250 से बिंडी खानी रचंदेर : भीष्म कुकरेती
भुंदरा देर रात सरा गां म सबि परिवार वळों तै बोली ऐ गे कि दुसर दिन वींक कॉलेज म वार्षिक उत्स्व च तो अवश्य कॉलेज ऐन। लगभग सब्युंन वचन दे कि वो कॉलेज म वार्षिक उत्स्व म अपर उपस्थिति द्याला। गाँव की प्रतिष्ठा जि च भुंदरा।
बुसर दिन भुंदरा इखुलि घणघोर कुंळै (चीड़ ) अर बाजक बौण म जाणि छे। बाजक सुख्यां पत्तों म भुंदरा चलणी छे तो कर्च कर्च की ध्वनि आणि छे। अपर धुन म चलदी भुंदरा तैं पता इ नि चौल कि वा वणांक क चपेट म ऐ गे। चारों ओर आग ही आग , आग की ऊँची ऊँची ज्वाला , धुवा ही धुंवा , आग पिळ्ळु हि ना पेड़ों म मथि बि धू धू कौरि पेड़ जळाणि। भुंदरा आग क ज्वाला जो समुद्र क लहर जन छे से बचणो भरसक प्रयत्न करणी छे। बचणो हेतु भुंदरा जळदो पेड़ म ही चौढ़ गे अर स्वाहा। भुंदरा क चर्री दिशाओं म ध्वनि आणि , ” बचाओ , भचाऊ , मि मोर ग्यों। ” ……
गां वळ जोर से रोदन स्वर म चिल्लाणा छा , ” हे हमारी भुंदरा भरचे गे बणांक म भरचे गे , है जवानी म ही स्या ….. “
गां वळों बगल की दर्शक दीर्घा से अध्यापक व छात्रोंक ताळी बजाणो ध्वनि, ” वेल डन भुंदरा ! वेल डन भुंदरा । व्हट ए आर्ट डाइरेक्शन ! मार्वलस । … ” सरा हॉल ताळी की गूंज से गुंजणु छौ।