गढवाली नाटककार श्रृखला – 2
जानिये गढ़वाली नाटककार श्री डी डी सुन्दरियालके बारे में उनकी जवानी ( श्री डी डी सुन्दरियाल से भीष्म कुकरेती की वार्ता )
(अधिकतर समीक्षक किसी नाटककार के नाटकों के बारे में अपनी प्रतिक्रिया देते हैं। कुछ समीक्षक नाटककार को जानते हैं तो नाटककार के बारे में विषय दे देते हैं। एक समीक्षक स्वयं नाटककार भी होता है। तो यह भी आवश्यक है कि नाटककार अपने विषय में स्वयं भी बताये। इस श्रृंखला में मैं गढ़वाली के प्रसिद्ध नाटककारों के बारे में उन्ही की जवानी जान्ने का प्रयत्न करूंगा -भीष्म कुकरेती )
भीष्म कुकरेती – जी नमस्कार। अपने बारे में संक्षिप्त में जानकारी देकर अनुग्रहित कीजिये
उत्तर – नमस्कार कुकरेती जी। आपने मुझे याद किया उसके लिए आभारी हूँ।
मैं दोस्तो में डी डी के नाम से जाना जाता हूँ पर पूरा नाम दीनदयाल सुंदरियाल है तथा साहित्यिक उपनाम शैलज।
जन्म तिथि – 25 अक्टूबर 1951 है।
जन्म स्थान – ग्राम कुई, पोस्ट जगसियाखाल, चौबट्टाखाल चौन्दकोट परगना, पौड़ी गढ़वाल।
आधारिक शिक्षा – बेसिक प्राइमरी स्कूल जनसंघखाल ( बाद में जगसियाखाल )
उच्चतर शिक्षा – चौदकोट इंटर कॉलेज नॉगावखाल (अब आदर्श अटल राजकीय इंटर कॉलेज ) ।
ग्रेजुएशन कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी, हिंदी में पोस्ट ग्रेजुएशन पंजाब यूनिवर्सिटी से , व्यक्तिगत परीक्षार्थी के रूप में ।
दो साल अंग्रेजी स्टेनोग्राफी सर्टिफिकेट ITI यमुनानगर।
व्यवसाय व आजीविका साधन –सात साल हरियाणा सरकार की सेवा में फिर 1978 से चंडीगढ़ के समाचार पत्र समूह में कार्यरत सन 2011 में उप विज्ञापन प्रबंधक के रूप में सेवा निवृत्त। आजीविका मकान से किराया तथा बच्चों से वित्तीय मदद।
वर्तमान में – पंजाब के मोहाली ज़िले के ज़ीरकपुर कस्बे में निवास । हिंदी व गढ़वळि पठन पाठन व रचना कर्म में व्यस्त ।
भीष्म –बचपन में सबसे पहला नाटक (रामलीला, कृष्णा लीला या अन्य )
उत्तर :राजा हरिश्चन्द्र वीर अभिमन्यु (तीसरी कक्षा उम्र सात साल) । स्वयम प्रथम बार सीता स्वयंवर में सीता की भूमिका 6वी कक्षा उम्र 10 साल
भीष्म –क्या अपने बादी -बदेण के लोक नाटक देखे हैं ?
उत्तर –हाँ । इसके अलावा गढ़वळि में जोकरिंग व रामलीला में हास्य नाटिकाएं, प्रहसन भी देखे हैं
भीष्म –कौन कौन से नाटक शिक्षा लेते समय देखे ?
उत्तर –सीता स्वयंवर, श्रीकृष्ण जन्म, सत्यवान सावित्री, अभिमन्यु वध, हरिश्चन्द्र तारामती
किस नाटककार ने सर्वाधिक प्रेरित किया ?
उत्तर-जो भी धार्मिक नाटक थे उनके लेखकों का नाम पता नही है।
हिंदी में जयशंकर प्रसाद, मुद्रा राक्षस , मोहन राकेश , संस्कृत में कालिदास तथा गढ़वाळि में अबोधबन्धु बहुगुणा, ललित मोहन थपलियाल,राजेंद्र धस्माना, परेश्वर गौड़, जीत सिंह नेगी आदि के नाटक पढ़े । कुछ नाटको का मंचन भी देखा। वहीं से प्रेरना मिली ।
भीष्म कुकरेती -अब तक आपने कितने नाटक लिखे ?
उत्तर – लगभग एक दर्जन
भीष्म कुकरेती – पहला नाटक कौन सा लिखा ?
उत्तर – “मिन नि जाणी “जिसे ऊत्तराखण्ड रामलीला मंडल ने मंचित करवाया था सन 1977 में ।
भीष्म कुकरेती – कितने नाटक प्रकाशित हुए ?नाम दीजिये प्लीज
उत्तर – अभी कोई नही। एक नाटक ‘अकला कंठ ‘ कुलानंद घनसाला सम्पादित सौ साल की नाट्य यात्रा संग्रह में छप रहा है। दस नाटक संग्रह की पांडुलिपि तैयार है।
भीष्म कुकरेती – कौन कौन से नाटक मंचन हुआ –
उत्तर – जौंळ बुरांस, औंसी कु चांद, दानु द्यबता बुढ़ केदार, धौली का आंसू, तीलू रौतेली, जथगा डाड डाड…, अकलाकंठ, सरग दीदा पाणि पाणि, पंछी मास्टर , टीनो कालु बगसा, खंदवार । इसके अलावा सुदामा प्रसाद प्रेमी जी की कहानी ‘गैत्रि की ब्वे’ का नाटकीकरण किया है।
भीष्म कुकरेती – किन किन नाटकों का यूट्यूबीकरण हो गया है ?
उत्तर –कोई नहीं
भीष्म कुकरेती – आपके नाटक किस किस वर्ग में आते है –
उत्तर – सामाजिक, पारिवारिक, ऐतिहासिक विषय
नाटक नाम —जौंल बुरांस ( जातिगत भेदभाव व कुरीतियों से त्रस्त प्रेम कथा का दुखद अंत)
राजनीति , भ्रस्ट -तंत्र , आदि –सरग दीदा पाणि पाणि, जथगा डाड डाड, (शिक्षा व्यवस्था)
सामजिक बुराई दिखते व समाधान —औंसी कु चांद,
पलायन दर्शाते नाटक
आजीविकाहीनता व समाधान – खंद्वार, मिन नि जाणी,
इतिहास गाथा –तीलू रौतेली, धौली का आंसू ( तिलोगा अमरदेव प्रेम कथा )
दानु दयबता बुढ केदार ( नई पुरानी पीढ़ी के बीच तथा पहाड़ी -मैदानी संस्कृति के बीच संघर्ष की कहानी )
शुद्ध व्यंग्य -दानु दयबता बूड़ केदार, अकलाकंठ
शुद्ध मनोरंजन – पंछी मास्टर, टीनो कालू बगसा
स्किट्स या अति लघु नाटक –न
गीत नाटक -न
बाल नाटक – न
भीष्म कुकरेती – नाटक लिखने से पहले विषय मन में कैसे आते हैं ?
उत्तर – आस पास देखकर, पढ़कर, बचपन से ही अनुभव करके
भीष्म कुकरेती -साधारणतया कितने दिन मन ही मन में नाटक बुनते हो ?
उत्तर – कभी समय सीमा में नही बंधा । हां जब मंचित करने का मन हो तो कहानी कागज पर उतार उसे महीने डेढ़ मछीने में सीन क्रम में लगाना ओर पटकथा तैयार करने में लग जाता था। संवाद तो रिहर्सल तक बनते ही रहते थे।
भीष्म कुकरेती – कितने दिन में नाटक पूरा हो जाता है
उत्तर – लगभग दी महींने ।
भीष्म कुकरेती – चरित्र चित्रण हेतु क्या तकनीक अपनाते हो ?
उत्तर – विशेष कुछ अलग से नही होता। बस कहानी के हिसाब से देखे भाले चरित्र को आधार या कल्पना से उकेर देता हूँ।
भीष्म कुकरेती – आपके नाटकों में संवादों के बारे में स्वंम की राय ?
उत्तर – संवाद छोटे छोटे, चटपटे ओर मुहावरेदार अच्छे लगते हैं। निरदेशक व अलग अलग क्षेत्रो के कलाकारों की भाषा का ध्यान रखना पड़ता है।
भीष्म कुकरेती – उद्देश्य को कैसे दर्शकों के सामने लाते हो ?
उत्तर – नट नटी संवाद या फिर पृष्ठ कमेंट्री से ।
भीष्म कुकरेती – वार्तालाप के कुछ उदाहरण दीजिये ।
उत्तर —
नटी :यो कैकू भारू बोकनू होलु नरु डुटयाल आज ?
नट : ये डुटयाल 2 क्या होता है। मयरो नां नरबहादुर है, शमझी?
नटी: ओहो, नरबादरजी किसका बोझा बोक रहे हो?
नट : ओ जगदीश का , मंगतू बोड़ा का नोनू —ब्वारी लेकर जा रहा है दिल्ली
नटी : हो त ह्वेगी एक हौरि कूड़ी खनद्वार !
नट– ऐंसा क्यू बोलती है, ब्वाडा है न
नटी — (गिच्छु लंमु कैकी)हाँ ब्वॉडा है न ? जूनि जलड़ा खैकी अयूँ छ ब्वाडा !” ( नाटक खन्द्वार )
सुरेश के घर बीमार मामा आया है इलाज के लिए कुल्हाड़ी से पैर में घाव है।
” सुरेश — मामा जी इथगा दिन बिटी इलाज नि करै आपन ?
मामा — नि करें हाँ!सब कुछ करै, डामु छ, अलमोडू लगाई, उच्छाणु, परौखणु करि, झाड़ा ताडा सब्या कुछ करि
विधाता : कखि डॉक्टर म नि गैनी सिनगार, पौड़ी, कुटदर
मामा — द ब्वारी बी छवी, वख बिना जाण पछ्याँण कैन पूंछणा — अर सरकारी म कबि डॉक्टर नी कबि दवे नी –वख मोरणा कु ही जालो क्वी, हस्पताल निन ब्वारी बूचड़खाना छन वो –“
भीष्म कुकरेती – भाषा कौन सी प्रयोग करते हो ?
उत्तर — प्रमुखतया सिनगरी व चौन्दकोटी ।
भीष्म कुकरेती – इतर भाषाओं उर्दू , अंग्रेजी , हिंदी का प्रयोग कैसे करते हो ?
उत्तर – चरित्र, काल, जगह के हिसाब से औऱ दर्शकों की समझ को ध्यान में रखकर।
भीष्म कुकरेती – दर्शक भिन्न भिन्न क्षेत्रों के होते हैं तो भाषायी कठिनाई को सुलझाने के लिए क्या करते हो ?
उत्तर – कोसिस रहती है वही शब्द प्रयोग हों जो सामान्यतया सभी क्षेत्र के लोग समझ लेते हैं, अर्थात हिंदी उर्दू अंग्रेजी के शब्दों को सम्मिलित करते हैं।
भीष्म कुकरेती – मंचन हेतु क्या क्या कार्य करते हो ?
उत्तर – पहले तो धन की व्यवस्था, फिर क्लाकारों की खोज, फिर मंच सामग्री , रिहर्सल की तैयारी, पब्लिसिटी बहुत सारे काम होते हैं
भीष्म कुकरेती – निदेशक को ढूँढना या प्रदर्शक को ढूंढा कौन अधिक कारगर साबित हुए हैं ?
उत्तर – कुछ दोस्तों ने गढ़ कला संगम नाम से संस्था बनाई थी। हमारे नियमित सदस्य निर्दशक प्रदर्शक, से लेकर सामान ढोने का काम स्वयम करते रहे हैं। परिवार की स्त्रियां साज सज्जा वेशभूसा का जिम्मा लेती रही। बच्चे भी सहयोग करते रहे। केवल संगीत वालों को पैसे देने पड़ते थे।
भीष्म कुकरेती – गढ़वाली नाटक प्रकाशन की क्या क्या समस्याएं हैं ?
उत्तर – समस्याएं ही समस्याएं । नाटक ही क्यों, सभी गढ़वळि साहित्य के प्रकाशन में प्रकाशक पैसे लगाना जोखिम का काम समझता है। अपनी ख़ुशी के लिए लेखक जेब से पैसा खर्च करके कोई किताब प्रकाशित भी कर दे है तो बेचे कैसे? पाठक नही हैं। सौ दो सौ जो खुद साहित्यकार हैं, फ्री कॉपी चाहते हैं । गढ़वळि पढ़ना हर एक के बस की नही। फिर समीक्षक भी नही हैं। पुस्तक प्रकाशन हेतु
सरकारी सहायता कुछ भाग्यवानों को ही प्राप्त होती है।
भीष्म कुकरेती – गढ़वाली नाटकों के मंचन की समस्याएं क्या हैं व समाधान (विस्तार से ) –
उत्तर – हमारे समय में स्त्री पात्रो को व्यवस्था टेढ़ी खीर थी। समाज जवान लड़कियों को मंच पर देखना पसंद नही करबता था। यदि कोई ठीक ठाक नाहिला अभिनय के लिए तैयार हो भी जाती तो अपने साथ अपने पति के साथ ही अब चाहे पति का व्यक्तित्व अथवा अभिनय क्षमता रोल के आस पास भी न हो। गैर गढ़वळि स्त्री कलाकार मिल जाते पर उनके साथ भाषा की दिक्कत होती थी । दूसरा सब गैर पेशेवर कलाकार थे । अपनी नॉकरी व परिवार के समय के बाद ही मंच की बात सोच सकते थे। रिहर्सल आदि के लिए समय और जगह की भी समस्या थी। पैसा खर्च करके दर्शकों को हॉल तक लाना भी एक समस्या थी।
भीष्म कुकरेती – अपने नाटकों के बारे में क्या कहेंगे ?
उत्तर– दरअसल हम आठ दस लोगों की टीम थी। कहानी, गीत, ध्वनि, इफ़ेक्ट, प्रकाश, साज सज्जा, मंच प्रोपरटी, धन, सभी व्यवस्था मिलजुलकर होती थी।
कहानी, गीत, पटकथा, संवाद का जिम्मा मेरे अलावा नारायण दत्त लखेड़ा , बलवंत रावत कविराज, चंडी भट भारती, राजेन्द्र नेगी (राजू निर्जल) का होता था। मंच धन प्रोपेर्टी आदि स्व आलम सिंह रावत, राजेन्द्र उनियाल,स्व ओम प्रकाश धस्माना , प्रकाश राजू निर्जल, जसवंत रावत, आदि पार्श्व गायन आलम रावत जी की बेटियां कविता , संगीता तथा प्रेम सिंग नेगी प्रमुख थे।
जसवंत रावत -उर्मिला, मुरली नवानि- कुसुम, सुनीता जुयाल-परमानंद जुयाल, कमला राणा -राजू नीर जल, डी डी -सुशीला सुंदरियाल नाट्य मंच स्थायी जोड़ियां रही।
हमारे दर्शक मुख्यत गीत नाच गाना कैटेगरी में थे। नाटकों का कल्चर ही नही था । (अब फिर खत्म हो गया है। ) इसलिए पहले नाटकों में कुछ नए प्रयोग किये परंतु बाद में पारिवारिक सामाजिक कहानियों पर फोकस रहा जिससे गीत संगीत और नायक नायिका, एक हास्य कलाकार की अहम भूमिका रहती ताकि लोगों को फ़िल्ममय वातावरण मिले । यह प्रयोग सफल रहा और पहली बार चंडीगढ़ में टिकट बेचकर हमने नाटक प्रस्तुत किये। इसके अतिरिक्त 1985 -86 में कुछ आधुनिक जवान अविवाहित लड़कियां ऐसे नाटकों में काम करने को तैयार हो जाती , शायद tv, फिल्मों का विस्तार इसकी वजह रही हो।
भीष्म कुकरेती -अपने को गढ़वाली नाट्य संसार में कहाँ रखना चाहोगे ?
दिल्ली देहरादून के बाद सबसे अधिक नाटको का मंचन यदि कही हुआ है तो चंडीगढ़ है और इस आंदोलन की शुरुवात मैने ओर मेरे कुछ साथियों ने 1978 में गढ़ कला संगम की स्थापना के साथ की और दो दशकों तक नाट्य मंच सक्रिय रहा। गढ़ कला संगम के नाटकों की लोकप्रियता देखते हुए लगभग आधा दर्जन नाट्य संस्थाओं का चंडीगड़ में उदय हुआ । इस बात का मुझे गर्व है। जहां तक पायदान का प्रश्न है, इसे दर्शक ओर आप जैसे समीक्षकों पर छोड़ता हूँ।
भीष्म कुकरेती – गढ़वाली नाट्य संसार में आपको कैसे याद किया जाएगा ?
उत्तर – आज जब कि गढ़वळि नाटक मंचन समाप्ति की ओर है, नाटक संग्रह प्रकाशन कठिन कार्य है, मुझे कोई याद भी रखेगा इसकी उम्मीद में नही रखना चाहता हूँ । वैसे भी संन 1995 के बाद गढ़ कला संगम नाट्य मंच से उदासीन हो गया और मैने भी कोई नया नाटक नही लिखा।
चंडीगढ़ में गढ़वाली नात्क्कों की अलख जगाने के लिए याद किया जाउंगा
चंडीगढ़ गढ़वळि नाट्य जगत में खुद को सबसे प्रथम पंक्ति पर पाता हूँ।