चलो गांव वालों वनों को देखने ।
कुछ लोग आए है वहाँ नाप लेने।
सुना है सड़क आ रही है गांव में ।
अब कुछ आराम तो होगा पाँव में।।
कहाँ है वो विकास पुरुष!
उनके पैर छूने हैं हमको ।
दुःख को समझा जिन्होनें हमारे।
जो आज प्रस्ताव लेकर पधारे।।
कुछ गा रहे हैं , कुछ लगे हैं नाचने
सब खुशी से झूमते मिल रहे हैं गाँव में
पर! बूढ़े चाचा बात कर रहे हैं
अपने लगाये हुये वट वृक्ष की छांव में।
कि सड़क तू आ तो रही है !
लेकिन अकेले मत आना।
इन गाँव वालों की उम्मीदों को
चार चाँद लगाना।।।
बहुत कुछ सोच रहे हैं ये लोग।
इनमें विकास की आशाओं को जगाना।
जानवर भी भागते फिर रहे हैं ,
तेरे आने की वजह से,
तू इनके ठहरने का पुख्ता इंतजाम भी
साथ ले आना।
कि सड़क तू आ तो रही है !
लेकिन अकेले मत आना।
इन गाँव वालों की उम्मीदों को
चार चाँद लगाना।।
वन खेत और पेड़ो को खोया है
इन गाँव वालों ने,
पूर्वजों की विरासत को खोया है
इन गाँव वालों ने।
बहुत जख्म खाये हैं , इन गाँव वालों ने।
तू मरहम बनकर इन गांव वालों के लिए, रोजगार ,अस्पताल ,अच्छे स्कूल जैसे
विकास के सभी पक्षों को साथ लेते हुये आना।
कि सड़क तू आ तो रही है !
लेकिन अकेले मत आना।
इन गाँव वालों की उम्मीदों को
चार चाँद लगाना।।।
–-@चेतन नौटियाल सिल्ला अगस्त्यमुनि chetan.nautiyal735@gmil.com
नै लिख्वार नै पौध—-कै भी संस्कृति साहित्य की पछांण ह्वोण खाणै छ्वीं तैंकि नै छ्वाळि से पता चलि सकदि। आज हमारी गढ़भाषा तै ना सिरप सुंण्ढा छिन बलकन नै पीढ़ी गीत गुंणमुंडाणी भी च त लिखणी भी च यन मा गढभाषा का वास्ता यन विकास का ढुंग्गू
——संकलन–@ अश्विनी गौड़ दानकोट रूद्रप्रयाग