उत्तराखंड संबंधित पौराणिक पात्र कहानियां श्रृंखला
265 से बिंडी गढ़वळि कथा रचंदेर : भीष्म कुकरेती
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पौराणिक कथाओं अनुसार गंगा मोक्षदायनी च , दया व करुणा क जननी च। गंगा नदी क कथ्या नाम छन। गंगा अवतरण भगीरथ को अथक प्रयत्न से ह्वे।
गंगा अर सरस्वती अर लक्ष्मी विष्णु पत्नी हूणो कारण बैणि छन। एक समय सरस्वती अर गंगा म कुछ विवाद ह्वे तो क्रोध म सरस्वती न गंगा व लक्ष्मी तैं पृथ्वी म नदी रूप म जन्म लीणों ार पापियों क पाप धोणो श्राप दे दे , उपरान्त विष्णु न गंगा अर सरस्वती क त्याग कर दे। धरती पर पापियों क पाप धूणो भय से भयभीत गंगा न प्रार्थना कार कि धरती पर भिजणो स्थान पर ब्रह्मा जीक कमंडल म स्थान दिए जाय।
वै इ समय एक हैंकि घटना घट।
पृथ्वी म राजा सगर नामौ शक्तिशाली , बलशाली अर प्रतापी राजा राज करणु छौ। पूरी धरती क राजा राजा सगर क समिण अति हीन सिद्ध ह्वे गे छा तो राजा सगर तैं अश्वमेध यज्ञ करणों विचार आयी। तब राजा सगर न अपर साठ सहस्त्र पुत्रों तै अश्वमेधौ घ्वाड़ा सरा धरती म विचरण की आज्ञा दे।
राजा सगर की दुसर पत्नी से एक हैंक पुत्र छौ जैक नाम असंमजस छौ। असंमंजस ऋषि छौ अर वैन अपर पिता श्री तैं चेतायी कि यज्ञ से कुछ अपशकुन बि ह्वे सकद। किन्तु बलशाली राजा सगर न बात नि मानि अर यज्ञ हेतु अपर राजकुमारों तै सबि दिशाओं म गमन करणों आज्ञा दे।
प्रत्येक क्षेत्र म राजा सगर को कीर्ति पताका फहराण लग गे। पृथ्वी पर प्रत्येक राजा महाराजा सगर को अंतर्गत आणो ऑडिट हूणा छा। राजा सगर को अश्वमेध यज्ञ क सफल हूण क आशंका से देवराज इंद्र भयभीत ह्वे गे। इंद्र तै स्वर्ग राज्य को राज जाणो आशंका ह्वे गे। राजा इंद्र न कुत्सित युक्ति विचार कार अर क्रियावनित कार।
रात म इंद्र न अश्वमेध यज्ञ को घ्वाड़ा च्वार अर कपिल मुनि क आश्रम म बांध दे।
सगर पुत्र घ्वाड़ा शोध करदा करदा कपिल मुनि क आश्रम म पौंछिन। अपर घ्वाड़ा आश्रम म बंध्यूं देखिक राजकुमार क्रोधित ह्वे गेन अर कपिल मुनि कुण लाभ -काब बखण लग गेन।
कपिल मुनि क ध्यान भंग ह्वे अर क्रोध म आँख खोलिन तो दृष्टि -क्रोधाणग्नि से साठ सहस्त्र राजकुमार भस्म ह्वे गेन।
यीं सूचना पाणों उपरान्त राजा सगर तुरंत मोर गेन।
ऋषि असमंजस तै बड़ो दुःख ह्वे कि अब भाईयों क आत्मा भटकणि राली । ऋषि असमंजस मुनि कपिल म गेन अर अपर साठ शस्त्र भाइयों क मुक्ति उपाय मार्ग पूछ।
मुनि कपिल न उपाय विचार कार अर असमंजस तै मार्ग बताई कि यदि ब्रह्मा जीक कमंडल से गंगा यूं राजकुमारों क अस्थि म बौगलि तो सब राजकुमार श्राप व पाप मुक्त ह्वे जाल। अर्थात गंगा जी तेन धरती पर लाण पोड़ल।
तब ऋषि असमंजस हिमाला म गेन अर तपस्या करण लग गेन। तौंक शरीर हिम शीत से गौळ गे व सी अपूर्ण कार्य कोरी सोरग चल गेन।
भौत युगों उपरान्त राजा दिलीप पुत्र तै या बात पता चल तो अपर पुरखों आत्मा तारण हेतु भगीरथ तपस्या म लीन ह्वे गेन। राजा भगीरथ की तपस्या देखि सब दिबता देवी आश्चर्यचकित ह्वे गेन। पैल भगीरथ न ब्रह्म देव तै प्रसन्न कार अर मां पार्वती बि प्रसन्न ह्वे गेन। मां पार्वती न गंगा से आग्रह कार कि तू धरती म जा।
मां गंगा न उत्तर दे , ” मि धरती पर चल तो जौं किन्तु मेरो वेग इथगा प्रचंड च कि शस्त्रों पशु पक्षी व मनिख मरे जाला। मेरो वेग रुकण आवश्यक च ” गंगा न ही बताई कि शिव ही छन जो गंगा वेग रोक सकदन। तब शिवजी तै मनाये गे। शिव जीन प्रसन्न ह्वेक गंगा तै अपर जटिल जटाओं म आणो ब्वाल।
गंगा ब्रह्मा क कंडल से भैर आयी अर शिवजी क जटाओं म पौंछ तो तैंक वेग शस्त्रों गुणा हीन ह्वे गे।
शिवजी क जटा से गंगा गंगोत्री म भूमि म उतर व भगीरथ का पैथर हिटद हिटद कपिल आश्रम पौंछ जख गंगा न सगर पुत्रों तै पाप मुक्त कार।
कपिल आश्रम ही गंगासागर को नाम से जणे जांद।
गंगा गंगोत्री से देव प्रयाग तक भगीरथी क नाम से जणे जांद।
तब से गंगा मनिखों क रोग व पाप मुक्त को कार्य करणी च।