(महाभारत काल में उत्तराखंड में मेडकल टूरिज्म )
उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास इतिहास (पर्यटन इतिहास ) -८
लेखक : भीष्म कुकरेती (विपणन व विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
महाभारत में जतुगृह पर्व में पांडवों द्वारा दुर्योधन नियोजित लाक्षागृह में ठहरना , वारणावत में शिव पूजन मेले का आनंद लेना व लाक्षागृह के जलने व पांडवों का बच निकलने का उल्लेख है। यहां से पांडव कुंती सहित उत्तराखंड के वनों में छुप गए व विचरण करते रहे। हिडम्बवध पर्व में पांडव दक्षिण पश्चिम उत्तराखंड के जंगलों में गमन करते रहे। यहां भीम द्वारा हिडम्ब का वध करना , हिडम्बा के आग्रह पर भीम द्वारा हिडम्बा से विवाह करना प्रकरण है और फिर मत्स्य , त्रिगत , पंचाल , कीचक जनपदों से होते हुए एकाचक्र नगरी (वर्तमान चकरौता ) पंहुचने की कथा है। बकवध पर्व में एकचक्र नगरी में भीम द्वारा बकासुर वध का वर्णन है।
चैत्र रथ पर्व में पांडवों का एकचक्र में ब्राह्मणों द्वारा पांडवों को विभिन्न नीतियों का वर्णन है। द्रौपदी स्वयंबर की सूचना मिलने पर पांडवों का द्रौपदी स्वयंबर में भाग लेने का संकल्प की कथा भी इसी पर्व में है।
राजघराना परिवार का एकचक्र में ठहरना याने चिकित्सा व्यवस्था होना
पांडव राजघराने के सदस्य थे। वे आदतन वहीं ठहरे होंगे जहां मेडिकल फैसिलिटी रही होंगीं। जैसे आज के अमीर व सभ्रांत उत्तराखंड में यात्रा करते और वहीं वहीं ठहरते हैं जहां चिकत्सा सुविधा भी उपलब्ध हो। बहुत काल तक पांडवों का एकचक्र में ठहरने का साफ़ अर्थ है तब के समय चकरोता में मेडिकल फैसिलिटी थीं।
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पांडवो के गढ़वाली पुरोहित धौम्य और आज के पंडे व बद्रीनाथ -केदारनाथ के धर्माधिकारी
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चैत्ररथ पर्व में 182 /1 -12 ) में ऋषि देवल के भाई धौम्य ऋषि को पांडवों द्वारा पुरोहित बनाने की कथा है। पांडवों का द्रौपदी स्वयंबर यात्रा से पहले पांडवों को पुरोहित की आवश्यकता पड़ी। स्थानीय राजा गंधर्वराज की सूचना पर पांडव ऋषि धौम्य के आश्रम उत्कोचक तीर्थ क्षेत्र में धौम्य आश्रम पंहुचे और गढ़वाली पुरोहित ऋषि धौम्य को पुरोहित बनाया। आगे जाकर धौम्य ने पांडव -द्रौपदी विवाह , इंद्रप्रस्थ में यज्ञ में पुरोहिती ही नहीं निभायी अपितु जब पांडवों के 13 साल वनवास में भी साथ निभाया।
धौम्य आश्रम का सीधा अर्थ है जहां ज्ञान (मनोविज्ञान ) , विज्ञान (आध्यात्मिक ज्ञान ) व अज्ञान ( भौतिक ज्ञान जैसे शरीर ज्ञान , सामाजिक ज्ञान , राजनीति ज्ञान समाज शास्त्र आदि ) की शिक्षा दी जाती हो। एकचक्र (चकरौता ) के पास आश्रमों के होने से हम स्पष्टतः अनुमान लगा सकते हैं कि तब गढ़वाल में चिकित्सा शास्त्र के शिक्षण शास्त्र के संस्थान भी थे। आज के संदर्भ में देखें तो कह सकते हैं कि चिकित्सा शास्त्र शालाओं के होने से स्वतः ही पर्यटक आकर्षित होते हैं।
गढ़वाली पुरोहित धौम्य द्वारा पांडवों का पुरोहित बनने का अर्थ है कि उत्तराखंड पर्यटन , उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म को एक प्रबल जनसम्पर्क आधार मिलना। ऋषि धौम्य पांडवों के आजीवन पूजते रहे। गढवाली पुरोहित ऋषि धौम्य का पांडवों का आजीवन पुरोहित बनने का अर्थ है कि उत्तराखंड टूरिज्म का हस्तिनापुर ही नही अन्य क्षेत्रों में भी मुंह जवानी (वर्ड टु माउथ) प्रचार हुआ होगा। प्रीमियम ग्राहकों का पुरोहित बनने का सीधा अर्थ प्रीमियम ग्राहकों के मध्य सकारात्मक छवि /धारणा बनना है।
किसी भी पर्यटक क्षेत्र को हर समय ब्रैंड ऐम्बेस्डर की आवश्यकता पड़ती है। पांडव काल में गढ़वाली पुरोहित ऋषि धौम्य जैसे महीसी उत्तराखंड टूरिज्म के ब्रैंड ऐम्बेस्डरों में से एक प्रभावशली राजदूत थे।
वर्तमान संदर्भ में देखें तो आज भी चार धामों के धर्माधिकारी , फिक्वाळ ( दक्षिण गढ़वाल में गंगोत्री -यमनोत्री के पंडों को फिक्वाळ नाम से पुकारते हैं ) , देवप्रयाग , केदारनाथ , बद्रीनाथ के पंडे व अन्य पुरोहित जैसे हरिद्वार के पंडे उत्तराखंड टूरिज्म (मेडिकल टूरिज्म सहित ) के आवश्यक अंग हैं और जनसम्पर्क हेतु आवश्यक कड़ी हैं। मैं अपने सेल्स लाइन में कई स्थानों जैसे जलगांव महाराष्ट्र , विशाखा पटनम (आंध्र ), चेन्नई , गुजरात , इंदौर में फिक्वाळों से मला हूँ जो पुरहिति करने अपने जजमानों के यहाँ आये थे।
बद्रीनाथ के राजकीय व पारम्परिक मुख्य धर्माधिकारी स्व देवी प्रसाद बहगुणा (पोखरि ) जाड़ों में जजमानों के विशेष अनुष्ठान हेतु भारत के विभिन्न शहरों में जाते थे। बहुगुणा जी तब भी जाते थे जब परिवहन साधन बहुत कम थे। बहगुणा जी के प्रीमियम ग्राहक ही होते थे। आज भी बद्रीनाथ , केदारनाथ , देवप्रयाग , त्रिगुणी नारायण , गंगोत्री -जमनोत्री , हरिद्वार के पंडे व धर्माधिकारी बाह्य प्रदेशों में जाकर धार्मिक अनुष्ठान करते हैं जो उत्तराखंड पर्यटन का जनसम्पर्क कार्य में स्वतः ही भागीदारी निभाते हैं।
देव प्रयाग के स्व चक्रधर जोशी कई जाने माने व्यापार घरानों के पुरोहित थे व घरानों प्रयाग वेध शाला बनाने में योगदान दिया।
आज बद्रीनाथ के धर्माधिकारी मंडल सदस्य श्री सती जी व उनियाल जी भी अपने जजमानों को मिलने देश के विभिन्न भागों में जाते हैं।
पंडों का तो उत्तराखंड पर्यटन विकास में सर्वाधिक योगदान रहा है। परिहवन साधन बिहीन युग में पंडे वास्तव में पूजा अर्चना के अलावा टूरिस्ट एजेंसी का सम्पूर्ण कार्य संभालते थे। हरिद्वार से धाम तक और फिर धामों से हरिद्वार तक यात्री जजमानों के आवास -निवास (चट्टियों में व्यवस्था ) , भोजन , परिहवन (कंडे , घोड़े , कुली ) व मेडिकल सुविधा आदि का पूरा इंतजाम पंडे याने उनके गुमास्ते ही देखते थे। पंडों द्वारा पर्यटक को भूतकाल में उनके कौन से पुरखे उत्तराखंड आये थी की सूचना देना पर्यटन विकास की प्रतिष्ठा वृद्धि हेतु एक बड़ा जनसम्पर्कीय माध्यम है।
जनसम्पर्क के मामले व अच्छी छवि बनाने में आज भी फिक्वाळ , पंडे , धर्माधिकारी , मंदिरों में विभिन्न पूजा अर्चना करने वाले पुरोहित उत्तराखंड पर्यटन के प्रतिष्ठा प्रचार -प्रसार में महत्ती भुमका निभाते हैं।
हरिद्वार व देवप्रयागी पंडो (जो बद्रीनाथ , केदारनाथ के पंडे भी हैं ) व गंगोत्री -जमनोत्री के पंडों के पास यजमानों का ऐतिहासिक रिकॉर्ड भी उत्तराखंड की प्रसिद्धि वृद्धि करते हैं।
ऋषि धौम्य से उत्तराखंड पर्यटन को प्रतिष्ठा लाभ
मेडिकल पर्यटन या अन्य प्रकार के टूरिज्म में प्रतिष्ठा सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अवश्य ही ऋषि धौम्य के पांडव पुरोहित बनने से उत्तराखंड को प्रतिष्ठा लाभ मिला होगा। पांडव काल में ही नहीं आज भी पुरोहित धौम्य महाभारत द्वारा उत्तराखंड को प्रतिष्ठा दिला ही रहे हैं।
ऋषि धौम्य के पांडव पुरोहित बनने से लोगों के मध्य उत्तराखंड के प्रति विश्वास जगा होगा और बढ़ा होगा।
ऋषि धौम्य ऋषि धौम्य के पांडव पुरोहित बनने से उत्तराखंड पर्यटन आकांक्षियों में असमंजस्य की स्थति समाप्त हुयी होगी और उन्होंने उत्तराखंड भ्रमण योजना बनाने में कोई देरी नहीं की होगी।
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संदर्भ महाभारत – आदि पर्व १८२ (धौम्य खंड )