(गढ़वाल की पशु बलि संस्कृति कथा )
(मेरी ददि स्व श्रीमती कुंती सिल्सवाळ कुकरेती अर बड़ि ददि स्व श्रीमती क्वांरा देवी रिगड्वाळ कुकरेती तैं समर्पित )
245 + कथा रचयिता : भीष्म कुकरेती
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गांवम सिल्सवळी अर रिगड्वळी द्वी द्यूराण -जिठाण्युं मध्य जब तून लगदन तो तबि लगद कि यि अछेकि द्यूराण -जिठाण छन निथर त पिटा लुटि क बैणि जन ब्यव्वार च दुयुं आपस म। दुयूंक बूड ससुर एक छौ। चार उबर मंज्यूळ वळ कूड़ च द्वी एक मौ क द्वी एक मौक। . सँजैत चौक समिण चार पांच फांग सग्वढ़ दुयुं म। छन्नी बि दू दु। भरपूर जिम दरू, द्वी मौक लैंद गौड़। द्वी द्यूराण -जिठाण म छौंदी -निछौंदी क झगड़ा कबि नि ह्वे। बच्चों न एक हैंक क ड्यार हौग दे , मूत दे बान बि कबि झगड़ा नि ह्वे। दुयुं क मनण छौ बल बच्चों क हौग -मूत फिड़न म बि शत्रुता हूंद ?
दुयुंक बच्चा जणदा इ नि छा कु रुस्वड़ कैक च जखि पैल खाणो पक जावो ताखि बच्चों क खाणक। बैक दुसर घर।
भाग्य से द्वी द्यूराण -जिठाण्युं म पति क मध्य धन व पदो क अंतर् बि नि छौ। द्वी सेना म हवलदार छा। वेतन बि लगभग इकजनि।
वर्तमान कलजुग म सहयोग क इन उदारण मिलण सौंग नि हूंद। इन उदारण निसौंग हि।
मित्रता हूणो अर्थ नी कि दुयुं म मतभेद नि हूंद हो। जब द्वी अपर अपर सिद्धांतों क हेतु वादविवाद हो तो यूंक तर्क सुणनो गांवक बिठलर इ कट्ठा नि हूंदन देवी दिवता बि तौळ निड़ै जांदा होला। जब क्वी अपर सिद्धांतों प्रति आत्म समर्पित हो तो अबूझ ,विद्वतापूर्ण तर्क या दर्शन सिद्धांत क समर्थन म अफि शब्द मिल जांदन यु यूं दुयूं क तून लगण से सिद्ध हूंद। द्वी जब अपर अपर सिद्धांत हेतु तर्क दींदन तो यदि चाणक्य अर चन्द्रगुप्तमौर्य यूंक तर्क सुणदा तो अवश्य ही लज्जित ह्वे जांद। जब महाराजा चन्द्रगुप्त न राज पाठ छोड़ि जैन धर्म अपनाणो सूचना महामात्य कौटिल्य तै दे तो इनि वाद -विवाद ह्वे ह्वाल जन द्वी द्यूराणि -जिठाणि मध्य हूंद वर्तमान म।
द्यूराण सिलस्वळी ह्वे जनमजात निशिकार्या। निशिकार्या इ क्या या जात पशु हत्त्या तो छवाडो पशु शिकार पर हथ बि नि लगांद। यूँक जाति म प्रसिद्ध च कि जु कै सिलस्वाळन शिकार खायी तो वो कोढ़ी ह्वे जांद। सिलसु दिवता क श्राप ब्वालो या आशीर्वाद कि सिलस्वाळ शिकार नि खै सकदन। सिलस्वाळ ढिबर -बखर पळ्दा छन किंतु जब बि कबि ढिबर -बखर मोर जा तो सिलस्वाळ मर्यूं चैण (पशु ) पर हथ नि लगांदन अर गाँव म सब तैं दे दींदन या कखि सगा संबंधियों कुण भिजवै दींदन। सैकड़ों वर्षों से या संस्कृति सिलस्वाळुं मध्य जीवित च। जब बि क्वी सिलस्वळी नौनी कखि बिवये जांदी तो ससुराल वळ बि प्रयत्न करदन कि सिलस्वळी ब्वारि तै अपर जाति धर्म निभाणो पूरी स्वतन्त्रता हो। सिलस्वळी ब्वारी क रसोई म कभि बि शिकार नि पकाये जांद। कबि भुलमार म सिलस्वळी शिकार पर भिड़े गे तो वींक सरैल पर दमळ उपड़ी जांदन अर वा हीन से हीन द्वी दिन तक कणाणि रौंद खज्जि से। तो सिलस्वळी ससुरास वळ ध्यान रखदन कि लिस्ट -बीस्ट न हो छुवाछुत न हो।
जब बि ससुरास म देव – दिवता प्रसन्न करणों हेतु पशु बलि ह्वे तो सिलस्वळी ब्वारी अपर मैत चल जान्दिन। यु एक अलिखित संस्कृति च जो सब मणदन।
दुसर जिना जिठाण रिगड्वळी क बान हि बिगळीं छ। जिठाण रिगड्वळी ह्वे जंगळों से घिर्यूं गांवक। जख इन घणा जंगळ छन कि बिठलर बि सप्ताह म स्वयं घ्वाड़ा पूछ क बाळुन जिवळ बणैक जंगळी कुखुड़ मारि लै आंदन , हिंवल नदी से माछ मारण बि बिठलर सीखि जांदन। भौत दैं जिठाण रिगड्वळी क गांव मा बिठलर अयड़ि खिलणो बि जांदन। अर दशहरा आदि समय सो शिकार पकाण सामान्य बात हूंदी। ग्राम दिवतौं पुजायी म ढिबर -बखर मरण सामान्य संस्कृति च जिठाण रिगड्वळी मैता छ्वाड़। जिठाण रिगड्वळी पक्की शिकर्या बिठलर च। हड्डी तक चबै जांदी जिठाण रिगड्वळी। जिठाण रिगड्वळी तैं ढिबर -बखर कटेंद दैं क्वी दया करुणा पैदा नि हूंदी उल्टां रंगत ही पैदा हूंद झर्र झर्र ।
जब बिटेन सिलस्वळी क घरवळ परलोक गेन तब बिटेन यूंक ड्यार पशु क शिकार इ बंद नि ह्वे अपितु ग्राम देवताओं निबत पशु बलि बि बंद ह्वे गे। किन्तु विधवा जिठाण रिगड्वळी क डेर शिकार खाण , ग्राम देवताओं हेतु पशु बलि चलदी रै। हाँ जिठाण रिगड्वळी प्रत्येक समय यु ध्यान रखद छे कि द्यूराण सिलस्वळी क धरम -बरम भ्रस्ट नि हो।
जिठाण रिगड्वळी क ड्यार दिवता प्रसन्न करणों हेतु पशु बलि क समय आण वळ हो या जिठाण रिगड्वळी क ड्यार शिकार पकणो उपरान्तौ समय हो दुयुं मध्य वी वाद विवाद शुरू ह्वे जांद जो कबि चक्रवर्ती महाराज चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा जैन धर्म अपनाण समय चाणक्य व चन्द्रगुप्त मौर्य मध्य ह्वे छौ। या सम्राट अशोक द्वारा बौद्ध धर्म अपनाण से भारत को हानि ह्वे पर शुंग राज म पाणिनि व अन्य ऋषियों मध्य विचार विमर्श ह्वे।
भल कि द्वी द्विराण -जिठाण बस पांच पास छा किंतु विचारों म हीन नि छा।
एक दैं स्याम स्यामौ भोजन उपरान्त द्वी द्यूराण जिठाण जून क उज्यळ म भांड मंजाणा छा तो पशु हत्त्या पर दुयुं म तून लगण शुरू ह्वे गे। द्वी परिवारों क चौक म पश्वा एकि छौ अर दुयुं कुण भांड मंजाणो चौकी उच्ची छे। भौत समय तक तर्क चल किन्तु कु जीत कु हार क निश्चय तो भेमाता (भगवान ) बै नि कौर सकुद छौ। दुयुंक अपर अपर तर्क हूंदन।
द्वी दिन पैल गांव म बागन गांव वळक द्वी बखर दाड़ी दे छौ तो रिगड्वळी न एक बांटी ले ले। यूं द्वी दिन तक सिलस्वळि क मन व्यवस्था परम्परागत रूप से रचगच राई। पता नी सिलस्वळों तै कु अहिंसा क दर्शन पढ़ांदो कि सिलस्वळि ब्वारि बि बौद्ध , जैन धर्म जन अहिंसक दार्शनिक ह्वे जांदन अर आस पड़ोसी क इख शिकार पकण पर असहज ह्वे जांदन। तौं लगद बल पशु हत्त्या नि ह्वे हो बल्कणम खुंकरी खचांग वूंक सरैल पर लग गे हो। पशु हत्त्या सोचिक ही सिलस्वळि क जिकुड़ी म तलवार क धार लग जांद।
तो स्याम दैं भांड धूंद दैं तून लगण मिसे गे।
सिलस्वळिन छ्वीं शुरू कार , ” ए दीदी तुम शिकारयुं तैं नि लगद कि तुम शिकार खैक वे जानवर क शराप लींदा।?”
” कनो स्यूं , ढिराग या गुलदार सरा जीवन भर जीव हत्त्या करदन तो तौंपर कथगा पाप लगद ? रिगड्वळी उत्तर छौ। “
” पर सि त जानवर छन अर हम तो मनिख। ” सिलस्वळि उत्तर छौ।
” ऊं बुड्यों तैं बुगठया टंगड़ी रस से कथगा बुड्या स्वस्थ हूंदन अर चार बीसी से बिंडी जीवित रौंदन। ” रिगड्वळी क तर्क हूंद छौ।
सिलस्वळी न गरुड़ पुराण क उद्धहरण दे जो वींन भौत दैं कैक मरण उपरान्त गरुड़ पुराण सुणद दैं सूण छौ कि “स्वार्थ पूर्ति कुण पशु हत्त्या करदन वूं तै नरक म गरम तेल म पूरी जन तळे जांद। “
सटीक तर्क नी बि छौ तो बि रिगड्वळी क उत्तर छौ , ” अर जौं राजाओं न सैकड़ों मनिख मारिन ऊं तैं त सोराग मील कि ना ? पांडवों न कथगा इ घ्वीड़ -काखड़ अर कुरुछेत्र क लड़े मा सैकड़ों सैनिक मरिन तो तौं तै तो सोराग मील अर वो सोरग गढ़वाळ ह्वेकि गेन.”
कुछ समय उपरान्त जब भांड मंजांण समाप्त ह्वे ना कि दुयुंन हिंसा -अहिंसा की छ्वीं समाप्त कौर अर पुनः प्रतिदिन क कार बाऱ करणों छ्वीं पर ै गेन। यु लगभग दुयुं क अणलिख्युं नियम सि गे कि हिंसा -अहिंसा क मतभेदी लड़ै तै मनभेद म नि पलटदन।
वैदिन बि तर्क को उपरान्त दुयुंन हौळ -धाण , बीज क छ्वीं छाळ करिन।
ये दिनक कुछ समय उपरान्त गांवम एक विचित्र वातावरण बणन शुरू ह्वे। गांवक बच्चा ,बेटी -ब्वारी , बिठलर , लरख्यरों अंदर एक विलखणी उत्साह ,उलार , उत्साह संचरण शुरू ह्वे गे। क्या शिल्पकार , क्या जजमान अर क्या बामण सब पर विचित्र ऊर्जा भरे गे छे। रोमांच , साहस , कुछ करणो जन उत्साह। कुछ दिनों म गाँव लगभग बीस वर्ष उपरान्त सामूहिक कालरात्रि पूजा उराये गे छे तो सब अनुभवी ही ना अपितु जौं तैं अनुभव नि छौ वो बि आण वळ काळि रात्रि पूजा कन ह्वेलि , क्या ह्वेलि म ही आज से ही मुग्ध व रोमांचित छा। प्रवासी बि सपरिवार आणा छा तो तौंक रौण -खाण की बि चिंता गाँव वळों म छौ। तौंक प्रबंध हेतु गॉंव वळों न प्रभंध कौरी याल छौ कि कतना दिन सँजैत फौड़ लगल। सब्युं कुण नास्ता से लेकि स्याम तक क भोजन प्रबंध बि ह्वे गे छौ। जौंक घर उजड़ गे छौ कुछुंन कूड़ दुबर पुनर्निर्माण कराई ये छौ कुछून डर न्य ही कूड़ बि चिणवै याल छौ। जौन कूड़ो मरोम्मत नि करवै छौ तौन चिठ्ठी पतरी से इ रौणो प्रबंध कराई ये छौ। शेषों कुण गाँव म स्कल म सीणों प्रबंध छौ। सब्युंन अपर अपर विशेष सगा संबंध्यूं तैं ंयुत दिए छौ। तो गाँव म कालीरात्र पूजा से पैली इ अप्रत्यासित भीड़ हवेली को लेखा जोखा बि ह्वे गे तो गांवम लाला बैसाखू तैं पूरी दिशा निर्देश बि दिये गे छे कि कुछ बि वस्तु क हीनता नि हूण चयेंद। बैसाखू न सबसे पैल प्रबंध बोतल बातलों क कार । मिल्ट्री वळों पर बि भार पोड़ कि बोतल बातलों प्रबंध बि ह्वे जाओ। शेष तो ये विषय म अफि प्रबंध कारल। गांव वळों न सामूहिक पूजा दिन देवी मंदिर म सुरा चढ़आणो उत्तरदायित्व ले इ याल छौ।
एक वर्ष पैल इ निर्णय अनुसार एक ब्याला सिरये गे छौ। सरा गाँव वळों ब्याला क देख रेख को प्रबंध छौ। प्रत्येक मवासा चाहे वो प्रवासी हो या गंवड्या हो सब्युंन अपर अपर बुगठया सिरे याल छौ। गाँव म अनुभवी या अनुभव हीन सब रोमांचित छा कि यूं द्वी तीन दिनों म मवराँ बुगठया कटे जाला , कुछुंन खाडू बि सिरायों छौ तो तौंक बि बलि चढ़ली। कत्ती आज से ही पशु मुंडळि कटेंद क कल्पना म व्यस्त छा। भौतों तै रक्त दिखणो रोमांच से ही झर्र झर्र को आनंद मिलण लग गे छौ। रक्त की छळाबळी भौत छौ पुळेणो , रोमांचित हूणो। गांव वळ इ ना गांव वळों न्यूतेर सगा संबंधी बि रक्त की छळाबळी सोचिक ही रोमांचित छा व शिकार खाणों मीलल क कल्पना से ही आनंदित छा। बलि से रक्त को रोमांच सब्युं म छौ।
सबसे बिंडी रोमांच तो या कल्पना छे कि गांवक चारों ओर ब्याला भगाये जाल व ब्याला पर तलवार , खुंकरी , थमाळी से कचांग लगांद लगांद ब्याला भगाये जाल। हीन जिकुड़ी वळ ब्याला पर कचांग मरणों हेतु जिकुड़ कैड़ो करण क हभयास करणा छ गाँव म बि अर प्रवास म बि। ब्याला घुमाणों बाटो बि चिन्हित ह्वे गे छौ। बुगठया , खाड़ू को को मारल हेतु बि बैक चिन्हांकित ह्वे गा छा। अबि बिटेन गांव म रक्तिम वातावरण बण गे छौ। बच्चा बि मार काट क कविता गाणा छ। आला उद्दल क गाणा एक को मारुं दूसरा गस खाके मर जाय ‘ बच्चों क जीब म ऐ गे छौ। बच्चों तै मार्कण्ड पुराण क कथा वरिष्ठ बैक सुणैक देवी महत्तम समझाणा इ छा। गांव वळों गुरु व दुसर पंक्ति का बामण बि पुळेणा छा कि इथगा इथगा जजमानों क इख ये ये दिन पूजा करण. सब निश्चित ह्वे गे छौ। शिल्पकारों बामण बि प्रस्सन्न छौ। यूं बामणों न अपर भोजन व्यवस्था हेतु गांवक बिट्ठ परिवारों दगड़ निश्चिर कर याल छौ। यि बामण शिल्पकारों क इख पूजा तो करदा छन किंतु भोजन बिट्ठों घर करदन।
व्यस्त तो जागरी अर डौंर्या न हूण। प्रवास्यूंन देवी घडेळा क अतिरिक्त नागराजा , नर्सिंग , कैंतुरा आदि क घड्यळ भी धरण इ च। काळि रात्रि पूजन से पांच दिन पैल बिटेन जागृ न सुबेर बिटेन रात तलक चार -पांच घड्यळ तो धरण ही छन। सब्युंन चिट्ठी से जागृ दगड़ निश्चित कौर याल छौ कि कैदिन कै दिवता क घड्यळ धरण। रॉट कटणों मांग बिंडी छे। हंत्या धरणों शिल्पकार जागरी चैनु जीन बि व्यस्त रौण। लोगों न मुर्गा क प्रबंध बि अग्रिम कौर याल छौ कि जळ कटाई बि कराये जाय।
गांवक औजी (ढोल वादक ) बि उद्यत छा। दस दिन पैलि औज्यूं न पौंछ जाण। तौंकुण पुरणजमनाक मिरजई , रेबदार सुलार अर कलगीदार पगड़ी प्रबंध बि अग्रिम ह्वे गे छौ।
अब जब प्रवासी आवन तो मंत्र तंत्र तो होलु ही। जागृ क अतिरिक्त न्याड़ -ध्वारक तांत्रिक व मांत्रिक बि बुलाये गेन। सब अग्रिम प्रबंध नियमों क अंतर्गत।
राशन पाणी अर फोड़ म सरयूळुं प्रबंध बि ह्वे गे छौ। ऋषिकेश -कोटद्वार से कै दिन क्या भुज्जी ाली क अग्रिम प्रबंध ह्वे गे छौ। कचकमी बेसी ह्वेलि तो बैसाखू लाल बि उद्यत रालो।
पाणी हीनता क भय छौ तो स्यांक बि प्रबंध छौ कि घुड़ैत पाणी सारल।
रिगड्वळी तो गाँव वळों तरां रोमांचित छे। तैन तो एक खाड़ू बि सिरायुं छौ।
सबसे बिंडी विचलित तो सिलस्वळी छे। द्वी हवलदार जी बि घर आणा छा छुटियों म। किंतु सिलस्वळी व्यक्तिगत देवी पूजन कोरी पांच दिन पैली अपर मैत चल जाली। यूं रक्तिम दिनों म सिल्सवाल लोक तो लिस्ट बीस्ट से बच नि सकदन। तो यो इ उचित छौ कि सिलस्वळी अपर मैत चल जा। चूँकि हवलदार जी तो दगड़म जै नि सकद छा ससुरास तो वींक भुला लीणों आणु छौ।
अबि काळि रात्रि म बीस दिन बच्यां छा कि द्वी द्यूराण -जिठाण मध्य रात अहिंसा -हिंसा सिद्धांतों पर विवाद शुरू ह्वे गे।
अबकि दैं विवाद कुछ गरम हि छौ जब वातावरण म ल्वै या रक्त ही रक्त हो तो विवाद म गर्मी ाली ही।
रिगड्वळी न अपर मैतक बामण बडोला जी म न जो सुण्युं छौ सि ब्वाल कि देवी न मनुष्यों बचाव हेतु मार काट कार छे अर चण्ड मुंड को नाश कोरी छे। स्यु बडोला बामण क दियुं तर्क रिगड्वळी न सिलस्वळी तै जन्या क तनि सौंप दे।
शिकार नि खाण वळ बडोला बामणन पशु हत्त्या पर अपर शिकार प्रेमी जजमान ( रिगड्वळ) म बताई कि चरक संहिता , शुश्रुवा संहिता अर्थात भगवान धन्वंतरि न पशु क बलि से स्वस्थ रौणो उपदेस जि दे छौ। यो तर्क रिगड्वळीन अपर द्यूराण तै समझायी कि धनवंतरि वैद्य न बि पशु हत्त्या तै मान छौ
बामण लोक एक बातम विश्वास करदन , ” लिंग देखि बखर हंसद ” अर्थात जजमान क इच्छा अनुसार ब्वालो। निशिकर्या बामण बडोला न रिगड्वाळ जजमानो तै पशु बलि तै सकारात्मक बताई। अर इना सिरणी प्रेमी बिंजोला बामण जब बि सिल्सवाळ लोगों क इख पूजा कारो तो पूजा इ ना हौर समय बि जीव हत्त्या तै पाप की कथा सुणांद छौ।
भौत दैं बिंजोला बामणन कन बकळि जिकुड़ी का सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य जैन सैकड़ों मनुष्यों तै अपर तलवार से मुंडहीन कौर छौ वो बि अंत म अहिंसक बण गे। चन्द्रगुप्त मौरु ‘जैन ‘ अनुसार जीव हत्त्या प्रत्येक कोण से महापाप च।
जबकि बडोला बामण रिगड्वाळुं क इख चन्द्रगुप्त क जैन बणनो कथा तैं इन सुणांद छौ राजा द्वारा असमय सन्यास लीण सर्वथा स्वार्थ च कारण अहिंसा सर्वथा व्यक्तिगत विचार च जबकि राजा जो भि हिंसा करदो वो समाज हिट हेतु करदो।
दुयुं न अपर अपर बामण द्वारा दियुं ज्ञान उंडेळ दे किन्तु वाद विवाद समाप्त नि हूणु छौ। अंत म सिलस्वळी न अचूक शस्त्र चलाई , ” दीदी ! जरा सुचदी जन हम जीवों हत्त्या करदां इनि क्वी हमर बच्चों क बलि चढ़ै द्यावो तो हम पर क्या बीतली , जरा सुचदी जो हम अठवाड़ या काळी रात्रि क दिन बखर ,खाड़ू भैंस मर्दां क्वी िनी हमर बच्चों क बलि दे द्यावो तो ? बच्चों क हथ कट्याणो हो , बच्चों क खुट छिँडर्याणो हो , बच्चों क पुटुक चिरयाणों हो तो हम पर क्या प्रभाव पोड़ल ? “
बच्चों क बलि विचर से ही रिगड्वाळी अति विचलित ह्वे गे। गड्वाळी अत्यंत रोष म ऐ गे अर वींन विवाद समाप्त करदो ब्वालो या हार मणदो ब्वाल , ” इन बि बुल्दन क्वी ?”
रात सीण से पैल रिगड्वाळी बच्चों की बलि की ही विचार मन म ऐन। रात जब वा से गे तो रिगड्वाळी न सुपिन म क्या द्याख , ” व्यक्तिगत रूप से वै लोक क लोग बच्चों की व्यक्तिगत बळी दीणा छन। सामूहिक पूजा म वै लोक का लोक गांवक बच्चों तै देव स्थल जिना दौड़ाणा छन व तलवार, खुन्करी , थमाळी इ ना ल्वाड़ से मारणा छन। सरा गाँव व गाँव क चौकों म बच्चों क रक्त , गांवक प्रत्येक घाट -बाटम बच्चों क रक्त की छळा -बळी होणी च। सब स्थान बच्चों क रक्त , लूतकी , अंगों से भर्यां छन। कुछ तो बच्चों क रक्त पीणा छा। ” अर सुपिन बड़ो ही विदारक छौ कि रिगड्वाळी बीज गे जोर से कराई।
रिगड्वाळी बच्चों तै सिलस्वळी म छोड़ गे अर अटक झाड़ -ताड़ क ग्यानी बलखु म अर तैन बलखु तैं सुपिन क बात बताई , बलखु न अगास म द्याख धार म क गैणा क जिना द्याख तो पायी कि सुबेर तो बस हूणी वाळ च। इन रक्तवळ सुपिन सुबेर सुबेर अर्थात अनिष्ट ! द्वी बड़ गुरु लोकमणी बहुगुणा म गेन। सुपिन की बात लोकमणी बहुगुणा म करे गे। लोकमणी न पंचांग द्याख , गांवक जन्मपत्री खड़िया से बणै अर लोकमणी क पूरा सरैल अस्यो (स्विस, पसीना ) से भरे गे। भय क मारा लोकमणी गुरु कमण मिसे गे। जन्मपत्री , पुराणों क कथा से लोकमणी गुरु न गणत कार छौ।
ब्लखु व रिगड्वाळी बि लोकमणी गुरु जीक दशा देखि डौर गेन , तौन पूछ “, गुरु जी क्या ह्वै ?”
लोकमणी गुरु न थर्रथर्रांद भौण म ब्वाल , ” गांवक ग्रह व नक्षत्रों क गणित से पता चलदो कि यदि गाँव म पशु बलि ह्वेलि तो गाँव म बच्चों क सर्वनाश हूण निश्चित च। “
अब क्या छौ ! गांवक आठ दस प्रभाव शाली लोगों जौमाँ लोहार टमटा बि छा तै बुलाये गे। तौं तैं रिगड्वाळी द्वारा सुबेर सुबेर सुपिन दिखणौ बात व गांवक ग्रहों दशा व समस्त जगत क नक्षत्रों दशा लोकमणी गुरु न बताई। अर बताई कि यदि काळरात्रि कुण पशु बलि ह्वेलि तो अगला वर्ष गाँव बच्चों से रीतो ह्वे जाल।
सब जणगर , उत्तरदायी लोक छा तो तुरंत निर्णय ह्वे कि गाँव म काळरात्रि क पूजा तो ह्वेलि किन्तु पशु बलि कतै नि ह्वेलि। इख तलक कि क्वी बि व्यक्तिगत रूप म पशु बलि बि नि कार्ल। पशु बलि क स्थान पर आटो क लोई तै पशु बणैक बलि चढ़ाये जाली।
अर तै वर्ष से गाँव म पशु बलि समाप्त ह्वे गे। लोक व्यक्तिगत रूप से बि पशु बलि नि करदन। ये वर्ष काळरात्रि पूजा दिन सिलस्वळी अपर मैत नि गे।