बडूली एक गढ़वाली शब्द है, जिसका हिंदी में शाब्दिक अर्थ होता है हिचकी आना और हमें हिचकी कब आती है, जब कोई व्यक्ति विशेष हमें याद करता है. यही यादों का सिलसिला गढ़वाल में बडूली कहलाता है.यह बडूली उन लोगों के लिए है, जो अपनी गढ़वाली संस्कृति को भूल गए है या उन लोगों के लिए जो गढ़वाली संस्कृति को अपनाना अथवा कुछ पल गढ़वाली संस्कृति में जीकर गढ़वाल की संस्कृति को अपने भीतर रमना चाहते है.
गढ़वाल प्राचीन से ही देवी-देवताओं का स्थान रहा है. यहां के घने जंगल, सदाबहार वृक्ष, पहाड़ो से बहती जीवनदायिनी नदियां, देवताओं के पवित्र स्थान, लोगों की आस्था, त्यौहार, रीति रिवाज, मेले, सांस्कृतिक क्रियाकलाप तथा गढ़वाली भोजन आदि इस गढ़वाल को अन्य स्थानों से सर्वोच्च बनाये रखती है.गढ़वाल की इसी संस्कृति, परंपरा आदि को इस बडूली के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाकर गढ़वाल की संस्कृति एवं परंपरा का आभास कराने का प्रयत्न किया जा रहा है, जिससे कि जन-जन अपने आप में जुड़ गढ़वाल को नजदीकी से देख महसूस कर सके.
हमारा उद्देश्य विश्व स्तर पर गढ़वाल की संस्कृति की पहचान कराना है. गढ़वाल शब्द ही अपने आप में पूरी संस्कृति को संजोये रखा है, जिसमें की गढ़वाली रीती रिवाज, परंपरा, भोजन, त्यौहार आदि शामिल है.हमारा उद्देश्य गढ़वाल क्षेत्र में नवयुवकों को उनके ही आवास पर रोजगार प्रदान करना है, जिससे गढ़वाल क्षेत्र में हो रहे पलायन को रोकना भी एक मुख्य उद्देश्य है.रोजगार की तलाश में नवयुवक अपने घर को छोड़ शहरों की तरफ भाग रहें है, जिससे गांव के गॉव खाली हो रहे है. इस प्रकार गांव से हो रहे पलायन से हमारी संस्कृति एवं परंपरा पर भी गहरा असर पड़ रहा है. हमारा उद्देश्य यही है कि हम पहाड़ से हो रहे पलायन को रोककर गढ़वाल की संस्कृति को भी बचाने एवं जन-जन तक पहचान कराएं.