सुनिन्द सियैंण वळा भि
अब झटपट्ट बिजिगिन,
मिन भी सूणि दगड्यों
ऐसु फिर चुनौ ऐगिन।।
क्वी मंदिरों घांड खमड़ालु
क्वी बामणूं मा हवन करालू,
क्वी बच्यां बजट भेंट चढ़ौलु
क्वी खुटौं तौळा मुण्ड लिजालू।।
क्वी उंद ठुुरलु उन्द्यारी फुण्ड
क्वी उकाळि फुण्ड उकसालु,
क्वी सैंणा सौड़ मा लफड्यालु
क्वी संत्रयूं दगड़ मुर्गा भड्यालु।।
क्वी चौक मा पंचेत लगालु
क्वी उठुणू,त क्वी बैठुणू रालु,
क्वी अपड़ि योजना बतोलु,
क्वी मिललु सीद्दू,क्वी परपंच रचोलू।
क्वी विकासे उल्टी गंगा बगालू,
क्वी स्वर्ग बणांणै छ्वींबथ लगालु,
क्वी जुझारू,क्वी कर्मठ लिख्यालु
क्वी पिछनै बै छीरी,अगनै भैर औलू।
पर हमुन त दगड्योंऽ सु जितौण
जैन हमारी बोली-भाषै बात कन,
जैन अपड़ि माटी-थाती बात कन
जैन मां-बैण्यों कि पिड़ा चितौण।
जैन दाना-सयाणूं आदर कन
ज्वान दगड्यौं कि, बात सुंण्ण
अस्पताळ बणांण,स्कूल सजांण
अर हमारी बात अगनै लिजांण।
दगड्यौं हमुन स्वे जितौण।
दगड्यौं हमुन स्वे जितौण।।
दीपक मैठाणी।
संस्थापक बाल पंचैत बजिंगा टीरि गढ़वाल