(ननि -ननि नाटिका श्रृंखला, Short Skits )
नौटंकी – भीष्म कुकरेती
पात्र –
सूत्रधार
सुनहरी बतख
ब्वे
बेटी १
बेटी २
–
सूत्रधार – एक तालाब क छल पर एक जीर्ण शीर्ण झुपड़ी म एक ब्वे अर तैंकि द्वी बेटी गरीबी हाल म रौंदीछा। बड़ी कठिनाई से तौंक जीवन कट्याणाु छौ। , तालाबम एक बतख रौंदी छे तैंक पंख सुना का छा। स्या बतख तै निर्धन परिवार का विषय म जणदि छे। स्या तै निर्धन परिवार की सयाता करण चाणी छे। वो बतख तै परिवार क ध्वार गे-
ब्वे – मेरी बेटियों! मेरो बि क्या भाग च कि मि अपर बेट्यूं भली प्रकार से पोषण बि नि कौर सकुद। निर्धनता म जीवन व्यतीत करण पड़णु च।
तबी बतख तौंक सयता हेतु आयी
ब्वे -हे बतख तू केको आयी ? हमर ड्यार कुछ नि कि त्वे एक दाणी बि दे सकां।
बतख – मि कुछ लीणो नि औ। उन त भाग्य व दुर्भाग्य परिवर्तन कठिन च किंतु हम एक हैंकाक सायता से कुछ गर्रु हळको त कौर सकदा। त मि तुमर सायता करण चाणो छौं। लया म्यार एक सोना क पंख ले ल्यावो। अवश्य ही यां से तुमर कुछ सायता ह्वे जाली। मि प्रतिदिन एक सोना क पंचक देलु तुम तै बेचीं सुखी जीवन व्यतीत कर सकदा।
सूत्रधार – अर तै दिन बिटेन बतख प्रतिदिन सोना का एक पंख छोड़ जांद छौ। स्यु निर्धन परिवार तै पंख बेचीं सुखी जीवन व्यतीत करण मिसे गे।
ब्वे -अब हम सुखी जीवन व्यतीत करण लग गेवां , न खाणै चिंता न लगाणै चिंता।
बेटी १ -हाँ हम बतख का आभारी छंवां कि हमर जीवन साधनयुक्त ह्वे गे।
ब्वे – हां ! किन्तु कब तक ? जु बतख इख आण बंद कर द्यालो तो क्या ह्वालो ? कखि इख से दूर चल गे तो हमर सुख का क्या होलु ?
बेटी २ – तन नि बोल हां। बतख हम पर कृपावान राइ।
ब्वे – हां ! जु यु बतख कखि चल जावो तो क्या ह्वाल ? मि तै तै बतख पर विश्वास नी आणु च। इन म हम पुनः निर्धन ह्वे जौला। जब अब वा आली त … तैंक सब पंख उखाड़ द्योलु।
बेटी १ – न ना। यु सही नि। वींन भौत सायता कौर हमारी।
बेटी २ – ना ना बतख तैं क्वी क्लेश , दर्द नि दीण।
ब्वे – तुम अदान छा। तुम नि समज सकदा निर्धनता का क्लेश। अब बतख ाली तो मीन तैंक सौब पंख उखाड़ दीणन।
सूत्रधार – तब सुनहरा बतख आयी
ब्वे (बतख पकड़ी ) मीन त्यार सब पंख उखाड़न ऐन। (पंख उखाडिक )
सूत्रधार – इथगा म सब पंख मुर्गा जन पंख ह्वे गेन
ब्वे – हैं इ तो त्यार सोना का पंख नि छन ?
बतख – हाँ यी सोना क पंख नि छन। मूर्ख महिला ! मि तेरी सायता करण चाणु छौ। प्रतिदिन एक सोना क पंख दीणू छौ किन्तु लालच म मदहोश ह्वे गे अर मै भगाण पर इ ऐ गे ?मि ये स्थान छुड़णु छौं भौत दूर जाणु छौं।
ब्वे – क्षमा क्षमा ! अब मि त्वे दुःख नि देलु।
बतख – लालच बुरी च। मि अब रुक नि सकुद।
सूत्रधार – बतख तै तालाब छोड़ी कखि दूर चल गे।