आंचलिक भाषायी (गढ़वाली कुमाऊंनी ) नाटकों की चुनौतियां – 7
भीष्म कुकरेती (भारतीय साहित्य इतिहासकार )
महाविद्यालय जीवन को साम्हने के लिए सबसे महत्वपूर्ण माध्यम हैं। महाविद्यालय अर्थात दसवीं क्ष के पश्चात के विद्यालय। इन महाविद्यालयों में नाट्य शिक्षा भी आवश्यक होती है , भारत में लगभग सभी महाविद्यालयों में सामजिक – सांस्कृतिक नाट्य मंचन होते ही हैं व अन्य प्रकार के नाट्य होते हैं। वास्तव में महाविद्यालयों में नाट्य मंचन विद्यार्थियों हेतु नाट्य मंचन शिक्षण संस्थान की प्राथमिक सीढ़ी भी है। आज नाट्य मंचन केवल नाट्य गृहों तक ही सीमित नहीं हैं अपितु भिन्न भाषाओं में फ़िल्में , टीवी सीरियलों व अब तो यूट्यूब में भी विस्तृत हो गए हैं। महाविद्यालयों में नाट्य मंचन का विकास धीरे धीरे होआ व उत्तराखंड में इस विधा का विकास कुछ धीरे ही हुआ। चूँकि अब नाटक मंचन ने अत्त्याधिक विस्तार ले लिया है तो महाविद्यालयों में भी नाट्य मंचन को गंभीरता पूर्वक लिया जाने लगा है।
विश्व विद्यालयों निम्रमण में नाटक विषय होने से भी विद्यालयों में नाट्य मंचन होते ही हैं। इस प्रकार महाविद्यालयों में नाट्य मंचन की कई चुनौतियाँ भी खड़ी हो रही हैं।
निम्न पंक्तियों में महाविद्यालयों में नाट्य मंचन की चुनौतियों पर चर्चा होगी –
१- डिजाइन विधि में हीनताएँ – चूँकि महाविद्यालयों में नाट्य मंचन का शुरुवाती दौर होता है अतः डिजाइन प्रोसेस में विशेष्यों की हीनता होती है। डिजाइन प्रोसेस में निम्न विशेषज्ञों की आवश्यकता पड़ती है
सीन डिजायनर
प्रकाश व्यवस्थापक जिसे प्रकाश का वैज्ञानिक व मनोवैज्ञानिक ज्ञान हो।
स्केच कलाकार ड्रापस मैन
मंच निर्माण विशेषज्ञ व संचालन विशेषज्ञ
वस्त्र या क्स्टयूम विशेषज्ञ
आर्ट डाइरेक्टर
अनुभवी निर्देशकों की हीनता
स्टेज प्रबंधन में भी अनुभव की हीनताएँ पायी गयी हैं। कहीं कहीं तो उचित ऊंचाई के मंचों की हीनता भी पायी गयी है।
२ – मंचन हेतु आवश्यक स्थल या समुचित स्थल /स्पेस का न मिलना भी एक चुनौती बताई जाती है।
३- रिहरस्ल हेतु समय व स्थल की हीनता।
४- विद्यार्थियों मध्य स्थानीय आंचलिक लोक नाटकों व लोक कलाकारों की जानकारी का आभाव
५- दूसरी भाषाओँ या दुसरे क्षेत्र के नाटकों को देखने का विद्यार्थियों को अवसर न मिलना।
६- प्रशासनिक अड़चनें
७- संस्थान के ट्रस्टी व उच्च पदेन व्यक्तियों की नाटकों के प्रति उडीसीनता
८- विभागीय या अधपकीय आपस में खींचतान (नीचा दिखने वाले कर्त्तव्व )
९- नाट्य मंचन हेतु आवश्यक संसाधन में कमी /बजट चुनौती
१०- महाविद्यालय लायक सही नाट्यपटकथाओं का आभाव
११ – नाट्य प्रशिक्षण में व्यवसायिता की हीनता
१२- प्रतियोगी कलाकारों की सलप संख्या
१३- नाटक मंचनके उपकरणों की कमी
१४- रिहरस्ल में अनुशासनहीनता
१५- विद्यार्थियों द्वारा परीक्षा में सफल होना मुख्य ध्येय होना और नाट्य मंचन को वरीयता न देना।
१६- महाविद्यालय में नाट्य मंचन की कोई नीति ही नहीं होना या नीति में विभ्रांति व प्रशासनिक साधन न मिलना
१७- प्रशाशक व ट्रस्टियों का अपना स्वार्थ व नाटकों के प्रति घृणा या महत्वहीन समझना