Chatti management in British Era
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )
उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास ) 65
लेखक : भीष्म कुकरेती (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
बद्रिकाश्रम व केदारेश्वर यात्रा माह्भारत संकलन -सम्पादन काल से भी शस्त्र वर्ष पहले से चली आ रही हैं। इतने सालों तक ऋषिकेश -देवप्रयाग मोटर मार्ग बनने से पहले ऋषिकेश से बद्रीनाथ जाने का एक ही पैदल मार्ग था और वह था पौड़ी गढ़वाल में गंगा तट का। मार्ग। सहस्त्रों वर्षों तक यही मार्ग बना रहा। सहस्त्रों सालों में पर्यटक सुविधा हेतु एक व्यवस्था निर्मित हुयी जिसे चट्टी व्यवस्था कहते हैं। चट्टी शब्द द्रविड़ शब्द से बना शब्द है जिसका अर्थ है दुकान अथवा दुकानदारी। चट्टी के मालिक को चट्टीवाला कहा जाता था।
चट्टियां ऋषिकेश -बद्रीनाथ के मध्य , कर्णप्रयाग से से पुनवाखाल कुमाऊं की और जाने वाले मार्ग व रुद्रप्रयाग से गंगोत्री -यमनोत्री -वाले मार्ग पर चार या तीन से चार मील के अंतराल में बनी थी. इससे पहाड़ी प्रदेश से अनभिज्ञ मैदानी यात्रियों को सुविधा सुलभ हो जाती थीं।
छट्टियों में चट्टी भवन
यह एक आश्चर्य ही है कि अधिकतर चट्टियों में भवन या दुकाने एक जैसे ही बनाये जाते थे। भवन चट्टी मालिक अपने धन से निर्मित करवाते थे। भवन भूमि से दो फिट ऊँचे आधार पर बनवाये जाते थे। एक मंजिला भवन का बड़ा लम्बा कक्ष द्वार विहीन होता था जो मुख्य मार्ग की ओर खुलता था। बरामदे के एक भाग में दुकान कक्ष व दुकानदार हेतु शयन कक्ष होता था। सर्दियों में भोजन पकाने हेतु एक चूल्हा भी होता था। छतें या तो घासफूस या पत्थरों की होती थीं। कुछ छतें पर चददरों की बनीं होते थे।
दुकान से बाहर क्यारियां होती थीं। हर क्यारी के किनारे एक चौकी व चूल्हा होता था। यात्री चट्टी दुकान से मन माफिक खरीदकर अपना भोजन स्वयं बनाते थे। चट्टी मालिक चूल्हों की आज लिपाई करता था। चट्टी मालिक बर्तन ,शयन हेतु कपड़े , लकड़ी का प्रबंध करता था उसके लिए मूल्य निर्धारित थे। मांश मदिरा सेवन चट्टियों में सर्वथा वर्जित था। साधुओ के लिए भांग पीने की छूट थी। चट्टी मालिक तम्बाकू का प्रबंध भी करता था। हुक्के की छूट नहीं थी। चट्टी मालिक चिलम रखते थे या पत्ती की चिलम बनाकर यात्रियों को देते थे। अनाज खरदने वाले यात्रियों से शयन व विस्तर मुफ्त था। शयन कीमत एक या दो आना प्रति रात था।
यदि चट्टी गंगा किनारे हो तो मंदिर भी थे जैसे महादेव चट्टी , व्यासचट्टी आदि। यदि कोई यात्री रुग्णावस्था में हो तो चट्टी मालिकपास के गाँवों से वैद्य बुलाते थे।
यदि किसी यात्री को थी तो चट्टी मालिक डंडी , पिंस , डोला व घोड़ों की व्यवस्था भी करता था।
बहुत से यात्री अपना सामान चट्टी में छोड़ आते थे व लौटते समय अपना सामान ले जाते थे। गढ़वाली चट्टी मालिकों की ईमानदारी की कथाएं सारे भारत में प्रचलित थीं अतः यात्री गढ़वाल यात्रा में चोरी व डकैती से कभी भय नहीं खाते थे। यात्री रात में भी बिना भी के यात्रा कर लेते थे। यात्रा मार्ग के आस पास के ग्रामीण भी यात्रियों का शोषण नहीं करते थे व समय पड़ने पर बिना शुल्क सहायता करते थे।
ब्रिटिश शासन में कुछ अंतराल के बाद सरकार ने सफाई कर्मचारी नियुक्त किये जो चट्टियों में सफाई कार्य करते थे।
ब्रिटिश काल में निम्न चट्टियां कार्यरत थी।
Chattis on Lakshmanjhula –Badrinath Road
- Chatti —–Distance—Shops, Nos- SN. Chatti —–Distance—Shops, Nos
1-Lakshmanjhula——0——–13—————2——Khairari——–2———-0
3-Fulvari—————–2———10————–4——-Ghattugad—–2———6
5-Nai Mohan (Chatti)- 3———-3—————6—-Chhoti Bijni—–1———-8
7-Bari Bijni————-1 ———-8—————8- Kund—————3———–3
9-Banderbhel———-3————-7————–10—Mhadev ———1.5——–18
11- Simwal————3.5———–8—————12–Am—————–0.25——1
13- Kandi————–2.5———–5—————-14-Vyasghat———–4.5——-10
15-Chhaluri————–3————3——————–16—Umrasu————-3—-2
17—Saur—————-3————–2——————-18—Vah (devPrayag)—1—21
19—Ranibag————-7————–5——————20-Rampur————4——-15
21-Vilvakedar———–4————–3—————–22—Shrinagar——-3———Big Bazar
23—Sukarta————-5—————3—————–24—Devalgadan —1.5——1
25-Bhattisera————1.3————–7——————26- Chhantikhal —-1——–1
27- Khankara———— 1 ————-8——————–28- Narkot————3 ——4
29- Gulabrai ————–2.5———–2—————30- Punar (Rudraprayag)- 1—12
31- Shivanandi ———–7————–4———————32 Kamera ————4—1
33- Chatwapipal———-5—————6 ———————-34Karnaprayag —-4—-20
35- Kald——————–1—————1————————-36 Umta—————1—–1
37- Jaikandi ————-2——————1——————-38- Uttaraul ————0.25—–1
39- Langasu—————2—————-4———————-40- Biroligadhera——2———–2
41-Sonla——————–3—————-6———————–42- Nandprayag——-3——-24
43-Pursari—————–1——————-1———————-44- Maithana ———2——–7
45-Kuher—————– 2——————–3——————46- Bayar—————— 0——1
47- Chamoli————–2——————13——————48-Math——————-2——-5
49- Mathgadan————0——————3——————-50-Chhinka————–1——-4
51- Baunla——————1—————–6———————52-Siyasain———–2———-7
53-Dhobighat————–1—————-5——————–54-Pipalkoti ———–2———–24
55-Gauriganga————–3————–4———————-56-Tangani————–2.25—–5
57-Patalganga—————2————–7———————-58- Gulabkoti————2———4
59-Helang (Kumarchatti)-2.25———-15———————60-Khanoti————–2.25——–9
61-Jharkuli—————-1—————-2———————–62-Singdhara———-2———–3
63-Chunar (Joshimath)-1—————–4————————64-Vishnuprayag——1————4
65-Chaldua——————————-1————————-66-Ghat—4—————10
67-Nandkeshwar———————–3————————-68-Pandukeshwar—2—-12
69-Bamanganv————————3—————-5——–70-Hanumanchatti—2——–5
71- Badrinath ——————–4.25—————-5
Mana ?
The following Chattis (Staying places for Pilgrims) on Rudraprayag to Kedarnath rout-
SN- Chatti———Distance—-Nos Shop——SN. Chatti———–Distance ——Nos. Shop
72-Rudraprayag————0———-4————–73-Chhatoli———6 —————-7
74-Tilwara——————0————1————-75-Math————2——————1
76- Rampur- —————2————7————77-Agustmuni —-3——————-8
78-Sauri——————–2————–4————79-Kunjgarh/Chandrapuri—2——-12
80-Bhiri——————3—————-10———–81-Kund———–4——————-5
82-Guptkashi———–2—————–10————–83-Nala ———1——————-3
84-Bhet——————1—————–8——————85—Kantva—–2—————–7
86- Malla—————-0.2————–2——————87—Fata ———3—————16
88-Badasu————–2—————–4——————-89- Badalpur——-1————-6
90- Rampur————2——————16—————–91- Trijugi———–5———–10
92-Gaurikund———-5——————-15—————-93- Chirpatiya Bhairav—2——–4
94- Ramwara ————2—————- 15—————-95—Kedarnath ——–4———–10
*Distance in miles, mile=1.6 kilo meter
Pilgrims used to visit Badrinath from Kedarnath too through Guptakashi to Chamoli . The following Chattis were there from Guptakashi to Chamoli rout-
SN- Chatti———Distance—-Nos Shop——SN. Chatti———–Distance ——Nos. Shop
96-Nala—————0————–3—————97- Ukhimath———-2.5————10
98-Kanath————–3————-10————–99-Gwali Bagar———-2————5
100-Gaira—————-1————–3————-101-Godh——————-0————1
102- Vyas—————–0—————2————103-Pothivasa————2———–12
104-DogliBheent ———-1.5———–1—————105-Baniya Kund——0.5——-4
106-Chopta——————1————–7————–107-Jhunkana————3———-8
108-Bhinodiya————–1—————3—————109-Pangarvasa———4———-6
110-Mandal—————–4————-21 (?)————–111-Bairagana————2———–1
112-Nirau——————0.5—————–2—————-113- Kholti————-0.5———-3
114-Sentuna—————–1——————5—————–115- Gopeshwar———-2———-5
116-Kotiyal Ganv ——–2——————2——————–117- Chamoli ———–1———-14
Pilgrims used to go towards east (through Almora ) from Badrinath to Panuvakhal (last Chatti in Garhwal) via Karnaprayag . The following Chattis were there from Karnaprayag to Panuvakhal rout-
SN- Chatti———Distance—-Nos Shop——SN. Chatti———–Distance ——Nos. Shop
118-Karnaprayag ——0————-20———–119- Puli —————————–1
120- Ram- ————–0—————1———-121- Simali————–4————12
122-Siroli—————–2————–8———–123-Bharoli————2————-7
124-Pipal——————————–1————-125-Adibadari———4———–16
126-Kheti—————9—————5————-127-Jangalchatti——–2————11
128-Devali————–2—————4————-129—-Genthabanj——0.5———-2
130-Kalamati———–1.25———–2————–131-Basiyagad———0.25———-3
132-Gwargadan———1.50———–1—————133- Chunarghat——-1.25———10
133-Isai Chatti———–1.25———–3—————135—Sainja—————1——–2
135-Melgwar ————–0.25———-2—————–137-Agarpanwar ki dukan –0.25—1
137- Mehalchaunri ——–1.50———-5—————-139-Punavakhal—-3———–3
Punvakhal was last Chatti for entering into Kumaon .
In Kumaon, there were 42 Chattis between Punavakhal and Ramnagar.
कुमाऊं में 42 चट्टियां थीं
*Distance in miles, mile=1.6 kilo meter
सुमाड़ी के कालाओं का विशेष प्रबंधन
श्रीनगर के पास कालाओं का गाँव है सुमाड़ी। कुणिंद शासन के कुणिंद मुद्राओं के सुमाड़ी व भैड़ गाँव (दोनों काला जाति गाँव ) में मिलने से अनुमान लगता है कि काला गढ़वाल में सातवीं आठवीं सदी में बस गए थे किन्तु उन्हें पंवार वंशी राजाओं के यहां कोई बड़ा पद नहीं मिला था।
कला लोगों का प्रबंधन में
काला लोगों का चट्टी प्रबंधन अभिनव था। उस समय चाय प्रचलन हुआ था तो यात्रयों हेतु त्वरित ऊर्जा हेतु कोई पेय उपलब्ध न था। चूँकि अधिकतर यात्रा ग्रीष्म ऋतू में होतीं थी तो दूध रखना संबंद्व न था। जबकि दूध की बड़ी मांग थी।
कला लोगों की श्रीनगर से नंद प्रयाग तक चट्टियां थीं। सुमाड़ी के काला यात्रा सीजन शुरू होने से पहले दुधारू भैंस चट्टियों में ही ले जाते थे। यात्रियों को ताजा दूध मिलने से श्रीनगर से नंद प्रयाग की चट्टियों का नाम भारत के कोने कोने में विशेष छवि बन गयी थी जिसका जिक्र आदम ने रिपोर्ट ऑन पिलग्रिम रुट किया है। एक अन्य आश्चर्य यह भी है कि यद्द्यपि यात्रियों की दूध हेतु बड़ी मांग थी किन्तु कालाओं को छोड़ अन्य लोग चट्टियों में भैंस नहीं रखते थे कालाओं में बहुत से वैद व तो वैदकी भी कर लेते थे।
ब्रिटिश शासन ने आदम को यात्रा मार्ग में सुधार हेतु रिपोर्ट बनाने आदेश दिया और आदम ने चट्टी प्रबंधन को सर्वश्रेष्ठ व्यवस्था करार दिया तथा लिखा कि गढ़वाल में किसी सुधार की आवश्यकता ही नहीं है । सुरक्षा , यात्रा सुविधा प्रबंधन ही तो पर्यटन प्रवंधन है जो चट्टी मालिक करते थे.
बाबा काली कमली वालों का योगदान
बाबा कमली वालों की धर्मशालाओं व औषधालयों का गढ़वाल पर्यटन में बड़ा योगदान है।