रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि , शुक्र आदि जन्य रोग
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चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
खंड – १ सूत्रस्थानम , 28 th अठाईसवाँ अध्याय ( विविधशित पीतीय अध्याय ) पद ७ बिटेन १८ तक
अनुवाद भाग – २५३
गढ़वाळिम सर्वाधिक पढ़े जण वळ एकमात्र लिख्वार भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
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यूं मदे रस आदि स्थानुं म कुपित वात आदि दोष, जै जै स्थान पर जु जु रोग उत्तपन्न करदन सि बुले जाल – अभद्र , भोजन म श्रद्धा नि हूण, अरुचि , भारीपन , तंद्रा , शरीर म पीड़ा , जौर , तम , अन्धकार , पाण्डु वर्ण , सूत्रों म अवरोध , नपुंस्कता , शिथिलता , सरैलौ दुर्बलता , जठरग्नि क नास , असमय झुर्रियां , आंख्युं सफेद हूण यी रसजन्य रोग छन।
रक्तजन्य रोग बुल्दां – कुष्ठ , बीसर्प , पिंडकायें , रक्त पित्त , रक्तप्रदर , गुदपाक , शिशिनौ पकण , प्लीहा , गुल्म , बिदृचि नीलिका , झांई , कामला , विप्लव , टिल जन मस्सा , दाद , चर्मदल श्वित्र , पामा , कोठ , रक्तमंडल यी रक्तजन्य रोग छन।
मांस जन्य रोग बुल्दां -अधिमांस , अर्वुद , कील , गलशालुक (गौळ म शोथन बढ्यो मांस ), गळशुण्डिका , पूतिमांस , अब्जी , गळगंड , गंडमाळा, उपजिवहिका , यी मांसजन्य रोग छन।
मेद जन्य रोग – प्रमेय क निन्दित पूर्वरूप (बाळुं जटिलता , अति स्थूल क आयु ह्रास ) जन ८ रोग या स्थूलता जन्य आयु ह्रास मेद जन्य रोग छन।
हड्डी तौळ दुसर हड्डी आण , अधिदन्त , दंतमैद , दांत दूखण , हड्डी डाउ , बाळ , रोम व नंग क रंग, दाड़ी मूछ रंग बदलेण , यी अस्थि जन्य रोग छन।
जोड़ों म डाउ , चककर आण , मूर्छा , आंखूं समिण अंध्यर हूण , व्रण , छुटी छुटि फुंसी हूण, जोड़ुं म गांठ यी सौब मज्जा जन्य रोग छन।
शुक्र दोष से नपुंसकता , संतान रोग , संतान नपुंसक या कम आयु क हूण , गर्भ स्खलन आदि हूंदन। दुषित शुक्र बच्चा व स्त्री दुयुं तै दुःख दीन्द। १७ -१८।
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ — ३८०
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