276 से बिंडी कहानी रचयिता : भीष्म कुकरेती
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बण्वा दा क्या सुंदर एक सामान्य पारम्परिक , सनातन निष्ठ गढ़वळि छौ। गढ़वाळ म कातिक क मैना बिटेन चैत एक कृषि कार्य हीन रूप म हूंद तो कृषक आरकस्सी कार्य करणो जंगळौ मालदारों ( ठेकदारों ) दगड़ जंगळ पौंछ जांदन। ये वर्ष बण्वा दा मालदारों कुण कार्य करणों स्थान पर मुबारकपुर म एक मुस्लिम की छुटि फैक्ट्री म कार्य करण लग गे। बगल म एक अंग्रेज भक्त मास्टर जी छा जौंक भोजन पकैक बण्वा दा छै मैना काटिक आयी। जन संगत करिल्या तुमर बुद्धि बि उना हि ढळदि। मुब्र्क्पुर बिटेन जब चैत म बण्वा दा घर आयी तो जो बि गढ़वळि कर्मकांड करदा छा तौं पाखंड मनण लग गे , जो भि पारम्परिक विश्वास छौ तौं तैं बकबास अर पाखंड समजण बिसे गे। मंदिर या कै खड़दिबता की पूजा अब बण्वा दा कुण पाखंड छौ।
अब जब बारी आयी डांड घनघोर बरसाती रात्यूं म डौंर बजैक जागर लगैक गोठ म रात कटण क रिवाज तै तो बण्वा दा न डौंर ही फोड़ दे कि या संस्कृति पा खंड की संस्कृति च। बण्वा दा तै ठंड नि लगद छे बिंडी अर ना बण्वा दा पर तमाखू पीणो कुढब । वैन जब गोठ म आण शुरू कार छौ तो बुबा जीन समजायी छौ कि ग्वाठ म अग्नि देव की पूजा अवश्य करण अर गोठ म आग अवश्य जळाण , यदि गुपळ हो तो सि बढ़िया। प्रत्येक वर्ष वो डांड क गोठम जागर लगैक डौंर बजांदो छौ गुश क आज जळांदो छौ। मुस्लिम संस्कृति अर अंग्रेज भक्ति क छोप से प्रभावित बण्वा दा ए वर्ष गोठ म ना तो डौंर लीग अर ना ही अब वो गोठ म आग जळाँद छौ। यी द्वी अब बण्वा दा कुण पाखंड ह्वे गे छा।
जब गोठ डांड गे अर बण्वा दा क पुंगड़ अलगां अर जंगळ जिना छा तो बूड बूड़यों बण्वा दा तैं चटाई कि तेरी गोठ अलग सि च तो अवश्य ही गोठ म डौंर बजैक जागर लगै अर आग जगै। पर बण्वा दा पर तो अच्काल परम्परा तै पाखंड की आंख्युं से दिखणो भूत जि लग्युं छौ। बण्वा दा नि मान अर ये वर्ष पैल दां डांड गोठ धरणों पंचों दिन गोठ म बाग़ पोड़ अर एक कलोड़ ल्ही गे।
लोगुंन समझायी बि कि भगवानों क जगार लगाण शुरू कौर अर अग्नि देव की पूजा हेतु आग जळा। किन्तु बण्वा दा पर तो पाखंड को नरसिंग जि चड्युं छौ वू नि मान अर दसवां दिन पुनः बाग़ एक बौड़ उठैक ल्ही गे।
गाँव वळ तो बुलणा कि चूंकि बण्वा दा न जागर नि लगैन , शिवजी क डौंर नि बजैन अर अग्नि नि जळै तो दिबता रुसे गेन अर एक वर्ष म खताखती बण्वा दा गोठ म बाग़ पोड़। किन्तु बण्वा दा पर कुछ प्रभाव नि पोड़। बण्वा द की घरवळि कथगा रोइ कि जागर लगाओ अर आग जळाओ पर बण्वा दा अपर विचारों पर अडिग छौ।
वे दिन कुछ कार्य से गोठ छोड़ि बण्वा दा घर आयुं छौ अर तबि बण्वा दा क कक्या ससुर जी जो अध्यापक छा बि घर ऐन। तिबारी म सब बैठां छ छ्वीं लगणी छे। तौं म बण्वा दा की घरवळि न राम कहानी सुणाई तो अध्यापक जीन जंवै से पूछ ,” जंवै जी तुमर विचार अनुसार गोठ म सीण से पैल डौंर बजाण क्या च ?”
बण्वा दा क उत्तर छौ , ” ज्योर यि सब पाखंड और पाखंड बकै कुछ ना “
ककया ससुर जीन बिँगाई , “हमर प्रत्येक कर्मकांड तै सही अर प्रत्येक पारम्परिक विचार तैं पाखंड बतैक मुस्लिम लगों न हमर आत्मविश्वास डिगायी अर अच्काल हम तै अंधविश्वासी बोलिक हमर आत्म विश्वास डिगैक हम पर शासन करणा छन। हमर पुरणून क्वी रीति या संस्कृति बणै तो विचार कौरी हि बणै होलि। सुदि रीति -रिवाज नि बणदन। हमर पुरखा मूर्ख नि छा। “
इख पर बण्वा दा न पूछ , ” ग्वाठ म रत्यां डौंर बजैक जागर लगाण अर रात भर गुपळ जळैक रखण म ख़ाक तुक च ?”
जोर से हंसद मास्टर जीन पूछ , ” ग्वाठ म जब हम डौंर बजैक जागर लगौंदा तो वो क्या समय हूंद ?”
बण्वा दा न ब्वाल बस स्याम दैं से कुछ समय अधिक। “
कक्या ससुर जीन बण्वा दा तै पुनः पूछ , ” अर यूं ही समय जंगली पशुओं क अपर ठौ से भैर आणो हूंद कि ना ?’
बण्वा दा न उत्तर दे हां ये समय बाग़ , स्याळ , रिक भोजन की खोज म इना उना घुमदन। “
मास्टर जीन अगनै की बात समजायी , ” अर पशु चाहे जंगली हो या पालतू अजनवी ध्वनि सूणी वीं जगा छोड़ दींदन अर उना आणो हिम्मत नि करदन “
बण्वा दा क मुखन निकळ , ” ये मेरी ब्वे ! या बात तो सही च कि जंगली जानवर डौंर अर जागर ध्वनि सूणी दूर भाग जांदन। अर वापस आणों हिम्मत नि करदन। “
कुछ देर चुप्पी राय। तब बण्वा दा न पूछ , ” अर गुश की आग ?”
मास्टर जीन व्याख्या कार , जंगली क्या पालतू पशु बि आग व धुंवा से डरदा छन , धुंवा या आग देखि सूंघी दूर भगण लग जांदन। “
बण्वा दा , ” मी बि मूर्ख बण ग्यों। यूं मुसलमानों अर अंग्रेज भक्तों क भकलौण म ऐक मि बिसर ग्यों कि हमर पितर मूर्ख नि छा। मीन पितरों क बात नि मानिक द्वी गौर खोई देन। “
“हूंद च ! हूंद च जंवै। परतंत्रता क पाप ही इन हूंद कि हम अपर स्वाभिमान तै गिरायी दींदा। ” मास्टर जीन ब्वाल।
बण्वा दा न अब कुशल मंगल पूछ , आप आज इना यात्रा पर ?’
मास्टर जीन उत्तर दे , ” हां परस्युं दुगड्ड म हम स्वतंत्रता सेनान्यूं क सम्मेलन च। मि सैंज जाणु छौ आदित्यराम दुधफुडी जीक इख जौल अर उख बिटेन दुगड्ड “