
प्रेरक वैज्ञानिक जीवन व वैज्ञानिक शोध कहानियां श्रृंखला
300 से बिंडी गढ़वळि कथा रचयिता : भीष्म कुकरेती
प्रो दाराशा नौशेरवां वाडिया को प्रयत्न से ही हिमालयी भू विज्ञान संस्थान स्थापना ह्वे जैक नाम आज च वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान देहरादून ।
दाराशा नौशेरवां वाडिया को जन्म सूरत म 25 अक्टूबर 1883 कुण ह्वे छौ। डाक्टर दाराशा क बुबा जी ईस्ट इण्डिया कम्पनी कुण जल पोत निर्माण करदा छा। दराशा नौशेर वाडिया क भैजि एम् एन वाडिया एक शिक्षाविद छा यूंक प्रभाव से दारा को प्रेम विज्ञान से ह्वे । तौंकी प्रारम्भिक शिक्षा गुजराती स्कूल म ह्वे अर पैथर अंग्रेजी स्कूल म।
बारह वर्ष की आयु म शिक्षा हेतु सि बड़ोदरा ऐन ,
बड़ोदरा म दाराशा न 1905 म विज्ञान , (प्रकृति विज्ञान , वंशपति विज्ञान ) से ब्रोडरा कॉलेज से स्नातक डिग्री प्राप्त कार। कॉलेज क प्रिंसिपल डाक्टर अदार जी मसानी क प्रेरणा से दाराशा क झुकाव भूविज्ञान क जिना ह्वे। तब भूविज्ञान अपर प्रारम्भिक काल म ही छे। स्नातक म बि तौंन भूविज्ञान की पढ़ाई कार।
स्नातक क उपरान्त कुछ समय हेतु दाराशा नौशेरवां वाडिया बड़ोदा कॉलेज म व्याख्याता रैन।
बाद म 1906 म वाडिया की नियुक्ति प्रिंस ऑफ़ वेल्स कॉलेज जम्मू म व्याख्याता क रूप म ह्वे। जम्मू म वातावरण वाडिया अनुसार अन्वेषण हेतु छौ। कॉलेज म भूविज्ञान क फैकल्टी व अन्वेषण प्रारम्भ करणो कार्य दिए गे।
प्रोफेसर वाडिया की 1921 म भारतीय भूविज्ञान सर्वेक्षण क उप अधीक्षक पद पर नियुक्ति ह्वे। 1906 से 1921 तक जम्मू म शिक्षक क रूप म वाडिया तैं हिमालयी भूविज्ञान को अध्ययन करणो पूरो अवसर मील। भौत सा हिमालयी भूविज्ञान क ज्ञान प्राप्त कार। 19 19 म प्रोफेसर वाडिया की पुस्तक ‘जिओलॉजी ऑफ़ इंडिया ‘ (मैकमिलन पब ) प्रकाशित ह्वे। यीं खोजपूर्ण पुस्तक से प्रोफेसर वडिआ जग प्रसिद्ध ह्वे गेन।
भूविज्ञान सर्वेक्षण संस्थान म वाडिया तैं उत्तर पश्चिमी हिमालय क भूविज्ञान पर गहन खोज को अवसर मील।
1938 तक प्रोफेसर वाडिया भारतीय भूविज्ञान सर्वेक्षण संस्थान से जुड्यां रैन। ये अवधि म तौन कति हिमालयी भूविज्ञान अन्वेषण का पेपर प्रकाशित करिन व जर्मनी ऑस्ट्रिया , चेकोस्लेविया देशों क यात्रा बि कार। उत्तर पश्चिम हिमालय की अक्ष संधि , नंगा पर्वत क भूवैज्ञानिक विषय पर जेनेवा कौंफिरेंस म प्रोफेसर वाडिया न पेपर पौध व तौंकी अंतराष्ट्रीय स्तर पर धाक म वृद्धि ह्वे।
प्रोफेसर वाडिया 1938 को उपरान्त श्री लंका भिजे गेन जख तौं तैं खनिज वैज्ञानिक क पद पर पदासीन करे गे। छह वर्ष तक सि श्रीलंका म रैन।
1944 म प्रोफेसर वाडिया तै भारत सरकार क भूविज्ञान विभाग म सलाहकार नियुक्त करे गे।
भारत सरकार न 1949 म परमाणु खनिज प्रभाग की स्थापना कार अर प्रोफेसर दाराशा नौशेरवां वाडिया तैं निदेशक नियुक्त करे गेन। मृत्यु पर्यन्त ( 15 जून 1969 ) प्रोफेसर वाडिया ये पद पर रैन।
प्रोफेसर वाडिया तेन हिमालयी भूविज्ञान से भौत प्रेम छौ। प्रोफेसर वाडिया क पहल व प्रयास से हिमालयी भूविज्ञान संस्थान खुले गे। बाद म ये नाम बडलिक वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान करे गे।
हैदराबाद म भूविज्ञान संस्थान , गोवा म महासागर विज्ञान संस्थान खुलणो पहल बि प्रोफेसर वाडिया न करी छे।
रोयल जिओग्राफिकल सोसाइटी ( 1934 ) लंदन जियोलॉजिकल सोसाइटी ( 1945 ) न प्रोफेसर वाडिया तै पुरष्कृत कार।
भारत म कतगा इ वैज्ञानिक संस्थानों न प्रोफेसर दाराशा नौशेरवां वाडिया तै सम्मानित व पुरुष्कृत कार।
भारत सरकार न प्रोफेसर बाडिया तेन पदम् भूषण से सम्मानित कार।
भारत सरकार न सम्मान म एक पोस्टल टिकट बि रिलीज कार।
भारत म भूविज्ञान क शोध की शुरुवात व शोध सिस्टम तै संबल देणो हेतु प्रत्येक भारतीय प्रोफेसर दाराशा नौशेरवां वाडिया क ऋणी च।