु भौत थोड़ा सी दाळ थाळी म बचै दीन्द छा। अर राम प्रसाद भैजि कुण बुल्दा छा, ” बाबा ! जरा यीं दाळ मंगा कुण भात दे दे “
राम प्रसाद भैजि करछी से थोड़ा सा भात दे दींदो छौ। इनम काळा जी थोड़ा सा भात छोड़ दींद छा अर बुल्दा छा , ” भात कुण जरा दाळ दे दे बाबा। “
अब राम प्रसाद भैजि दाळ दे द्यावन तो काळा जी भात छोड़ द्यावान। सात आठ बार यो ही कर्म चलदो रौंद छौ। इन म काळा सबसे बिंडी भोजन कर लींद छा।
काळा जी से राम प्रसाद भैजि न कति दैं विनती बि कार एकी दैं भात मांग दिया कारो पर काळा जी न मानिन अर प्रतिदिन इनि थोड़ा सा भात छुड़द छा , दाळ मंगद छ , दाळ छुड़द छा , फिर भात मंगद छा। यो कर्म जब तक मि सिलोगी म पढ़दो छौ चलदो राई।
काळा जी से हम पूछ नि सकद छा कारण। बस हमन भौत सा कारणो पर चर्चा कार –
काळा जीक भोजन मात्रा बिंडी छे तो …
उथगा ही मांगो जथगा भूख हो।
जुठ भोजन थाळी म नि छुड़न।
ढब पोड गे अर इखम अति आनंद आंदो होलु।
पता नि क्या कारण रै होल धौं।