चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
खंड – १ सूत्रस्थानम , 28 th अठाईसवाँ अध्याय ( विविधशित पीतीय अध्याय ) पद ३८ बिटेन ४३ तक
अनुवाद भाग – २५८
गढ़वाळिम सर्वाधिक पढ़े जण वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
अज्ञानी मनिख बुद्धि दोषन पंचेन्द्रियों क अहित शब्द , स्पर्श आदि विषयों सेवन करद, मल मूत्र रुकद , हानिकारी कार्य करदो , शुरू म सुखदायी किन्तु परिणाम म दुखदायी कार्य करदो अर दुःख उठांदो। किन्तु ग्यानी मनिख बुद्धि स्वच्छ हूण से स्यु कार्य नई करदो अर सुखी रौंद । राग अथवा आसक्ति , या अज्ञान से भोजन नि खाण चयेंद, परीक्षा करि ज्ञान से हितकारी अन्न सेवन करण चयेंद । भोजन क शुभ अशुभ क आठ प्रकारन परीक्षा हूंदन। यी आठ प्रकारा परिक्षा विमान अध्याय म बुले गेन। भोजन क यूं आठ विशेषता से परीक्षा करि भोजन करण चयेंद। इन करण से व्यक्ति अपराध रहित हूंद अर साधू व्यक्तियों म बुद्धिमान गणे जांद। किलैकि प्रारब्ध जन्य रोग से बुद्धिमान बुरु नि मनंद। जु रोग प्रारब्ध से हूंद अर चिकित्सा कार्य से असाध्य बि ह्वावो तो बि बुद्धिमान तै शोक नि करण चयेंद। ३८-४३।
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ –३८४
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