270 से बिंडी कहानी रचयिता: भीष्म कुकरेती
मि शांत पड़्युं छौ बिलकुल मृत, भौत गरो ।
पंडीजी न मंत्र बोल , ” यी बाळ म्यार नीन। इम्म न मम ” म्यार बाळ अंतर्धान ह्वे गेन . कुछ भार कम चितायी। . .
पंडीजी न मंत्र बोल , ” यी त्वचा मेरी नी , इम्म न मम ” मेरी त्वचा बाळ अंतर्धान ह्वे गेन। . कुछ हौर भार कम चितायी।
पंडीजी न मंत्र बोल , ” यी आँख म्यार नीन। इम्म न मम ” म्यार आंख अंतर्धान ह्वे गेन। . कुछ हौर से हौर भार कम चितायी। .
. पंडीजी न मंत्र बोल , ” यी नाक , नासिका द्वार म्यार नीन। इम्म न मम ” म्यार नाक , नासिका द्वार अंतर्धान ह्वे गेन। . भौत सा भार कम चितायी।
. पंडीजी न मंत्र बोल , ” यी जीव मेरी नी । इम्म न मम ” मेरी जीव अंतर्धान ह्वे गेन। . मि हौर भी भारहीन ह्वे ग्यों।
. पंडीजी न मंत्र बोल , ” यी कंदूड़ बाळ म्यार नीन। इम्म न मम ” म्यार कंदूड़ अंतर्धान ह्वे गेन। . भारम अति कमी चितायी। .
. पंडीजी न मंत्र बोल , ” यी शरीर म्यार नी। इम्म न मम ” म्यार सरा शरीर अंतर्धान ह्वे गे। . . मीम भारहीनता ही भारहीनता छे किन्तु पूरो ना।
पंडीजी न मंत्र बोल , ” या आत्मा बि मेरी नी । इम्म न मम ” मेरी आत्मा अंतर्धान ह्वे गे। .मि भारहीन व भविष्य से चिन्ताहीन अर बहुत से लज्जाहीन ह्वे ग्यों। किन्तु कुछ तो चिताणु छौ। परिवार वळ रुणा चा पर इथगा जोर से किलै।
मेरी चेतना न पूछ , ” तुम इथगा जोर से किलै रुणा छा ? ” “इथगा जोर से किलै …… किलै “
पत्नी न जोर से हलायी , ” आज फिर सुपिन म भयभीत ह्वे गेवां। “
मि बबरैक उठ। पत्नी क लो वॉल्यूम म टीवी लगायूं छौ। रामायण सीरियल म दशरथ .की अंत्येष्टि हूणी छे अर अबि बि पंडित लोक मंत्र पढ़ना छा, ” इदम् न मम। ..” . दशरथ परिवार ह्यळि गाडि रूणा छा।