गुरु (गरिष्ठ ) व लघु (सुपाच्य ) भोजन पदार्थ म भेद
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चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
खंड – १ सूत्रस्थानम , 27th सत्ताइसवां अध्याय ( अन्नपान विधि अध्याय ) पद ३३७ बिटेन ३४२ तक
अनुवाद भाग – २४८
गढ़वाळिम सर्वाधिक पढ़े जण वळ एकमात्र लिख्वार- भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
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संस्कारन गुरु पदार्थ लघु अर लघु पदार्थ गुरु बण जान्दन। जन धान्य स्वभाव न गुरु छन किन्तु लाजा (puffed ) क रूप म लघु ह्वे जांदन। सत्तू स्वाभावन लघु हूंद किन्तु पिंडी क आग सिकाईन सि गुरु ह्वे जांद। गुरु पदार्थों तैं थोड़ा अर लघु पदार्थों तैं बिंडी सेवनन गृ ह्वे जांद। इलै गुरु व् लघु नियम हेतु मात्रा बि कारण हूंद। गुरु पदार्थों तैं थुड़ा लीण अर लघु तै अधिक खाण चयेंद जाँसे पेट नि फूल जाव या स्वास नई चढ़ जाय। द्रव्य मात्रा याने परिमाण क अपेक्षा करदन अर मात्रा अग्नि क अपेक्षा करदन। बल आरोग्यता , आयु , प्राण अग्नि पर आश्रित छन।
अन्न पान रूपी ईंधन से अग्नि उदीप्त हूंद अर खान पान नि मिलण पर बुज जांद । जु व्यक्ति अलप बल वळ ह्वावों , मंद क्रिया, मंद चेष्टा वळ , अनारोग्य , रोगी , सुकुमार या नाजुक प्राकृतिक , वळ आराम की जिंदगी बिताण वळ हूंदन । यूंक विषयम गुरु -लघु क चिंतन करण चयेंद। जौंक अग्नि प्रबल ह्वावो , जु कैड़ो भोजन बि पचाइ ल्यावन, नित्य परिश्रम करदार होवन , बड़ पेट वळ , जौंक अग्नि बढ़ीं हो , यूंक विषय म गुरु -लघु क विचार आवश्यक नी। ३३७-३४२
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ ३७३
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