आंचलिक भाषायी (गढ़वाली -कुमाऊंनी ) नाटकों में बाल कलाकारओं की अल्प संख्या
बाल कलाकार श्रृंखला -१
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आंचलिक भाषायी (गढ़वाली कुमाऊंनी ) नाटकों की चुनौतियां – 9
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भीष्म कुकरेती (भारतीय साहित्य इतिहासकार )
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आंचलिक (गढ़वाली -कुमाऊंनी ) भाषायी नाटक कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करते हैं। एक चुनौती बाल कलाकारों की अल्प संख्या में उपलब्ध होना भी है। शेरोन में यह चुनौती पालकों द्वारा बच्चों को नाटक अभिनय में न भेजने के अतिरिक्त बच्चों का गढ़वाली या कुमाउँनी भाषा न बोल सकना भी बड़ी चुनौती है।
जो बाल कलाकार अभिनय में सक्षम भी हो तो भी यदि नहे भाषा बोलना न आये तो बाल कलाकार से लाभ नहीं मिल पाता।
ग्रामीण परिवेश में ही नहीं शहरों में भी माता पिता बच्चों को नाटकों में आने हेतु प्रोत्साहन नहीं देते।
बच्चों अकेले पूर्वाभ्यास हेतु आना जाना चुनौती है व बहुत बार माता पिताओं को बच्चों को रिहरस्ल स्थल तक ले जाना लाना कठिन होता है।
घर में बच्चे को नाटक स्वयं में रिहरस्ल हेतु वातावरण का न मिलना।
मुहल्ले में या बच्चों के रिश्तेदारों मध्य नाटकों के प्रति उदासीनता।
माता पिता को यह पहचान नहीं पाते कि बच्चे में नाटक के प्रति इच्छा है या नहीं या अभिनय क्षमता है या नहीं।
माता पिताओं को यह निश्चय न कर पाना कि अपने बच्चे को किस उम्र में नाटकों में भाग लिवाया जाय।
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बच्चों को नाटक में प्रवेश से कई निम्न लाभ हैं
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ग्रामीण क्षेत्र हों या शहरी क्षेत्र बच्चों को नाटकों में अभिनय से कई लाभ मिलते हैं –
१- बच्चों में रचनाधर्मिता वृद्धि होती है।
२- बच्चों में नाटक खेलने से चौकन्नापन गुण में वृद्धि होती है।
३-आत्म विश्वास वृद्धि होती है। लज्जा दूर होती है
४- बच्चा सहकारिता व दूसरे से कार्य करवाने में निपुणता हासिल करन सीख जाता है।
५- समय प्रबंधन में सुधर होना
६-धैर्य रखने की आदत पड़ना
७- मानसिक दृढ़ता में वृद्धि
८- बच्चे मनुष्यों की मूल्य को महत्व देना सीख लेते हैं।
९- जीविका / व्यवसाय कैरियर में लाभ होता है। डिबेट आदि में लाभ। इंटरव्यू सरल हो जाता है।
१०- टीवी सीरियलों , फिल्मों , वेब सीरीज व टीवी समाचर चैनल में जीविका के अवसर बढ़ जाते हैं।
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माता पिता कैसे पहचाने कि बच्चा अभिनय करने हेतु उपयुक्त है ?
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यदि आपका बच्चा /बच्ची बात करते समय नाटकीय प्रदर्शन करता हो व नाटक देखने को लालायित होता हो..
विद्यालय में नाटकों या सांस्कृतिक कार्यकर्मों की चर्चा करता हो या स्टेज जाने को सदा ललायित हो।
बच्चा सही व्यवहार वाला है।
बच्चा उत्तरदायी प्रकृति का है।
आपके पास बच्चे /बच्ची के नाटक प्रवेश व सफलता हेतु समय है (निकालो ) , धैर्य है , ऊर्जावान हो।
बच्ची /बच्चा साहसिक कार्य में भाग लेने को तैयार हों।
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कैसे माता पिता को बच्चों को नाटकों भाग लेने प्रोत्साहन देना चाहिए ?
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बचपन से ही बच्चों को मुहल्ला , सामुदायिक सांस्कृतिक कार्यकर्मों में स्टेज में भाग लेने हेतु भेजिए।
विद्यालय में सांस्कृतिक कार्यकर्मों में भाग लेने हेतु उत्साह दिलाइये व प्रोत्साहन दीजिये। अध्यापकों से सम्पर्क आवश्यक है।
बच्चे की जान पहचान मुहल्ले या जान पहचान वाले नाट्य शिल्पी से कराइये व जब भी अवसर मिले बच्चे को नाट्य श्ल्पि से मिलवाते रहिये।
बच्चे को योग व बाल खेल में भी भाग लेने को प्रोत्साहन दे।
बच्चा /बच्ची यदि संगीत-नृत्य में रूचि रखता हो तो सामुदायिक /मुहल्ला संगीत या नृत्य में कार्य कर्मों में भाग लिवाइये। घर में अभ्यास कराईये व ट्यूशन करवाईये।
यदि बच्चा/बच्ची अभिनय में रूचि रखा है तो किसी ऐक्टिंग स्कूल में ट्युसन दिलवाइये।
नाटक खेलने के लिए घर में अभ्यास करवाईये
घर में नाटक अभिनय हेतु इंटरनेट पर प्रबंध
बच्चे के साथ पूर्वाभ्यास में साथ दीजिये
आवश्यकता पड़ती है तो बच्चे को लेकर टीवी सीरियल या फिल्म ऑडिसन में भाग लिवाइये
यदि कोई नाट्य क्लब / संस्था जैस इप्टा , आदि हो तो क्लब की सदस्य्ता ले लेनी चाहिए।
बच्चों को नाटक देखने भेजते रहिये
बच्चों को सांस्कृतिक कार्यक्रमों को देखने का भी अवसर दिलवाइये
घर में नाटकों की पुस्तक लाईये।
नाटककारों की जीवनी पुस्तक घर में रखिये।