-सरोज शर्मा
आलोचना और समालोचना क अंग्रेजि पर्याय द्यखे जा त द्वियों खुण criticism शब्द मिल जालु। पर भारतीय भाषाओं म द्वियो मा कुछ मूलभूत अंतर च जु कि नौ से हि कुछ कुछ स्पष्ट ह्वै जांद। समालोचना थैं जणण से पैल जरूरी च पैल आलोचना थैं समझणु।
आलोचना; असहमति व्यक्त कैरिक कैका विचारों मा दोष निकालिक वैक विरोध कन।या निंदा कन, एक प्रकार से देखे जा त कै भि चीज क दोष ढूँढण ही च, पर या तार्किक आधार पर किए जांद। जनकि विधानसभा मा विपक्षी दलों न सरकार क प्रस्ताव कि कड़ी निंदा करि और वैक विरोध भि कार।
भौत लोग त ई भि बव्लदिन कि- कै चीज मा क्या बात नी वै ढूंढिक वैमा तर्क क तड़का लगैकि गरम गरम परोस द्या, आलोचना तैयार च।
समालोचना, जनकि ई नौ से हि स्पष्ट च, कै चीज थैं भली प्रकार से देखिक ध्यानपूर्वक विचार करण।ऐमा निंदा क भाव कम और मूल्यांकन क भाव ज्यादा हूंद।
एक तरा से देखे जा त समालोचना क उदेश्य प्रशंसा या निंदा कन नि ह्वैकि सम्बद्ध कृति क ठीक-ठाक मूल्यांकन कैरिक वै पर अपण मन्तव्य थैं दृढ़तापूर्वक और प्रमाण क दगड़ प्रस्तुत कन च।
बारीकी से विश्लेषण और तर्क पूर्ण विवेचन हि समालोचना कि विशेषता च, उत्कृष्ट समालोचना वा च जैमा लोककल्याण कि भावना ह्वा, जैकु आधार नैतिकतावादी मूल्य ह्वा और जु आदर्शवाद कि मजबूत दिवार मा खड़ ह्वा।
जन हि समालोचना म द्वेष, पक्षपात और निंदा क भाव ऐ जांद त या अपण ध्येय से भटक जांद।समीक्षा
समीक्षा क अर्थ च भल कैरिक द्यखण ,ऐ मा भल प्रकार से जांच-पड़ताल और परीक्षण कनकु भाव समाहित च; जनकि अच्छी तरा से जांच-पड़ताल, परीक्षण आदि कनक बाद वै वैक जन हि प्रस्तुत कन समीक्षा च।ऐमा अपण तरफ से ज्यादा कुछ कनकि गुंजाइश नि हूंदी, जैमा जु भि ह्वा, गुण, दोष अच्छै बुरै वैक निचोड़ रखण हि समीक्षा च। कै महत्वपूर्ण बात, वस्तु या घटना कु विवरण कन भि वैकि समीक्षा च,ऐकु अर्थ-ग्रंथो, लेखों आदि का गुण दोषों क विवेचन भि च;जनकि पुस्तक समीक्षा।
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समालोचना और समीक्षा म कुल मिलैकि अंतर
कुल मिलैकि द्यखे जा त यूं द्वियो मा अंतर ई च कि समीक्षा मा निजी विचार प्रकट कनक या टीका टिप्पणी कनकि गुंजाइश समालोचना क समान नि हूंदि।
समालोचना थै समीक्षा क अंग ब्वले जा सकद, किलैकि समीक्षा मा समालोचना शामिल च ,पर समालोचना मा समीक्षा शामिल नी च।विश्लेषण व समीक्षा मा अंतर-
विश्लेषण क अर्थ हूंद कै वस्तु या विषय वस्तु का संघटन तत्वो थैं अलग अलग कैरिक वूंकि जांच कैरिक वर्णन कन जैसे वूंमा निहित तत्वो क अंक्वेक ज्ञान ह्वै जा। विश्लेषण एक वैज्ञानिक परीक्षण कि प्रक्रिया च। ऐ अंग्रेजी मा analysis बव्लदिन। भौतिक या रसायन शास्त्र (विज्ञान)म विश्लेषण क अलावा ऐकु भाषा या साहित्य मा प्रयोग भि विषय वस्तु क सब्या तत्वो कि अच्छी परख दर्शान्द।विश्लेषण का विपरीतार्थक शब्द संश्लेषण हूंद। समीक्षा क अर्थ भली प्रकार से द्यखण च ।सम+ईक्षा मा सम क अर्थ संतुलित रूप से द्यखण च अर्थात गैरी पैनी नजर से द्यखण जैसे वैका सब्या गुण दोषूं क वर्णन किए जा सक।
समीक्षा क प्रयोग वैज्ञानिक विश्लेषण से अलग सब्या विषय वस्तु यथा साहित्यिक कृतियों, फिल्मो इत्यादि कि विवेचना मा हि ज्यादातर हूंद, विश्लेषण मा विश्लेषणकर्ता क द्वारा अपणा विचार कि अभिव्यक्ति क कम प्रयोजन हूंद जबकि समीक्षा मा समीक्षक अपण दृष्टिकोण कु अधिकतम प्रयोग कैर सकद।आलोचना का प्रकार
पद्धति क अनुसार आलोचना का चार प्रकार हुंदिन-
1 सैद्धांतिक आलोचना
सैद्धांतिक आलोचना मा साहित्य का सिद्धांतों पर विचार हूंद। ऐमा पुरणा शास्त्रीय काव्यांगों- रस अलंकार आदि और साहित्य कि आधुनिक मान्यताओं और नियमों कि विवेचना करे जांद। सैद्धांतिक आलोचना म विचार क बिन्दु ई च कि साहित्य क मानदंड शास्त्रीय च या ऐतिहासिक। मानदंड क शास्त्रीय रूप अपरिवर्तनशील हूंद पर मानदंडो थैं ऐतिहासिक श्रेणी मनण पर वूंक स्वरूप परिवर्तनशील और विकासात्मक ह्वै जांद। द्विया प्रकार कि सैद्धांतिक आलोचना उपलब्ध छन, पर अब वीं सैद्धांतिक आलोचना कु महत्व ज्यादा च जु साहित्य का तत्वो और नियमों कि ऐतिहासिक प्रक्रिया म विकासमान मनै जांद।
2 निर्णयात्मक आलोचना
निश्चित सिद्धांतो क आधार पर जब साहित्य का गुण दोष, श्रेष्ठ-निकृष्ट कु निर्णय करै जांद तब वै निर्णयात्मक आलोचना ब्वलेजांद। ऐ थैं नैतिक आलोचना भि मने जांद। ऐकु मुख्य स्वभाव न्यायाधीश जन साहित्यिक कृतियों पर निर्णय दींण हूंद। इन आलोचना ज्यादातर सिद्धांत क यांत्रिक ढंग से उपयोग करद। इलै निर्णयात्मक आलोचना कु महत्व कम ह्वै जांद। मूल्य या श्रेष्ठ साहित्य और निकृष्ट साहित्य क बोध पैदा करण आलोचना क मुख्य धर्मो मा एक च पर वु सिद्धांतो क यांत्रिक उपयोग से संभव नी च। हिन्दी साहित्य कोष मा निर्णयात्मक आलोचना क विषय मा बतयै ग्या;
वु कृतियों कि श्रेष्ठता या अश्रेष्ठता का संबंध मा निर्णय दींद। ऐमा वा साहित्य और कला संबंधी नियमों कि सहायता लींद पर ई नियम साहित्य और कला क सहज रूप से संबद्ध रखिक बाह्य रूप से आरोपित च।
ऐ प्रकार से आलोचना मा निर्णय विवाद क बिन्दु उतगा नी जतगा निर्णय खुण अपणै गै तरीका। जनकि रामचंद्र शुक्ल कि आलोचना मा मूल्य निर्णय च,पर वैक तरीका सृजनात्मक च, यांत्रिक नी।निर्णयात्मक आलोचना मा मूल्य और तरिका द्वियो मा लचक नि हूंदि।
3 प्रभावाभिव्यंजक आलोचना
ऐ आलोचना मा काव्य कु प्रभाव जु आलोचक क मन मा पव्ड़द वै वु सजैकि पद विन्यास मा व्यक्त कैर दींद। ऐमा वैयक्तिक रूचि ही मुख्य च प्रभावाभिव्यंजक समालोचना क क्वी ठौर ठिकण कि वस्तु नी। ना ज्ञान क क्षेत्र मा वैक मूल्य न भाव क क्षेत्र मा।
4 विश्लेषणात्मक आलोचना
विश्लेषणात्मक विधिशास्त्र क प्रयोजन, विधि क प्राथमिक सिद्धांतों क,बिना वैक ऐतिहासिक उद्धव और विकास क वैका नीतिशास्त्री (Ethical) या वैधता क संदर्भ मा विश्लेषण कन च।दुसर शब्दों मा ई वर्तमान विधि का ढांचा क तार्किक और वैज्ञानिक ढंग से परीक्षित कन कु एक ढंग च।