भीष्म कुकरेती
साहित्यकारों तैं राजनीति बाराम लिखणो सलाह च बल शुरुवाती , पैलि पंगत मा इ राजनीति तै नकारात्मक दिखाओ अर राजनैतिक प्रपंच , राजनीतिक पाखण्ड , राजनैतिक सड़ांध से पाठकों तेन सम्मोहित कारो। पवाण मा इ राजनीति का नकारात्मक पक्ष दिखाण से आप अपण बंचनेरुं दिल जितणम कामयाब ह्वे जैल्या। शुरवात मा राजनीति पर जथगा बिंडि नकारात्मक शब्द प्रयोग करिल्या तथगा अधिक पाठक पुळयाला।
दूसर पैरा मा राजनैतिक पैंतराबाजी तै जगा मिलण चयेंद अर इखमा महान राजनैतिक पैंतराबाज चरण सिंग , तिकड़मबाज हेमवती नन्दन बहुगुणा , नटवरलाल भजनलाल , तै स्थान द्यावो। पाठक राजनीति तैं ओछो समजदो तो राजनीतिज्ञों की पैंतराबाजी पर कुछ नि लिखण , पैंतराबाजी अवगुण की आलोचना नि करण अपितु पैंतराबाज राजनीतिज्ञ की खाल खैंचो। कभी भी अपण लेख मा भक्त दर्शन , भैरवदत्त धुलिया या बलदेव सिंह आर्य या गाववासी जन ईमानदार राजनीतिज्ञों की बात कबि नि करण किलैकि लोकुन तुम पर भरवस नि करण कि राजनीति मा क्वी पाक साफ़ बि ह्वे सकद। क्वी देहरादून वळ भरवस नि कौरल बल कबि मास्टर रामप्रसाद शर्मा जन ईमानदार बि इखाक विधायक थौ।
गैंडा की खाल की प्रशसा आवश्यक च अर बार बार अपण लेख मा ल्याखो कि राजनीतिज्ञ असंवेदनशील हूंद जन कि गैंडा की खाल। कबि बि इन नि बथाण कि दुनिया मा यदि क्वी अति संवेदनशील या जनता की नब्ज पछ्याण वाळ जानवर च तो वो केवल अर केवल राजनीतिज्ञ ही हूंद अर तबि तो वो चुनाव जितदो।
अपण साहित्य मा कबि बि भूल से नि लिख्यां बल नेता लोगुं काक चेष्टा हूंद अर भुलमार से बि नि लिख्यां कि यूँ से अधिक चर्री तरफ दिखण वळ हैंको क्वी प्रोफेसनल नि हूंद। राजनीतिज्ञ जनता तै मूर्ख बणान्दन तो साहित्यकार को काम च पाठक तै बेवकूफ बणाण अतः साहित्यकार तै सिद्ध करण चयेंद बल राजनीतिज्ञ निरा उल्लू का पट्ठा हून्दन अर सच्ची पाठक आपके बात पर विश्वास कर ल्याला।
सावधान ! कबि बि आधुनिक कामसूत्र प्रेमी या कड़दोड़ का कच्चा पण्डित सुखराम , श्री नारायण दत्त तिवाड़ी या दिग्गी बाबू का बाराम कुछ नि लिख्यां निथर बेकार मा पाठकुंन पवित्र , राम जन एकपत्नी व्रता नेता डा रमेश निशंक , हड़क सिंग रावत आदि पर बी शक करण मिस जाण अर इन पाक साफ़ नेताओं पर इन भगार लगाण याने पाप भागी।
हरेक वाक्य मा सिद्ध कारो बल भारत मा विकास ह्वाइ नी च। विकासहीन भारत का गुण गान कारो। कृषि क्रान्ति , बैंक क्रान्ति , इलेक्ट्रॉनिक क्रान्ति , मोबाइल क्रान्ति , इंटरनेट क्रान्ति याने समस्त उद्योग क्रान्ति तै बिसरिक ल्याखो कि यूँ भृष्ट , अफखवा , दलबदलू नेताओं की वजह से ही भारत आज बि अंग्रेजूं बणयां सड़कूं, रेलुं अर पुळ से यात्रा करदन अर भारत अबि बि अट्ठारवीं सदी मा रैणु च।
इनि भौत सी बात छन जन कि राजनीती मा भाई भतीजाबाद , जातिवाद , धर्मान्धता , अवसरवाद आदि। युं विषयों तै बढ़ै चढ़ै का बथावो कि पाठकों तै प्रजातन्त्र से तो डौर लगण मिसे जावो या जम्हूरियत से विश्वास ही हठ जावो।
फिर यदि आप सचमुच का साहित्यकार छावो तो हरेक राजनैतिक दल तै गाळी नि दीण , प्रत्येक राजनीतिक दल की आलोचना नि करण बल्कि एक राजनितिक दल का घोषित समर्थक बणिक अन्य दलों की कटु आलोचना कारो या एक दल का प्रति खामोश रावो जन नितीश कुमार की जनता दल (U ) वळ लालू या राहुल पर क्वी टिप्पणी हि नि दींदन। यदि तुम सबि दलों की खाल खैंचण पर ऐ जेल्या तो तुम तै पद्मश्री कैन दीण भै ? श्री नरेंद्र नेगी जीका हाल देखि ऐन कि ना? इलै यदि तुम तै सरकारी सम्मान चयेणु च तो सब राजनीतिक दलों की आलोचना कारो किन्तु एक दल तै बक्श द्यावो अर अपण पद्मश्री या साहित्य अकादमी सम्मान पक्का कारो।
डा राजेश्वर उनियाल से सलाह लीण जरूरी च कि महाराष्ट्र मा अर केंद्र मा भाजपा सरकार आदि डा उनियाल तै राष्ट्रपति पुरुष्कार कनै मिल्दो। या कै तरह से डा उनियाल महारष्ट्र राज्य हिंदी अकादमी का माननीय सदस्य बणिन। बकै साहित्यकार हुस्यार हून्दन तो बिंडि क्या समझाण तो इथगा ही काफी च।