वास्तविक रचनाधर्मिता (ननि नाटिका)
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(ननि ननि नाटिका श्रृंखला)
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नौटंकी – भीष्म कुकरेती
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पात्र –
सूत्रधार
छौना
बखरी
खाडू
स्याळ
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सूत्रधार – एक छनि म बखर रौंदा छा। तख एक उपद्रवी छौना बि छौ। स्यु ब्वे बाबु व दान सयाणो बुल्युं नि मणदो छौ। एक दिन वेकी ब्वेन तै छौना सणि समजाणो प्रयत्न कार।
बखरी – ये छौना ! कुछ नयो करणो अर्थ यो नि कि हम पर बखर धर्म छोड़ि मनिख धर्म या स्याळ धर्म निभावां।
छौना – हम ढिबर बखरा क ढिबर -बखरा इ रै गेवां। जब तक हम वृत्त से भैर नि सुचला हम पशु इ रौला।
खाडू – ह्यां किन्तु हमर पशु वृति म क्या हानि ?
छौना – हानि तो नी किन्तु हम तै वृत्त से भैर सुचण पोड़ल।
खाडू – तांक अर्थ यो नी कि हम स्याळ , कुरस्यळ , बाग़ वृति अपनाण लग जवां।
छौना – तुम लोकुं तै समजाण असरल च।
बखरी – जब जरा बड़ ह्वे जै तब तू आपरी रचनाधर्मी बताई। अबि हमर न्याड़ -ध्वार इ रौ। इन नि हो कि त्वे क्वी शिकारी भकलै लीजा।
छौना – मि मूर्ख नि छौं।
सूत्रधार – छौना क समज म ब्वे -बाबु अवज्ञा रचनाधर्मिता या वृत्त से भैर सुचण छौ। एक रात वो छनि से भैर आयी अर जंगळ जिना चलण लग गे। कुछ दूर उपरान्त बाट मथि एक स्याळन छौना द्याख तो शीघ्रत पूर्वक स्याळन मौलवी भेष धार, अर अगवाड़ी जैक बाटक छल पर अल्लाह अल्लाह ! रटण लग गे।
छौना – तुम को ?
मौलवी भेष म स्याळ – मि खुदा क भिज्युं छौं अर भूलोक म लोगों इच्छा पूर्ति करदो।
छौना – हैं ! क्या तुम मैं रचनाधर्मी हूण सिखाई देल्या ?
मौलवी भेष म स्याळ – खुदा क ड्यार सब बंदों की इच्छा पूर्ति हूंदी।
छौना – तो मि तैं रचनाधर्मी बणाओ।
मौलवी भेष म स्याळ – तो त्वे कुछ खटकर्म करण पोड़ल।
छौना – क्या ?
मौलवी भेष म स्याळ – तू सूखा लखडों एक चिता बणा , चिता म पोड़ जा। अर अल्लाह से रचनाधर्मिता क आशीर्वाद मांग।
सूत्रधार – छौना जंगळ बिटेन सूखा लखड़ लायी। चिता बणाए अर उखम पोड़ गे. शीघ्रता पूर्वक स्याळन मौलवी चोला उतार अर चिता पर आग लगाई दे। छौना पर आग लगण इ वळ छे कि खाडू व बखरी ऐना अर तौन आग बुझाई अर स्याळ भगायी।
खाडू – छौना ! आज तो बच गे किन्तु सदा इन नि होलु।
बखरी – रचनाधर्मी क अर्थ नी अपर धर्म छुड़न। तीन स्याळ की बात सूण जो कि बखर -ढिबर क धर्म विरुद्ध च। पुनः चिता म पोड़ी सी बि बखर -ढिबर धर्म विरुद्ध च।
छौना – बींगी ग्यों। रचनाधर्मिता का अर्थ यो नि कि हम अपर धर्म छोड़ देवां। अपर धर्म म रैकी इ कुछ नया करण तै वास्तविक रचनाधर्मिता बुल्दन।