सामाजिक औषधि पादप वनीकरण -3
उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 208
लेखक : भीष्म कुकरेती (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
Latin name -Terminula chebula
आयुर्वेद नाम – हरीतकी
गढ़वाली नाम हल्डुण
हरड़ क आर्थिक उपयोग – इमरती व कृषि यंत्र काष्ट
आयुर्वेद व चिकित्सा उपयोग – दस्त साफ़ करने , मल बाँधने , त्रिदोष नाशक , बल बुद्धि वृद्धिकारक , सर दर्द मारक , मूत्र साफ़ कारक जुकाम , इन्फ्लुएंजा नाशक होने से हरड़ फल को सीधा या उबालकर खाया जाता है अथवा यह कई आयुर्वेद औषधियों जैसे त्रिफला में अवयव रूप में प्रयोग होता है। हरड़ की लकड़ी बहुत मंहगी होती है।
औषधि बीज प्रयोग होते हैं
हरड़ /हरीतकी की जानकारी
फलों की वर्तमान कीमत – 25 फल 375 रूपये में ओनलाइन में मिलते हैं और बीज 2000 रुपए प्रति किलो तक मिलते हैं
पेड़ – हरीतकी का पेड़ 95 -98 फ़ीट ऊंचा व तना एक मीटर तक मोटा होता है। उप हिमालयी क्षेत्र में 36 अंश सेल्सियस से 45 अंश सेल्सियस तापमान वाले 5000 फ़ीट की ऊंचाई वाले वनों में पाया जाता है। हरड़ हेतु वार्षिक वारिश 1200 mm से 1500 mm की आवश्यकता होती ,उत्तराखंड में यह उप हिमालय क्षेत्र में बहुतायत में मिलता था व हरड़ का निर्यात होता था। अब हरड़ का निर्यात सम्भवतया इतिहास हो गया है।
भूमि – यद्यपि हरड़ तकरीबन सभी तरह की मिट्टी में उग जाता है किन्तु हरड़ बलुई मिट्टी , भुरभुरी मिट्टी व दक्षिण मुखी क्षेत्र सही क्षेत्र है। अधिकतर गेंहू के भद्वाड़ क्षेत्र सही क्षेत्र है।पानी – जल की आवश्यकता होती है शुरुवाती वर्षों में बाकी यह पादप सहनशील पादप हैफल आने का समय – हरड़ पर 8 -10 वर्ष में फल आने लगते हैं। हरड़ पर दो साल अच्छी संख्या में फल आते हैं व् एक या दो साल फिर कम संख्या में फल आते हैं।
बीज बुवायीकरण
हरड़ के फल जब पीले हो जायं तो तोड़े जाने चाहिए या पीले फल गिर जायं तो उन्हें बीज हेतु एकत्रित किया जाता है। पके फलों को मई जून में तोड़ा जाता है। फलों से निकाले बीजों को को छाया में सुखाये जाते हैं, उन्हें गणि बैग में बंद क्र दिया जाता है व एक साल तक ये बीज उगने लायक रहते हैं किन्तु नव बीजों से ही फलस उगाना श्रेयकर होता है
नरसरी में पेड़ उगाना –
सही समय -जुलाई
पॉलीबैग आकार – 32 x 22 ” क्योंकि हरड़ के जड़े जल्दी बढ़ती हैं
मिट्टी – भुरभुरी , बलुई या गेंहू के भद्वाड़ की मिटटी
कली विकसित होने में समय लगता है अतः जल्दी बाजी ठीक नहीं। कलियों को नरसरी में एक साल का समय कम से कम लगता है। कलियों को कम धुप वाले स्थान में उगाया जाता है। कलियों को दूसरे वर्ष रोपा जाता है।खाद -जितनी मिट्टी उसका आधी मात्रा गोबर की काली खाद।हरड़ रोपण हेतु गड्ढे – 5 x 5 x 5 फिट के गड्ढों को 18 फ़ीट x 18 फ़ीट की दुरी पर खोदे जाते हैं। में बलुई मिट्टी के साथ काली गोबर की खाद मिलाई जानी चाहिए। आस पास छोटे गड्ढे पानी रोकने व जल स्तर ऊपर रखने की भी सलाह वैज्ञानिक देते हैं
एक हेक्टेयर भूमि हेतु 5 किलो बीजों की आवश्यकता होती है और 280 -300 पेड़ उगाये जा सकते हैं।पहले दो वर्ष ही खाद व सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। ग्रीष्म ऋतू में प्रत्येक सप्ताह सिचाहि होनी चाहिए हरड़ तकरीबन बीमारी झेल लेता है। दीमक ग्रसित भूमि में दीमक विरोधी दवाई का प्रयोग कर भूमि को दीमक रोधक भूमि में बदलना आवश्यक है , खर पतवारों को हाथ से निकाला जा सकता है। यदि रोपण न करना हो तो 24 घंटे तक गोबर के पानी में भिगोये बीजों को सीधा गड्ढों में भी बोया जा सकता है
सीधा बीजों को छिटका कर वनीकरण
पानी में भिगाये (24 घंटे गोबर के पानी में भिगोकर ) बीजों को गोबर खाद के साथ मिलाकर भी छिटकाये जा सकते हैं किन्तु इस विधि में अधिक बीजों की आवश्यकता पड़ती है व कली आने की दर कम हो सकती है।8 -10 साल में हरड़ फल देने लगता है और एक पेड़ लगभग 40 -50 किलो फल दे देता है। हरड़ की उम्र 50 वर्ष से अधिक होती है।
पेड़ों मध्य अन्य फलस
चूँकि हरड़फसल देने में अधिक समय लेता है तो पेड़ों के मध्य उन औषधियों को उगाया जाता है जो लगुल होते हैं , छाया पसंद करते हिन् जैसे वनहल्दी , वनप्याज , गिलोय आदि , ह्री पट्टी वाली औषधीय वनस्पति भी उगाई जा सकती है।