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279 से बिंडी कहानी रचयिता : भीष्म कुकरेती
वैदिन मि सँजैत नागराजा हेतु अपर जसपुर गांव जयुं छौ। कुछ वासी प्रवास्यूं योगदान पर वासी अर प्रवासिन मध्य द्वंदात्मक चर्चा चलण लग गे। वास्युं दृष्टि से प्रवासी गांव म रौण वळो तै केवल सलाह दींदन अर कुछ ना। प्रत्येक प्रवासी हतप्रभ कि हमन या हमर बाबुं अपर गांव इथगा मन्योडर भेजिन तांक अब कै तैं याद नी. एक जखमोला परिवारौ उन्नीस वर्षक युवा न उत्तेजित ह्वेक ब्वाल , ” प्रवासी फोकट में धौंस जमाते हैं। गाँव वालों के लिए एक रति भर भी काम नहीं आते हैं। “
मि यीं चर्चा से भैर ही छौ किलै चर्चा वास्तव म उद्देश्यरहित ही छे। नागराजा क संजैत पूजा अर नागराजा मंदिर पुनर्निर्माण म सर्वाधिक योगदान तो प्रवास्यूं क ही छौ। किन्तु जब जखमोला युवा न सरासर अभियोग लगै कि ” प्रवासी फोकट में बिना कुछ योगदान के धौंस जमाते हैं। ” तो मैं क्रोध ऐ गे। मीन योगेश जखमोला तै पूछ , ” योगेश तुम कथगा रुपयों क अल्लू अर प्याज बिचदा ?”
योगेश न तमतमैक उत्तर दे , ” भाय जी तुम तो नी पता कि हमर एकि टुकड़ी फांगी च प्याज स्यार कि मथि पाणी। “
मीन ब्वाल , “फिर बि त्यार ददा ओर द्वी भाय प्याज अर अल्लू बिचदा छा “
” कु दींद छौ पिज्वड़ करणो ददा ओर तैं ? ” योगेश क उत्तर छौ।
“क्वी ना ” मीन उत्तर दे।
योगेश क उचित प्रश्न छौ ,” तो हम सूखा पुंगड़ों म अलु प्याज उगांदा छा अर बिचदा बि छा ?”
मेरो चिरड़ाणो जन उत्तर छौ , ” प्रत्येक जखमोला परिवार प्याज -अल्लु बिचद छा। “
अब बारी छे सबि जखमोलाओं क आस्चर्यजनक प्रश्न का , ” क्या जखमोला अल्लु प्याज बिचदा छा। पर हमम तो इकै टुकड़ी च कुल्याण वळ सारी म /”
म्येरो झिड़की दींद उत्तर छौ , ” जो अपर बाब ददाओं क इतिहास बिसरदो वी बोल सकद कि हमर पुरखों क क्या योगदान च ? “
द्वी जखमोला युवा अर बहुगुणा युवाओं न जोर से पूछ , ” ह्यां बिना स्यार क प्याज अर उल्लू ?
” जब हम सामाजिक कार्यों तै अपर कार्य नि समजवां तो इनि प्रश्न पुछे जयांद। ” मेरी टिप्पणी छे।
एक कुकरेती युवा क प्रश्न छौ , ” चाची जी कुछ तो नया बताण वळ छन ? बताओ बताओ चचा जी “
मीन रहस्य से आवरण उठायी , ” स्वतन्त्रता से पैल पूरो कूलापाखम पैल स्यार छा अर अल्लु प्याज की खेती हूंद छे। “
सब आस्चर्य म छा कि कूला पाख जख जखमोलाओं की ही भूमि छे कुकरेती अर बहुगुनाओं की भूमि नि छे वा पणचर भूमि छे।
मीन अगनै ब्वाल , ” कबि कबि भूलमार म ही सही अपर गांवक स्थलों क नोमेनक्लेचर /नामकरण पर ध्यान दिया कारो। कूलापाकः अर्थात कूल वाली खोली। “
तब मीन प्रवासी तारादत्त जी जखमोला उर्फ़ तारादत्त सेठ की कथा लगाई।
तारा दत्त दादा दादा जी लगभग सन 1920 या 25 म अपर चचेरा भेजी नारायण दत्त जी जखमोला क सलाह मुंबई ऐ गे छा। नारायण दत्त जी पैलि मुम्बई ऐ गे छा।
तारा दत्त दादा जी कठिन परिश्रम से शीघ्र ही ड्राइवर बणि गेन। तारा दत्त दादा जी न निर्धन झेळीं छे अर धन क मूल्य समजद छा तो परिश्रम कौरी सि पैल टैक्सी ड्राइवर बणिन अर कुछ वर्षों उपरान्त तौन टैक्सी डाळ दे। तब पेट्रोल सस्तो छौ तो आय भली हूंद छे।
तारा दत्त दादा जी तै अपर कुटुंब व गांव क चिंता रौंदी छे। एक दैं तारा दत्त दादा जी घर अयां छ अर एक बेटी क ब्यौ म कै दुसर गाँव क पौण न मजाक मजाक म सुणै दे कि टमटों गांव हूणो उपरान्त बि जसपुर म पितळक फर्सी हुक्का नी। दुसर वर्ष जब वो गर्मियों म म मुंबई से घर ऐन तो दगड़ म फर्सी हुक्का अर लम्बी नै बि लैन। अर तब से ब्यौ काज म या ही फर्सी चल्दी छे। बाद म तो विष्णु दत्त जी जखमोला बि फर्सी लैन।
गर्मियों म तारा दत्त दादा जी न अनुभव कार कि जखमोलाओं की भौत कम भूमि मथि पाणी क तौळ (स्यार ) च अर प्रत्येक जखमोला परिवार अल्लु -प्याज उथगा नि उगै सकद छौ जथगा ऊंकी आवश्यकता छे। पाली या मेथा से अल्लु प्याज मुल्याण पड़द छौ।
तारा दत्त दादा जी चिंता माँ रैन। कि क्या करे जाय। फिर ऊं तै अपर ददा जीक बुल्युं याद आई कि गांवक मुड़ी पाणी बिटेन कबि कूल पश्चिम म डंगुळड्या पाख से डड्वा सारी ह्वेक अंत म मुड़ी पाणी से एक किलोमीटर चुपड़ा सारी जांद छौ। किंतु भूस्खल आण से डड्वा सारी अर चुपड़ा साड़ी मध्य खड गदन -पाट क गदन ऐ गे अर इनि मुड़ी पाणी से चार पांच सौ हथ अगनै एक इन पैरी पोड कि कूल क बाट म सपाट पत्थर की चट्टान ऐ गे। यीं चट्टान से मथि कूल जै नि सकद छे तो कूल को पुनर्निर्माण ही नि ह्वे साक अर लोग बाग़ बि बिसर गेन कि कबि मुड़ी पाणी से चुपड़ा तक कूल छे।
तारा दत्त दादा जी अपर भै बंदो दगड़ पुराणी कूल को सर्वेक्षण कुण गेन। किन्तु कड़ी पत्थर की चट्टान देखि सब नकारात्मक छ्वीं लगाणा छा। बात बि सै छे कि इन बात किलै सुचे जाय जो असंभव हो। हां मध्य म क्वी खड्डा या गदन हो तो सिमुळ या चीड़ क पेड़ तै कूरीक कूल बणये जै सक्यांद छे जन कड़ती क कांडे म च गदन म चीड़ क पेड़ कोरिक कूल बणये गे अर पुळ जन धरे गे। पर इखम इन संभव नि छौ। ना ही कैक दिमाग म नळका द्वार पाणी चट्टान से मथि लीजाये जाय। नळकौंक रिवाज गढ़वाल म नि छौ।
तारा दत्त दादा जी तै कुटुम्ब प्रेम , गांव प्रेम छौ। तो कूल क सपना दिखण लग गेन। तब तौन क्षेत्र क ओड या सिविल वर्क करण वाळों तै पूछ तो सब्युंन ना ही बोल कि कुछ नि ह्वे सकद अर पुस्ता बि नि पोड़ सकद।
तारा दत्त दादा जी ग्रामप्रेमी इ ना बल्कण म अपर ध्येय क प्रति समर्पित छा। सि दुसर वर्ष जड्डू म घर ऐगेन। नेपाली ठेकेदार से बात कार जैन खड़ी चट्टान म पुस्ता धौरी पोस्ट मथि कूल निर्माण कर द्याला। तब ब्रिटिश राज म द्वी हजार म ठेका दिये गे। तीन मैना म कूल निर्मित ह्वे गे। पाणी डंगुल्ड्या पाख तक पौंछ गे। सरा गां म विशेषकर जखमला कुटुंब म अति प्रसन्नता पसर गे। तारा दत्त दादा जी न सत्यनारायण की धूमधाम से पूजा धरवाई।
कुछ दिन उपरान्त तारा दत्त दादा जी मुंबई चल गेन। वै वर्ष रूड्यूं म जखमोला कुटुंब वळो खूब प्याज , मटर , पळिंग ह्वे। कै तैं सुपिन म बि जखमोलाओं नि सोच छौ कि वो इथगा प्याज उगाला। प्रत्येक मौन प्याज ब्याच।
द्वी वर्ष तक जखमोलाओं न खूब प्याज , अल्लू उगाई अर ब्याच। जसपुर वळ जो पाली , मेथा बिटेन अल्लू प्याज खरीदणो जांद छा वो द्वी वर्ष नि गेन। किंतु द्वी वर्ष क उपरान्त तिसर बरसात म पुस्ता टुट गे। गां वळो न तारा दत्त दादा जी कुण चिठ्ठी अर रैबार भेज कि पुस्ता टुट गे , तै वर्ष तारा दत्त दादा जी क मुंबई म व्यापर को कार्य इन छौ कि द्वी वर्ष तक घर नि ऐन। गां वळों न कुछ नि कार। अब डंगुल्ड्या पाख क नाम कूला पाख पड़ गे छौ।
तिसर वर्ष तारा दत्त दादा जी घर ऐन अर फिर से नेपाली ठेकेदार तैं काम देकि मुम्बई चल गेन। ऊंको परिवार मुंबई इ रौंद छौ तो अल्लु -प्याज से ऊंक कुछ लीण दीण नि छौ केवल सामाजिक भावना से ही वो कूल निर्माण तै महत्व दीणा छा। द्वी वर्ष उपरान्त फिर पुस्ता खबचै गे अर कूल बंद ह्वे गे। कुछ व्यापारिक कारण से तारा दत्त दादा जी घर नि ऐ सकिन। तब से कूला पाख की कूल बंद पड़ गे। गांव वळ कुछ करणो वजाय ये आसा म रैन कि तारा दत्त जी ही कारल। कुछ दिन तो कूला पाख का चिन्ह दिखे बि छन किन्तु कुछ वर्षों म कोयला पाखक कूलो चिन्ह मिट गेन अर जखमोला कुटुम्भ क तिसर पीढ़ी तैं पता इ नी कि तौंक दादा जी तारा दत्त जी को क्या योगदान छौ।