मानकी
(मूल सन्दर्भ : श्री संदीप रावतौ लेख )
खरोळ्या – भीष्म कुकरेती
मानकीकरण म्यरो बड़ो लाड -प्यारो विषय थौ। अपण बुजर्ग लिख्वार भगवती प्रसाद जीन ‘खबर सारौ’ 1 /8 /2013 सोळि मा गढ़वळि कैंड़ोकरणी ( मानकीकरण ) पर लेख देखिक मि तै हौंस बि लग कि बिचारा जणगरा नौटियाल जी या तो मै से डर्यां छन या रुस्यां छन अर भीष्म कुकरेती तैं छ्वाड़ तीर (अवहेलना ) करणै फोकटै पुठ्याजोर (प्रयत्न ) करणा छन। पण क्या करे जावो बल यु निर्दयी इतिहास कै तै बिसरण नि दींदो। ये लेख मा विज्ञ , चतुर नौटियाल जीन गढ़वळि कैंड़ोकरण पर हुईं छ्वीं बथुं 1975 -1980 से अब तलकौ सिलसिलाबार इतियास -पुराण कथा बथाइ। बड़ो भलो लग बल इखम गढ़वाली सहित्यौ विद्वान् भगवती प्रसाद जीन 1987 -1990 को पुराण -गाथौ सफाचट अणदिखै करी दे। असल मा ये बगत ( 1987 -1990) पर गढ़वळि कैंड़ोकरण बड़ी बहस ह्वे अर चूँकि यूं छ्वीं -बथों मा भीष्म कुकरेती बि शामिल थौ त ठुल्ला -विद्वान् साहित्यकार नौटियाल जीन ये समौ जो बहस ह्वे वीं बहस की बात कारि नी च। सैत च चूंकि खुद नौटियाल जी ईं बहस मा शामिल था त जणगरा साहित्यकारन या बात लुकै द्यायि। निथर विद्वान् भगवती बडा जी इन नि लिखदा “ये बीच मीन कै पत्रिका मा कविवर लोकेश नवानि को एक लेख पढि छयो जैकु निचोड़ छयो “भौत ह्वे गिन मानकीकरणै छ्वीं , अब ये पर बिराम लगावो “।अब क्या बताये जावो कि जै विषय पर गढवाली का विदुर नौटियाल जी खुद शामिल ह्वेन वु लिखणा छन बल मिन कखि पढि। त मि सब्युं तैं याद दिलै द्यूंद बल जब मीन ‘धाद’ पत्रिका मा मानकीकरण मुतालिक लेख ‘बीं बरोबर गढ़वाली’ लेखौ पैथर ‘च छ थौ ‘ धाद (जुलाई 1990 ) मा छ्पाइ त एक तरां से गढ़वळि साहित्यौ थौळम हल्ला -गुल्ला सि मचि गे। बाबुलकर जीन लेखि बल यो त निर्णीत च कि क्वा बोलि मानकीकृत च। अर ये लेखौ प्रतिक्रिया मा नौटियाल जीक व्यंग्यात्मक लेख धाद (अक्टूबर 1990 ) छप.
नौटियाल जीक लेख ‘पुरु दीदा ‘ पर डा अनिल डबराल की प्रतिक्रिया या च –
” धाद अक्टूबर 1990 में भगवती प्रसाद नौटियाल का व्यंग्य लेख ‘पुरु दिदा ‘प्रकाशित हुआ। जिसमे पुरु दिदा नामक एक ग्रामीण पात्र के माध्यम से भीष्म कुकरेती का उपहास उड़ाया गया है -“जै कु नौ त भीसम जन बुल्यों भीसम पितामह को औतार हो पर काम देखा दौं -कुल लडौण्या छ्वीं। …… अरे छ्वारा पैलि खै त लि , तब बांधि कुट्यरि। लेखदि दां त बौंवोड़ पड्या अर छ्वीं होणी छन मानकीकरणै। ”
भगवती प्रसाद नौटियाल ने भीष्म कुकरेती को इस तरह नोचा लेकिन भीष्म कुकरेती ने स्वयं च , छ , थौ शीर्षक से छपी घपरोळ स्तंभ में उन्होंने (भीष्म कुकरेती ने ) भाषा की उपेक्षा का प्रश्न उठाया था –
गढ़वळि -ये म्यार भुभरड़ा तुम लिखंदेर बि नि छंवां अर ना ही गढ़वळि का असली बंचनेर?जरा इन बथावदी तुम करदा क्या छंवा ?
च -मि लगीं पौद तै उपाड़िक फंड चुलांदु।
छ -क्वी सीधु बाटु जाणु होवु त वै तैं भेळउंद धकल्याणो काम करुद।
थौ -लोखुंक पकीं फसल देखिक म्यार अंदड़ म्वाट ह्वे जांदन। मी पकीं फसल पर बणाक लगांदु। “
फिर ये दौरान गौंत्या नाम से स्व अर्जुन सिंह गुसाईं क दगड़ म्यार एक मुखाभेंट धाद माँ छप जखमा गुसाईं जीन मध्यम मार्ग की बात करी थै अर ब्वाल कि पैल सबि क्षेत्र वास्युं शब्दावली साहित्य मा आण जरूरी च।
फिर म्यार एक घपरोऴया लेख ‘असली -नकली गढवाली ‘ धाद मा छप जखमा मीन मजाक मजाक मा बोलि दे कि असली गढ़वाली त सलाणी च अर ल्याख कि यदि माणापाथीकरण की लडै लड़णाइ त फील्ड मार्शल पूरण पन्त ….आदि ।
ये लेख की प्रतिक्रिया मा अबोध बंधु बहुगुणा जीक कैड़ी प्रतिक्रिया ‘भाषा मानकीकरण पर हमला ‘लेख धाद मा छप फिर प्रतिक्रिया मा देवेन्द्र जोशी क लेख धादम छप ‘माणापाथीकरण -बखेड़ा पर बखेड़ा ‘.
वैक पैथर लोकेश जी अर मोहन बाबुलकर जीक बि प्रतिक्रिया धाद मा छपिन ।
इ त ह्वे इतियास -पुराण की बात जो विद्वान नौटियाल जी बिसर गे छया।
अब आंदो मि असली मुद्दा पर कि कैं जगा की भाषा तैं मानकीकृत भाषा माने जाव ?
बिंडी लोगुं राय च बल जन अंग्रेजी भाषा मानकीकरण लन्दन का न्याड़ -ध्वार की भाषा तैं मानकीकृत माने गे ऊनि या तो श्रीनगर या टिहरी की बोली तैं मानकीकृत गढ़वाली माने जावो। अर फिर इखमा बि जादातर लोग श्रीनगर्या गढ़वाली तै जादा तबज्जो दींदन।
ठीक च। इखमा हम सौब मानि लींदवां बल श्रीनगर्या गढ़वाली ही सर्वमान्य मानकीकृत भाषा च। गढवाली की क्वा बोली मानकीकृत माने जावो पर अब बहस बिलकुल ही बंद हूण चयाणि च. चलो आज से मि श्रीनगर्या बोलि मा इ लिखुल।
मि श्रधेय भाषौ ठुल्लो जणगरा नौटियाल जीक बात ‘अगर आप चांदन कि गढ़वाळि कु एक समृद्ध भाषा का रुपमा विकास हो, लेखनमा एकरूपता बणी राव त भाषागत इलाकई मोह छोड़ण पड़लो। ” से सहमत छौं।
तो आज से हम सब श्रीनगर्या बोली मा ही लिखला।
पण क्वी इन त बथावो बल कैन श्रीनगर्या बोलि मा ल्याख बल जां से हम वै लिख्वारो सकासौरी करी श्रीनगर्या बोलि मा लिखवां।
सबसे बिंडी गद्य स्व अबोध बन्धु बहुगुणान लेखिं छन पण अफ़सोस अबोध जी त संस्कृत , हिंदी का शब्द अर ब्याकरणौ रस्ता पर हिटेन। मी मानि नि सकुद बल बहुगुणा जीक भाषा श्रीनगरया च।
इनि नौटियाल जीक भाषा च।
यांक अर्थ या च बल पैल इन किताब हूण चएंद जो व्याकरण सम्मत अर मानकीकृत लफ्जुं मा हम लिख्वारुं तै बथावु कि या च श्रीनगर्या गढवाली।
हाँ जब इन लिखे जालो ,” लेखनमा ‘ तो फिर क्यांक मानकीकरण ? ‘लेखनमा’ हिंदी मा च अर हमर ढांगू सलाणम इन बुले जांद ‘लिखणम’ . अब पता नी बल श्रीनगर का कै कूण्याम या श्रीनगरौ नजीकौ पट्टी इडवालस्युं मा कै गां मा ‘लेखनमा’ बुले जांद थौ।
कै बि भाषा मानकीकरणs वास्ता कुछ मूलभूत साहित्य चयान्द —
त छ्वीं बथ इख पर नि हूण चएंद कि मानकीकरण बहस को इतिहास क्या च बलकणम इख पर हूण चएंद कि मानकीकृत भाषा का बाटो कनकै खुजये जावो। लेखनमा एकरूपता की बात सै च पर एक ढांगू क लिख्वार अर जमनोत्री मा बैठ्युं लिख्वार तै क्या साहित्य दिखाण कि द्वी लिख्वार एकी भाषा मा इकसनि लफ्जों मा ल्याखन ?