
300 से बिंडी मौलिक गढ़वळी कहानी रचयिता : भीष्म कुकरेती
–
हमर छ्वाड़ भौत सा भोजन पकाण लगभग समाप्त ह्वे गे। इनम जब कभि लुप्त भोजन पकाण शैली की याद करे जांद तो द्वी तीन प्रकारै कथा सुणाणो प्रकार च। एक शासकीय अधिकारी कुण भोजन पकाण किन्तु निर्धन घर म कुछ नि हो तो लुप्त भोजन को पुनर्जन्म करण। या अचाण चक पौण ऐ जावन अर पौणु इच्छा या आदेश अनुसार कुछ इन पकाण कि पौणुंन तै भोजन को नौ बि नि सूण हो। मि जौ -कंडाळी बाड़ी भोजन की कथा सुणानो कुण शासकीय अधिकारी वळ मार्ग अपनाणु छौं।
एक गाँव गढ़पुर म एक मौ छे बड़ घौर। बड़ -घौर कि विधवा ब्वारी छे कुमाळी। कबि यु घौर क्षेत्र म बड़ो किसानी घर मने जांद छौ , द्वी जोड़ी बल्द , भैंस , गौड़ , चार तंदला बखर पंदरा बीस लोक खंदेर। सुबेर से रात तक चुल पर आग जळणी रौंद छे। क्वी खेतो या बौण जाणु च तो भोजन करणु च तो क्वी खेतों अर बौण से अणु च तो भोजन चयेंद। शिल्पकार-श्रमिक अर मंगत्या बि चौक म बैठया रौंद छा. अर अब केवल विधवा ब्वारी कुमाळी ही बचीं च। सरा परिवार वै वर्षक कुम्भ क हैजा म बैकुंठ चल गे छा।
जब हीन दिन आंदन तो ज्ञान नि हूंद कि क्या से क्या ह्वे गे। कुमाळी भाग म बि इनि ह्वे हैजा सब तैं बैकुंठ ही नि लीग बड़ घोर क श्री बि ली गे। निर्धनता अर सुबेर क्या खौं -दुफरा म क्या खौं तो रात खौं या भुकी से जौं क समय ऐ गे छौ कुमाळी क।
ब्रटिश राज शुरू ही ह्वे छौ अर शसकीय अधिकारी जब बि गांव आवन तो तौंक भोजन प्रबंध गांव वळ तैं करण पोड़द छौ। ग्राम पधान की निष्कृष्ट दृष्टि कुमाळी पर छे किंतु वा झुक्दी नि छे तो आज कानूनगो आणु छौ तो पधान न डाह म भोजन कुमाळी तैं उत्तरदायित्व दे दे। तब पधान ही गांव क महाराजा हूंद छा।
कुमाळी क डेर क्या छौ बच्युं ? जौ आटो , लूण मर्च , ल्ह्यासण , घी, सुख्यां आम । कुमाळी समज म नि आणो छौं क्या भोजन पकाये जाय। अचाणचक कुमाळी तैं अपर बूडसासु क एक कथा याद ऐ गे। बूड सासु न बताई छौ कि मेरी बूड सासु क बूड सास न जौ क आटो म महीनतम कट्यां कंडाळी पत्ता , लूण मर्च ल्ह्यासण डाळिक स्वादिस्ट बाड़ी पकाई छौ।
अब तो यू भोजन पकाण क संस्कृति ही समाप्य ह्वे गे छे। तो कुमाळी तैं युक्ति सूज गे। झट से गदन गे अर कुंगळ -कुंगळ कंडाळी पौधा लायी।
तब कुमाळी न कंडाळी पौधा आग म धार कि कंडाळी झीस समाप्त ह्वे जावन। जब सब झीस समाप्त ह्वे गेन तो कुमाळी न कंडाळी महीनतम रूप म काट।
अब कटीं कंडाळी तैं जौ क ऑटो , पिस्युं लूण , मर्च -ल्यासण दगड़ खूब मिलाई कि कंडाळी कट्यां पत्ता आटो दगड़ खूब हिल मिल जावन।
जनि कानूनगो दुसर उबर म आइ , कानूनगो अर वैक चपड़ासी तै बिठाइक कुमाळी रुस्वड़ आयी। कढ़ाई म पाणी गर्म करणो धार। तब सब कंडाळी युक्त आटो तैं गर्म पाणी म डाळ अर काठक दबुळ की सहायता से कुमाळी न बाड़ी खैंड। बाड़ी तैं घी लग्युं कटोरों म भौर अर फिर कटोरी थाळी म उलटी कर दे तो बाड़ी क डौळुं शकल आकर्षक ह्वे गे। द्वी थाळी म तेन तीन कटोरी बाड़ी धार। सुक्यां आम तेन पाणी म लूण मर्च क दगड़ पीसिक चटनी बणायी कटोरयूं धार अर द्वी कटोरयूं म घी बि धार। अब कानूनगो अर चपड़ासी कुण एक एक थाळी म तीन कटोरी घी लग्युं बाडी , सुख्यूं आम की चटनी अर घी छौ।
द्वी थाळी लेक कुमाळी दूसर उबर गे। तब द्वी लुट्या पाणी बि लीग। चूंकि यु भोजन गढ़वाल से लुप्त ही ह्वे गे छौ तो कानूनगो अर चपड़ासी तैं यु बाड़ी अमृत जन स्वादिस्ट लग।
कानूनगो कुमाळी क भोजन से इथगा पुळे कि वैन कुमाळी कुण कर मुक्ति की घोषणा कर दे अर पधान तैं आदेश दे कि कुमाळी तैं क्वी दुःख द्याल तो वाई पर बड़ो धनद दिए जालो।
जब लोगों तैं पता चल कि कुमाळी न जौ क आटो म कंडाळी पत्ता मिलैक बाड़ी पकाई तो सब्युंन कंडाळी मिश्रित जौ क बाड़ी खैंड। किन्तु फिर यु भोजन गढ़पुर से हरची गे। कारण ब्रिटिश काल म गेंहू पर जोर छौ तो जौ क खेती हीन ह्वे गे।