
उत्तराखंड संबंधित पौराणिक पात्रों की कहानियां श्रृंखला
297 से बिंडी गढ़वळि कथा रचयिता : भीष्म कुकरेती
पिछ्ला अध्याय म घटोत्क्च जन्म कथा बताई छे। श्रीकृष्ण परामर्श अनुसार ही घटोत्कच तैं कुरुक्षेत्र म बुलाये गे। घटोत्कच की मां हिडिँबा अर द्रौपदी मध्य भल संबंध नि छा। घटोत्कच जब हिडिंबा तैं पुछद छौ कि यदि वो भीम पुत्र च तो वो राजमहल म किलै नि रौंदन। हिडिंबा न ब्वाल कि वास्तविक रानी द्रौपदी च। घटकाच क मन म द्रौपदी कुण भल विचार नि बणिन उल्टां मां तै द्रौपदी कारन वो पद नि मिलण से जलन ही जि ह्वे ।
जब पांडवों न घटोत्कच बुलाई तो जब वो पांडव सभा म ऐ तो वैन सब्युं तैं शिव लगाई किंतु द्रौपदी की उपेक्षा कार अरसिवा सौंळी नि लगाई। सभा म घटोत्कच न ब्वाल कि मेरी ब्वे अबला नारी नी अपितु एक वीरांगना नारी च। चूँकि मि बलवान भीम व शक्तिस्वरूपा हिडिँबा पुत्र छौं तो मि शत्रुघाटक छौं अर मि तैं क्वी हरै नि सकुद।
महारानी द्रौपदी तो महारानी छे अर हिडिंबा क तुलना म बड़ी घर की छे , बड़ी जाति की छे। तो द्रौपदी को अहम बड़ो छौ अर सौत पुत्र घटोत्कच की उपेक्षा व अपमान से द्रौपदी क अहम पर ठेस लग अर क्रोध म द्रौपदी न श्राप दे , ” जैन मेरी उपेक्षा अर अपमान कौरवों जन कार मि श्राप डींदो कि घटोत्कच की युवा आयु म ही मृत्यु ह्वेलि बिना युद्ध कौरी हि मृत्यु ह्वेलि। “
श्रीकृष्ण छोड़ि सब बड़ा दुखी ह्वेन। श्रीकृष्ण न भीम तै सांतन्वा दे कि द्रौपदी न यु श्राप क्वी भलो कारण हेतु दे।
हिडिंबा पुत्र घटोत्कच बड़ो शक्तिशाली हि नि छौ अपितु मायावी बि छौ।
युद्ध म वो कबि ल्वाड़ो की बरखा कौरि कौरव सेना क विनाश कर डींदो छौ। कबि आकाश म उड़ी अंध्यर कर दींदो छौ तो कबि घाम। कबि जंगळ का पेड़ों तैं कौरव सेना पर फेंकि सेना म भगदड़ मचाई दींदो छौ बड़ा से बड़ा महारथी बि घटोत्कच से सीधा युद्ध नि करदा छा। यु युवा विलक्षणी व बेनियम छौ।
युद्ध का आठवाँ दिन घटोत्कच क समिण दुशासन आयी अर हार गे। दसवां दिन भीष्म क समिण जब घटोत्कच न कौरव सेना का सैनिकों नर्दयतापूर्वक ह्त्या कार तो भी भीष्म न घटकाच पर वां नि चलें किलैकि घटकाच पांडवों क सबसे बड़ो पुत्र जि छौ।
ग्यारवां दिन घटोत्कच एक दैं गुरु द्रोणाचार्य क समिण ऐन तो घटोत्कच न मायावी युद्ध शुरू कर दे कबि कौरवों की सेना पर पहाड़ गिरैन तो कभी तातो पानी तो कबि जळदा मुछ्यळ चलै देन। कौरव सेना म त्राहिमाम त्राहिमाम क शोर शुरू ह्वे गे। द्रोणाचार्य तै एक दैं घटोत्कच न द्रोणाचार्य अचेत बि कार। दुबर वो द्रोणाचार्य से युद्ध म संलग्न हूणु वळ छौ कि वीर व बुद्धियुक्त दुर्योधन तैं युद्ध रणनीति आदि छे तो गुरु द्रोणाचार्य तैं बचाणों हेतु अलंबूस राक्षस तैं घटोत्कच से भिड़ै दे। घटकाच द्रोणाचार्य छोड़ि अलम्बुस से भिड़ गे। टैडिन अलम्बुस की मृत्यु ह्वे।
दुसर दिन युद्ध चलणु छौ कर्ण कौरवों सेना संचालन करणा छा। कि घटोत्कच न मायावी युद्ध शुरू कर दे अर कौरवों क शस्त्रों सैनिकों तैं मरण शुरू कर दे। कौरव सेना म भगदड़ मच गे अर सेना युद्ध भूमि से भगण मिसे गे। बुद्धिमान दुर्योधन की समज छे कि युद्ध म सबसे बुरी गत तब हूंदी जब सैनिकों मनोबल टुटदो अर वो युद्ध भूमि छुड़न मिसे जावन। घटोत्कच पर वीर कई प्रकारौ अस्त्र शास्त्र प्रयोग करणा छा किन्तु घटकाच दुगणा वेग से कौरव सेना पर आक्रमण कर दींदो छौ। घटकाच की मृत्यु साधारण अस्त्र या शास्त्र या शक्ति से ह्वै इ नि सकद छे तो कर्ण से दुर्योधन न अमोध शक्ति प्रयोग करणो ब्वाल। कर्ण न या शक्ति इंद्र से अर्जुन तैं मरणो मांग छे अर बचायीं छे। बुले जांद कि भौत बार युद्ध म त्वरित आत्म रक्षा हेतु बड़ा से बड़ा अस्त्र बि खपाण पोड़द। दुर्योधन को परामर्श से कर्ण न अमोध शक्ति (दिव्यास्त्र ) दुर्दांत घटोत्कच पर मार दे। चूंकि अमोध शक्ति देव शक्ति छे तो घटकाच तैं मरण आवश्यक छौ। घटोत्कच कारण से बिना युद्ध का ही वीरगति प्राप्त ह्वे गे।
पांडव शिविर म दुःख को पहाड़ गिर गे। केवल श्रीकृष्ण ही मंद मंद मुस्कराणा छा। भीम न क्रोध से मुसकराणो कारण पूछ तो कुशल रणनीतिकार कृष्ण न समजायी कि घटकाच को जन्म ही पांडवों की रक्षा हेतु ह्वे छौ अर नियति वश ही द्रौपदी न श्राप दे छौ। अब जब कर्ण न अर्जुन ध्येयत अमोध शस्त्र उपयोग कर याल तो अर्जुन स्वतः ही विजयी ह्वे गे।
घटोत्कच की मृत्यु अर्जुन को जीवन बचाण म खप।
घटोत्कच क पत्नी नाम अहिलावली (मोरवी ) छौ जो कामाख्या देवी की भक्तन छे। घटोत्कच क तीन पुत्र छा – बर्बरीक , अंजनपर्व अर मेघवर्ण। बर्बरीक भौत बलशाली छौ जो ेकी क्षण कौरव अर पांडव सेना को नाश कर सकुद छौ। श्रीकृष्ण न एक शीश मांग। बर्बरीक न सिर काटि दे दे। श्रीकृष्ण न वरदान दे कि कलयुग म तू मेरो रूप म जन्म लेलु अर त्वे खाटू श्याम नाम से पुजे जालो।