250 से बिंडी कथा रचयिता : भीष्म कुकरेती
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जसमनि बांदर ये बांदर समूह म सबसे बुडया बांदर च जैकी आयु 50 का लगभग च। पैल स्यु डार (समूह) क नेता छौ , सब बंदरी तैकी रानी छे। पर कुछ समय पैलि तैक नाति कुद्यान तै मंगन राज छीन दे। अब सब बंदरी कुद्याक राणी छन इख तक कि कुद्याकी ब्वे बि वेकी राणी च अब। जसमनि अब चुपचाप बंदरों डार म पैथर रैकि या बैठिक वर्तमान अर पुरण दिनों अंतर पर मनन करणु रौंद। दिखे जाव तो जसमनि अब ये बंदरों डारौ कुण कुछ बि कामक नी च , महत्वहीन च। अब यु लगभग रोष म ही रौंद अर छुट छुट बंदरुं पर रोष गाडदु तो युवा बांदर बुड्या जसमनि क लत्था ले लीन्दन तो द्वी एक मैना तक जसमनि चुप रौंद। महीनों तक क्रोध का घूँट पीण अब जसमनि क जीवन चक्र को भाग ह्वे गे।
ये बुढ़ापा म जसमनि तैं सबसे बड़ त्रासदी मनिखों गाँव म जाण पर हूंद। चूंकि कुछ वर्षों से वेक मुंडीत (डार ) क बांदर मानवीय भोजन का आदि ह्वे गेन जनकि मरचण्या साग , दाळ , मिठो भात , पकीं धुंवंळी रुटि आदि। जैदिन यी बांदर गाँव नि आंदन जंगळ म इ रौंदन तो जसमनि समेत सब पर चिरड़ पैदा ह्वे जांद। मनिखों पकायुं भोजन अब यूं बांदरों कुण व्यसन जन ह्वे गे। अब तो जब बि गाँव म ढोल बजद तो जसमनि पर विशेष भोजन की रूचि जग जांदी। इन समय सब बांदर गिलास का पाणी पीणों ललायत रौंदन। बिचर बांदरों तै नी पता कि शादी ब्यौ म लोक गिलासों म दारु सारू छोड़ दींदन।
इलै जसमनि अर वेक मुंडीत क बांदर एक या द्वी दिन जंगळ रौंदन अर पुनः गाँव ऐ जांदन। लुण्या अर मरचण्या भोजन बिना यी बांदर नि रै सकदन। जब यी द्वी तीन दिन जंगळ म रै जावन तो सब पर चिरड़ पैदा ह्वे जांद। एक दुसर तैं बिना उद्देश्य क बगदोरण लग जांदन। बिचारो बच्चों अर जसमनि जन बुड्या बांदर इ चिरड़ का शिकार बिंडी बणदन।
डार म सबसे पैथर बैठयूं जसमनि क स्मृति पटल म वैक बचपन अर युवा समय क चित्र आण शुरू ह्वे जांदन। तब बांदर जंगळ छोड़ि गाँव ज़िना आण त छवाड़ो दिखद , सुंघद बि नि छा। तब सामान्य बंदरों डार बाघ , स्याळों से इथगा आतंकित नि हूंदा छा जथगा मनिखों क छाया से इ आतंकित ह्वे जांद छा। तब जंगळ भौत छा , जंगळ घणा घणा छा , बनि बनि डाळ छा। जंगळुं म प्रत्येक ऋतु म बांदरों कुण उचित पत्ती, छाल, फल फूल अर बीज मिल जांद छौ। गुलदार छोड़ि वी बि कबि कबि शेष कै पशु से डौर नि छे। तब जसमनि तै याद नी कि बांदरों न कबि मनिखों पकायों भोजन खायी हो धौं। क्वाद क समय जंगळों न्याड़ इ क्वाद आदि श्री अन्न मिल जान्दो छौ। निर्भीक ह्वेक जसमनि क भै बंद जंगळ क छोर पर खेतों म पक्यूं श्री अन्न खैक जंगळ पुटुक चल जांद छा।
जसमनि तै याद आंदो कि बेडु -तिमलों समय पर बांदर जंगळ छोड़ि गाँव जिनां जांद छा सुबेर सुबेर सार्युं बेडु तिमल , भ्यूंळ , खड़िक खैक जंगळ बौड़ जांद छा। जसमणि तै याद च बल मनिख कम ही दिख्यांद छा। जसमनि क जैविक चेतना म अफि गणना ह्वे कि तब श्री आनन छोड़ि मनिखों दगड़ भोजन हेतु क्वी प्रतियोगिता नि छे तो मनिख अफु म मस्त छा तो बांदर अफु म मस्त छा।
जसमनि क स्मृति पटल म मनिख अर वैक परिवारौ मुखसौड़ मनिखों से हूंद छौ जब बांदर गांवों न्याड़ मुंगरी क पुंगड़ॉ म मुंगरी बुकाणो जांद छा। भौत दैं इन म कळ्ळुं दगड़ बि प्रतियोगिता हूंदी छे कि घाम आंद या थोड़ा अबेर तक कु पैल पकीं /अधपकीं मुंगर्यू म मुंगर्यड़ पोँछल। जसमनि तैं याद आंदो कि मुंगरी समय यदि बांदरों तैं तीन चार दिन तक मुंगरी -मूळा-कद्दू , साग पात , लुब्या -सूट नि मीलो तो सरा समूह सदस्यों पर चिरड़ पैदा ह्वे जांद छे। जसमनि क चेतना न गणत कार तो पायी कि मुंगरी क कुछ तो आवश्यकता छे शरीर तैं कि हम सब बंदर मुंगर्यू बान तिलमिलांद छा, छट पटांद छा, सिरड्यांद छा। तब मुंगरी खांणम मनिखों दगड़ युद्ध सि हूंद छौ। मनिख क जोर हम बंदरों तैं भगाण पर हूंद छौ तो हमर जोर हूंद छौ कि जथगा बि समय मीलो मुंगरी थ्वाथा खाये जावन। कति दैं जसमनि पर मनिखों चुलायां पथरै चोट बि लगीं च बस मुंगरी समय। निथर हौर समय मनिखों दगड़ भौत कम मुखसौड़। हां क्वी क्वी गाँवों म आमों पकण म मनिख दिख्यांद छा पर आम कच्चा जसमनि होर नि खै सकदा छा। पक्यां आम क हड्यल तक खै जांदा छा। पर आम क बान मनिख बंदरों से भौत कम सचेत रौंदन। जसमनि क चेतना म ये प्रश्न क उत्तर नि मील कबि कि मुंगरी -कोदा आदि बान जथगा चौकस मनिख रौंद तथगा आमों बान नि रौंद।
लिम्बु , केएम , नारंगी ऋतु समय बि जसमनि क मुंडीत तै गांव क जिना आण पड़द छौ पर मनिखों दगड़ भौत कम मुठभेड़ हूंदी छे तब।
तब जब जसमनि युवा छौ तो बिंडी समय जंगळ का ही भोजन पर यी निर्भर छा।
फिर युवा समय से कुछ मथि जसमनि अर हौर प्रौढ़ बांदरों न बि चितायी कि भौत सा भैराक बांदरों डार आण लग गे। तौंक जड्डू सहणो भौण से लगद सि डार पहाड़ की नि छन। प्रति दुसर तिसर चौथ दिन जसमनि क समूह तै यूं उन्ना देसी (विदेशी) बंदरों दगड़ द्वन्द करण पड्न पोड़ । इनम जसमनि क समूह म एकी विकल्प छौ मनिखों वसावत क न्याड़ जये जाय।
कुछ दिन उपरान्त मनिखों न तौंक जंगळ काटिक
तैबरि एक अपछ्याणक घटना बांदरों तै दिखणो मील अपछ्याणकी ध्वनि दगड़ भूमि स्खलन बांदरों न द्याख। , वास्तव म यी मनिखों द्वारा जगळ साफ़ कौरि खेत निर्मित ह्वेन। जंगळ मध्य खेतों से बि जसमनि क परिवार तै गांवक हौर बि निकट वसावत बसाण पोड़।
जब जसमनि कौंक वसावत क न्याड़ ध्वार मोटर मार्ग हेतु खुदाई शुरू ह्वे तो बांदरों चेतना म कुछ तो घट कि बिंडी से बिंडी बांदर मनिखों न्याड़ अर्थात गाँवों निकट ऐ गेन।
बादरों द्वारा गाँव मध्य आण मनिखों कुण नयो अनुभव नि छौ किँतु प्रतिदिन बांदरों गांव आण अर निकट हि बसण नयो अनुभव छौ। बंदरों द्वारा रात गांवक निकट बिताण मनिखों कुण नै अनुभव च। अब तो बांदर बि न्याड़ -ध्वारौ गाँवों क मनिख इ ना कुकरों तै बि पछ्यण लग गेन। धीरे धीरे बांदर रसोइ घर म जाण मिसे गेन अर आग व धुंवा क निकट आण लग गेन व अब तौंक चेतना म आग धुंवा को भय उथ्गा नि राई। अब तो बंदरों तैं पक्यू पकायुं भोजन को इन आदि ह्वे गे जन मनिख शराब को। अब बंदरों तै जंगली फल , फूल , पत्ती म रस इ नि आणु च। प्रतिदिन क्वी ना क्वी बांदर बिठलरों क मुंड म तौल क पींडो लुछणो रौंद।
जसमनि क चेतना म अब मनिखों क पकायुं भोजन व निकटवर्ती खेतों क भोजन पाणो आकर्षण आण ही ना अब चेतना म इन भोजन पाणों तरीका प्रवेश करण लग गे।
जसमनि क जीवन चेतना तै लगण लग़ गे बल अब बांदरों तैं मनिखों क निकट ही जिंदगी बिताण पड़ल।