Food Recipes Sanskrit from Uttarakhand
Uttarakhand Medical tourism in British Period
लेखक : भीष्म कुकरेती (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
प्रत्येक पर्यटन में भोजन आकर्षण सर्वोपरि होता है। हम स्थान के बारे में अधिक याद नहीं करते किन्तु स्थान में खाया भोजन व गंध -सुगंध को बहुत देर तक याद करते रहते हैं। पर्यटन छवि वर्धन स्थान भोजन व भोजन विधि याने फ़ूड रेसिपी पुस्तक प्रकाशन अत्यावश्यकअवयव होता है।
राजा सुदर्शन शाह के सभासद पंडित हरि दत्त नौटियाल (जन्म 1766 ?) ने संस्कृत में भोजनावलि: रचकर संस्कृत में फ़ूड रेसिपी साहित्य को अक्षुण रखा।
भोजनावलि: में १३२ पद्यावली हैं. इस शास्त्र में दो भाग हैं – प्रथम भाग -शाकान्त व उत्तर भाग में मांस वर्ग का विवेचन है।
प्रथम प्रकरण में – फल विवेचना है जिसमे खजूर्रर , नारिकेल , खुद्दरल , सिबिका , निवजा , राजादन , श्रीरसाल , नवनागरंग , कदली फल , सुकंटीक , इक्षुदंड , गौरीफल , श्रीपर्णिका , बीजपूरम , प्रभृति फलों का वर्णन है।
डा प्रेम दत्त चमोली अनुसार मिष्ठान प्रकरण में मिष्ठान निर्माण विधि व गुणों का वर्णन है जिसमे मोदक , दुग्धवटी , श्रृंगी। मिष्टमण्डली का वर्णन है
,घीवर , मुकुंदवाटिका , अपूप , पूरिका , नवनीत , मांसयूष , राजमारस , माषवटी , मुकुंदवटिका , मिष्टोदन , गुलकंद , पर्पटपट , दधिवटक , कदलीफलशाक , वृताकशाक , मूलीयशाक , मेथीपलिंगशाक , शिवचरणकसुशाक , कोशातकीयशाक ,राजकोशातकीयशक , भिनीमालुकशाक , जयंतीकाशाक , मृणालशाक , निष्पाव शाक , पिंडालू आदि पदार्थों के निर्माण विधि व गुणों का आयुर्विज्ञान की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं
मांसवर्ग में भी विभिन्न मांश भोजन निर्माण विधि , भक्षण व गुणों पर भरपूर प्रकाश डाला।
काव्य में सर्यूळ ज्ञान -सूद विद्या भरपूर झलकता है। लगता है पंडित हरि दत्त नौटियाल ग्यानी व अनुभवी पाक शास्त्री थे। नौटियाल के अनुप्रास अलंकार का उपयोग से पाठक को भोज्य रसानुभूति स्वयं हो जाती है। हरिदत्त नौटियाल ने गढ़वाल में प्रचलित भोज्य पदार्थ झोळी , पळिंग आदि की भी रेसिपी दी है –
उच्चैरर्पितसर्पिषा तदुचित दर्व्यैश्च पूर्वचितां
पश्च्चाजीरसुगंधितां सुखिहिनां
पश्च्चाजीरसुगंधितां सुखिहिनां ‘झोली ‘ त्वमङ्गीकुरुं।
पंडित हरि दत्त नौटियाल द्वारा भोजनावलि: कृति रचने के कारण उन का नाम सदा उत्तराखंड पर्यटन इतिहास में अमर रहेगा